ADVERTISEMENTREMOVE AD

नरसिंह राव आलोचनाओं पर कुछ इस अंदाज में रिएक्ट करते थे

दो ऐसे वाकये जानिए जो पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव की शख्सियत को बयान करते हैं

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

भारत के 9वें प्रधानमंत्री पीवी नरसिंंह राव की वो दो कहानियां, जो बताती हैं कि आलोचकों के प्रति वो कितने सहिष्णु थे.

करीब 20-25 साल पहले ये सोच पाना मुश्किल था, एक संकोच था कि मीडिया में देश के प्रधानमंत्री की सेहत पर खबर बनाई जा सके और प्रधानमंत्री का स्वास्थ्य सार्वजनिक बहस का विषय हो सके.

1994-95 में बिजनेस स्टैंडर्ड ने इस संशय को तोड़ा और एक दिन ये खबर पहले पन्ने पर ब्रेक की कि प्रधानमंत्री नरसिंह राव को हल्के पैरालिसिस टी.आई.ए (Transient Intermittent Ailment) की तकलीफ हुई और वो एम्स में भर्ती हुए हैं.

ये भी देखें- कोर्ट ने 30,000 पन्नों की चार्जशीट का फालूदा बनाया

ADVERTISEMENTREMOVE AD
इसके पहले देश में प्रधानमंत्री की सेहत को लेकर कोई खबर नहीं छापी जाती थी. 1994-95 में ‘बिजनेस स्‍टैंडर्ड’ ने तत्‍कालीन पीएम नरसिंह राव की सेहत को लेकर खबर छापी तब उनकी सेहत रिपोर्ट के जरिए सार्वजनिक चर्चा का मुद्दा बनी. 

सरकार ने स्वीकार की सच्चाई

प्रधानमंत्री की सेहत की इस बात को छिपाकर रखा गया था. जाहिर है, सरकार ने पहले तो इस खबर को गलत बताया. उस वक्त के प्रधान सूचना अधिकारी एस. नरेंद्र ने हमें SPG की लॉगबुक दिखाई. हम पूरे दिन और देर रात तक बहस करते रहे कि खंडन कैसे छापें. हमने उन्हें साफ कहा कि अगर खंडन छापेंगे, तो हम साथ में कहेंगे कि हम अपनी खबर पर कायम हैं. यही नहीं हम कुछ और जानकारियां भी दे देंगे, जो सरकार और प्रधानमंत्री को और ज्यादा चुभेंगी.

आखिरकार पीआईओ (PIO) मान गए और खंडन छपवाने की जिद छोड़ दी. मेरा खयाल है कि तब उन्होंने पीएमओ या खुद प्रधानमंत्री को हमारी पोजिशन बताई होगी और प्रधानमंत्री को लगा होगा कि हमारी खबर सही है और इस मसले को यहीं छोड़ देना बेहतर होगा.

नरसिंह राव में गजब की खूबी थी कि वो मीडिया की आलोचना से घबराते नहीं थे. 1991-96 के कार्यकाल में उनके बहुत से फैसलों पर सवाल उठे, निंदा हुई. पर उन्होंने इन पर कभी नाराजगी नहीं जताई. सत्ता को कैसे साधना है, ये वो खूब जानते थे, लेकिन अपनी इमेज को लेकर वो बेफिक्र रहते थे.

हमारी खबर पर उनका दफ्तर हमारे संपादक टीएन नैनन या मालिक अवीक सरकार तक नहीं गया. उनके अधिकारियों ने हमसे यानी (रिपोर्टर मैं और मेरे ब्यूरो चीफ डेविड देवदास) से सारी बातचीत की. शायद नरसिंह राव का हर चीज को तौलने का एक अलग तराजू था- वो ये कि क्या इस बात से मुझे कुछ फर्क पड़ता है और क्या इस बात का कोई बड़ा असर है. इसलिए अपने कार्यकाल में उन्होंने कई बड़े तूफानों को शांत रहकर झेल लिया.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

‘एक सधे हुए प्रशासक’

दूसरा किस्सा ये बताता है कि एक प्रशासक के रूप में नरसिंह राव, छोटी हो या बड़ी बात, किस सधे ढंग से पेश आते थे. उन्होंने 1996 के आम चुनावों के पहले जब कैबिनेट का आखिरी बड़ा फेरबदल किया, तब उसमें कई विवादास्पद चेहरे शामिल किए गए.

