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इंग्लैंड क्रिकेट टीम से सीखकर किस्मत बदल सकती है कांग्रेस: थरूर

कांग्रेस को भी तैयारियों के रूप में नए चेहरों, युवा जोश, भरोसेमंद और जुझारू लोगों को जगह देना होगा

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क्रिकेट वर्ल्ड कप और हाल के चुनाव, दोनों ही मेरे दिमाग में घूम रहे हैं. यही हाल ज्यादातर देशवासियों का है. मैं सोच रहा हूं कि दोनों का एक-दूसरे के साथ क्या रिश्ता है?

मैं धोनी के विकेटकीपिंग ग्लव्स पर बलिदान की निशानी पर विवाद की बात नहीं कर रहा. मेरा पूरी तरह मानना है कि उन्हें ICC के नियमों का पूरी तरह पालन करना चाहिए और इस मुद्दे पर विवाद से बचना चाहिए.

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दरअसल मैं कांग्रेस पार्टी में चल रहे विचार मंथन की बात कर रहा हूं. मैं चार साल पहले बांग्लादेश के हाथों इंग्लैंड की हार की बात कर रहा हूं. मैं उस हार के बाद के बाद उन चार सालों के बारे में सोच रहा हूं, जब इंग्लैंड ने पूरा ध्यान अपना खेल बेहतर बनाने पर लगाया और आज दुनिया की सबसे ताकतवर वन डे टीम और 2019 वर्ड कप की सबसे फेवरेट दावेदार बन गई है.

आखिर उसने ये मजबूती कैसे हासिल की? क्या कांग्रेस उससे कोई सबक सीख सकती है?

मैं आपको उन छह नियमों के बारे में बता रहा हूं, जिनके जरिये इंग्लैंड की टीम फर्श से अर्श पर पहुंची. कांग्रेस पार्टी भी इन नियमों के आधार पर अपना उज्ज्वल भविष्य बखूबी तलाश सकती है.

कप्तान बदलने की जल्दबाजी न करें

2015 वर्ड कप में इंग्लैंड की करारी हार के बाद फौरन कप्तान आयरिशमैन इयोन मॉर्गन को हटाने की मांग उठी. लेकिन इंग्लैंड ने उनपर अपना भरोसा बनाए रखा. वजह थी ये सोच, कि उन्हें अपनी इरादों को अंजाम तक पहुंचाने का पूरा वक्त नहीं मिला और आज मॉर्गन को सीमित ओवर मैच के लिए इंग्लैंड का सबसे बेहतरीन कप्तान माना जाता है.

राहुल गांधी की अगुवाई पर उठ रहे सवालों को भी उसी नजरिये से देखना चाहिए.

दो साल भी नहीं हुए, जब राहुल गांधी ने पार्टी की कमान संभाली है. तर्क दिया जा सकता है कि राहुल गांधी को भी पार्टी को मजबूत बनाने के लिए अपने इरादों को अंजाम तक पहुंचाने का पूरा वक्त नहीं मिला. चुनाव प्रचार आगे बढ़ने के साथ उनके इरादों और विश्वास में मजबूती आती गई.

वक्त है उसी सोच को आगे बढ़ाने का, न कि उनके नेतृत्व पर सवाल खड़ा करने और नए नेतृत्व की मांग करने का.

लेकिन कोच और सपोर्टिंग स्टाफ को जरूर बदलना चाहिए

2015 वर्ल्ड कप में इंग्लैंड की करारी हार के बाद मॉर्गन की कप्तानी पर तो भरोसा जताया गया, लेकिन मुख्य कोच पीटर मूर्स और इंग्लैंड टीम का प्रबंधन देखने वाले डायरेक्टर ऑफ क्रिकेट पॉल डाउनटन को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. डाउनटन की जगह एन्ड्रयू स्ट्रॉस को लाया गया और मूर्स की जगह ट्रीवर बेलिस ने ली.

अपना पद संभालने के बाद सबसे पहले स्ट्रॉस ने मॉर्गन को फोन किया और उन्हें विश्वास दिलाया कि उनकी कप्तानी सुरक्षित है. उन्होंने कप्तान के फैसलों पर भरोसा जताया. नतीजा निकला कि अब इंग्लैंड को उस भरोसे का फायदा मिल रहा है.

इसी प्रकार कांग्रेस भी अपने टॉप लेवल मैनेजमेंट को बदलने पर विचार कर सकती है. कांग्रेस वर्किंग कमेटी की लम्बे समय से सेवा करने वाले सीनियर्स को अवकाश दिया जा सकता है. दशकों से जिन्होंने चुनावी प्रक्रिया का सामना नहीं किया, उनकी जगह चुनाव की अग्निपरीक्षा से गुजरने वाले युवा जोश को मौका दिया जा सकता है.

पार्टी का कामकाज देखने वाले महासचिवों पर भी ये नियम लागू किया जा सकता है. उनके बदले अब जमीनी स्तर पर ध्यान केन्द्रित करने की जरूरत है. बूथ स्तर पर और मंडल/ब्लॉक स्तर पर कार्यकर्ताओं को मजबूत करने की जरूरत है. आखिर इन्हीं पर वोटों की तादाद बढ़ाने का जिम्मा है.

टीम में जीतने वालों को स्थान दें

इंग्लैंड ने मॉर्गन पर तो विश्वास जताया, लेकिन अपनी पूरी टीम में आमूलचूल बदलाव किया. कई युवाओं को टीम में जगह दी गई. वन डे के कई ऐसे स्पेशलिस्ट को टीम में जगह दी गई, जिनके बारे में इंग्लैंड में पहले कभी विचार ही नहीं किया गया था. टेस्ट मैचों के उस्ताद समझे जाने वाले खिलाड़ियों की जगह वन डे टीम में नए चेहरे दिखने लगे, जो सफेद बॉल से खेलने के लिए ज्यादा मुफीद थे.

पूरी कवायद का नतीजा ये निकला कि इस वर्ल्ड कप से पहले एक ऐसी टीम तैयार हो गई, जिसमें शायद ही किसी को बदलने की जरूरत पड़ी. सिर्फ ड्रग्स लेने के आरोपी एलेक्स हेल्स और नए-नवेले जोफ्रा आर्चर को निराशा हाथ लगी.

कांग्रेस को भी तैयारियों के रूप में नए चेहरों, युवा जोश, भरोसेमंद और जुझारू लोगों को जगह देना होगा. पार्टी के कुछ दिग्गजों को लम्बी सेवाओं के लिए धन्यवाद देते हुए उन्हें हाथ जोड़ना होगा. इंग्लैंड जो काम कुक, ब्रॉड और एंडरसन के साथ कर सकता है, कांग्रेस को भी अपने कुछ वरिष्ठों के साथ कुछ वैसा ही करना होगा.

“टीम का चयन करते हुए हमने कुछ ऐसे चेहरों को जगह दी, जो प्राकृतिक रूप से एग्रेसिव हैं.” मॉर्गन ने बीबीसी को बताया. कांग्रेस को भी ऐसे ही लोगों की आवश्यकता है, जो जुझारू और एग्रेसिव प्रवृत्ति के हों और जिनमें पार्टी की तकदीर बदलने की क्षमता हो.

लम्बे समय से पार्टी के साथ जुड़े, आत्ममुग्ध और थक चुके लोगों की जगह सत्ताधारी पार्टी से दो-दो हाथ करने का इरादा रखने वाली नई पीढ़ी को मौका देना होगा.

पारम्परिक दिग्गजों को दरकिनार करें

इंग्लैंड को भी इस सवाल का सामना करना पड़ा था. पारम्परिक दिग्गजों और उन्हें चुनौती देने वाले नए चेहरों में कौन ज्यादा सटीक है. जोस बटलर और जॉनी बेयरस्टोव बेहतरीन वन डे बैट्समैन होने के साथ-साथ विकेटकीपर भी हैं. लिहाजा टीम में दोनों में से किसी एक को ही स्थान दिया जा सकता था. शुरू में बेयरस्टोव को जगह नहीं मिली. लेकिन जब भी बटलर को आराम दिया जाता, या वो उपलब्ध नहीं होते, बेयरस्टोव को खेलने का मौका मिलता.

बेयरस्टोव उन मौकों को जमकर भुनाते और बेहतरीन प्रदर्शन करते. नतीजा ये निकला कि टीम का चयन करते हुए उन्हें नजरंदाज करना नामुमकिन हो गया.