एक साहब थे मतंग सिंह, जो राज्यमंत्री बनाए गए. बिजनेस स्टैंडर्ड की खबर में लिखा गया कि मतंग सिंह पावर ब्रोकर हैं और कथित रोल माफिया हैं. ये खबर मतंग सिंह को चुभी. एक-दो दिनों के बाद आधी रात को एक फोन आया और फोन पर मुझे कुछ यूं धमकाया गया.

मैं दुबई से बोल रहा हूं. दाऊद कंपनी के तरफ से. तुम हीरो बनते हो. मारुति में घूमते हो. आई विल एंड योर लाइफ !

मैं इतना थका था कि फोन कटने के बाद मैं सो गया. लेकिन सुबह उठा, तो सिट्टी-पिट्टी गुम थी. अपने संपादक से, मित्रों से और एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी से सलाह के बाद तय हुआ कि इस घटना की जानकारी लिखित में प्रधानमंत्री को दे दी जाए. तब हमें शक था कि ये फोन मतंग सिंह ने किया या कराया हो. तब प्रधानमंत्री मध्य प्रदेश के चुनावी दौरे पर थे और डेविड कवरेज के लिए गए हुए थे. उन्होंने ये चिट्ठी प्रधानमंत्री को सौंप दी.

कुछ ही घंटों बाद गृह मंत्रालय के कुछ अधिकारी हमारे दफ्तर और घर पहुंचे. मुझे सुरक्षा देने के लिए पुलिसकर्मी तैनात करने की बात कही. हमने विनम्रता से ये पेशकश ठुकरा दी. साफ है कि राव साहब का ध्यान इस बात पर नहीं था कि हमारा कवरेज निगेटिव था या पॉजिटिव या हमें उपदेश दिया जाए कि हम कैसे पेश आएं.

ये मामला बताता है कि नरसिंह राव अपने आलोचकों के प्रति कितने उदार थे.  बात 1996 के आम चुनावों के पहले  की है. उस वक्त मतंग सिंह राज्यमंत्री बनाए गए.  हमारी एक रिपोर्ट में मतंग सिंह को ‘पावर ब्रोकर’ बताया गया, तो उन्‍होंने धमकी का सहारा लिया. लेकिन बात जब प्रधानमंत्री तक पहुंची तो उन्होंने तुरंत एक्शन लिया और धमकी आना बंद हो गईं.

वो वाकई नरसिंह थे, इसलिए उनका रिस्‍पॉन्‍स भी एक खास अदा के साथ होता था. अब हम पीछे मुड़कर देखते हैं, तो सब मानते हैं कि राव साहब 1991-96 में जो कर गए, वो युगांतरकारी था.

हमें शुरू से मतंग सिंह पर शक था थोड़ी-सी जांच के बाद हमारा शक सही निकला. वो फोन मतंग सिंह ने ही किया था.

बहरहाल, मेरे एक साथी पत्रकार की मतंग सिंह से जान-पहचान थी. मैं उनके साथ मतंग सिंह से मिलने उनके घर चला गया. थोड़ी तान के साथ मतंग ने मान लिया कि फोन उन्होंने ही किया था. दोस्ती हो गई. उन्होंने लड्डू खिलाए. लेकिन तभी मैंने एक बेवकूफी कर दी. मैंने मतंग को अपना बिहारी भाई बोल दिया. मतंग चिढ़कर बोले, “मैं बिहारी नहीं, असम का हूं ,रॉयल फैमिली का हूं.”

अभी कुछ समय पहले मतंग कई मामलों में फंसे- सारधा कांड, पूर्व पत्नी से मुकदमेबाजी और एक टीवी चैनल के घपले का इल्जाम है.

नरसिंह राव खुद कई विवादों और कोर्ट केस में उलझे, उनसे जुड़े कई लोगों पर तरह तरह के मामले चले, लेकिन सार्वजनिक तौर पर उनके रवैये में जरा भी तल्खी नहीं दिखी. उन्होंने हमेशा उस गरिमा और उदारता को बनाए रखा जैसी प्रधानमंत्री पद पर बैठे व्यक्ति से की जाती है.

यह भी पढ़ें: नरसिंह राव ने अपनी बीमारी की खबर पर कैसे रिएक्ट किया था?

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×