इंग्लैंड ने दोनों को ही आजमाया. आज बटलर और बेयरस्टोव दुनिया के टॉप 10 बैट्समेन में एक हैं. वन डे मैचों में उनकी स्ट्राइक रेट सबसे ज्यादा है (कम से कम 1000 रन बनाने वालों में)

इसी प्रकार कांग्रेस को भी पारम्परिक जाति और धर्म आधारित तर्कों को दरकिनार करना होगा और सिर्फ मेरिट के आधार पर लोगों को आजमाना होगा. तर्क दिया जाता है कि काफी हद तक खिसक चुके हिन्दू वोट बैंक को और नाराज न करने के लिए कांग्रेस को अपनी सेक्यूलर छवि का ढिंढोरा कम पीटना होगा. अगर ऐसा किया गया तो डर है कि कांग्रेस सिर्फ बीजेपी की नकल बनकर रह जाएगी.

अगर हम “पेप्सी लाइट” की तर्ज पर एक प्रकार की “बीजेपी लाइट” बनकर रह जाते हैं, तो खतरा है कि हम आने वाले समय में राजनीतिक रूप से “कोक जीरो” बन जाएंगे. बेहतर होगा कि हम अपने इरादों पर मजबूती से डटे रहें और विरोध करने वाले तर्कों पर ध्यान न दें.

किसी भी मुद्दे पर हार न मानें

इंग्लैंड की टीम में स्पिनर्स के अभाव की कमजोरी जगजाहिर थी. एशियाई टीमों के खिलाफ मैचों में (भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका के खिलाफ) इस कमजोरी का खामियाजा भुगतने का खतरा था. लिहाजा इंग्लैंड ने दो स्पिनर्स की तलाश की और उन्हें सपोर्ट दिया. ये दो स्पिनर्स हैं मोईन अली और आदिल रशीद. और 2015 वर्ल्ड कप के बाद से वन डे मैचों में दुनिया के किसी बॉलर ने राशिद के 129 विकेट की बराबरी नहीं की है.

उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल में कांग्रेस को भी किसी जीत की उम्मीद नहीं थी. लेकिन कांग्रेस इंग्लैंड की क्रिकेट टीम से सबक ले सकती है कि किसी भी क्षेत्र को कमजोर नहीं पड़ना है. जरूरत पड़े तो अपने से मजबूत और लोकप्रिय पार्टियों के साथ गठबंधन करना है. तमिलनाडु में डीएमके के साथ मिलकर 2019 चुनावों में भारी जीत हासिल करना इसी नियम की एक मिसाल है.

पीछे न हटें, लगातार प्रहार करते रहें

अंतिम नियम है- जल्द शुरुआत करना, लम्बे समय तक बिना रुके कार्य करना और हार से हार न मानना. कांग्रेस लोकसभा चुनावों पर नजर गड़ाए बैठी होगी, लेकिन लगभग हर छह महीने पर देश के किसी न किसी राज्य में विधानसभा चुनाव होते हैं. अपनी क्षमताओं का आकलन करने और अपनी कामों की परीक्षा के लिए ये बेहतरीन मौके हो सकते हैं.

पिछले वर्ल्ड कप के बाद चार सालों में इंग्लैंड ने हर क्षेत्र में अपनी कुशलता की जांच की है. 2015 वर्ल्ड कप के बाद से 400 या उससे ज्यादा पांच बार रनों के पहाड़ खड़े किये गए हैं. इनमें चार मैचों में इंग्लैंड को जीत हासिल हुई है.

सिर्फ छह महीने पहले कांग्रेस को तीन विधानसभा चुनावों में जीत हासिल हुई थी. इंग्लैंड क्रिकेट टीम से सबक सीख लें, तो हम एक बार फिर विजय के रास्ते पर अग्रसर हो सकते हैं.

(संयुक्त राष्ट्र के पूर्व अंडर-सेक्रेट्री-जनरल शशि थरूर कांग्रेस सांसद और लेखक हैं. उन्हें @ShashiTharoor पर ट्वीट किया जा सकता है. आर्टिकल में दिये गए विचार उनके निजी विचार हैं और द क्विंट का इससे कोई सरोकार नहीं है.)

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