ADVERTISEMENTREMOVE AD

Retrospective टैक्स कानून बदल रही सरकार, इसने वोडाफोन-केयर्न का किया था बुरा हाल

फ्लिपकार्ट हमारा, उससे होने वाली अरबों की कमाई दूसरों की क्यों?

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

(ये आर्टिकल 31 जुलाई 2021 को पब्लिश हुआ था. लेकिन अब भारत सरकार ने विवादास्पद Retrospective टैक्स कानून को रद्द करने की बात कही है तो इसे दोबारा से पब्लिश किया गया है.)

'अर्ध सत्य' (1983, गोविंद निहलानी) की याद में लिखे पहले लेख में मैंने बताया था कि गोविंद निहलानी की इस फिल्म के अंत में हिंसक हत्या की नैतिक अस्पष्टता और अवसाद को दर्शाया गया था. ऐसे ही अर्ध सत्य से हम एक देश के रूप में पिछले दिनों रूबरू हुए हैं. महामारी की ऑक्सीजन त्रासदी, पेगासेस की गैर कानूनी चौकसी और "वैक्सीनेशन का वादा"- यह सब "आधे अधूरे" सच ही तो हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

लेकिन फिल्म की कहानी में एक और आधा अधूरा सच छिपा हुआ है. कैसे राज्य मासूम लोगों के दमन के लिए ‘विवेक और भेदभाव’ के अर्ध सत्य का इस्तेमाल करता है. अपनी ताकत का दुरुपयोग करता है. नागरिक अधिकारों की लड़ाई लड़ने वालों से बदले लिए जाते हैं (कई बार सनकियों की तरह), और उन्हें देशद्रोह और आतंकवाद विरोधी कानूनों का इस्तेमाल करके सलाखों के पीछे भेजा जाता है. लेकिन इसके बारे में ज्यादातर लोग जानते हैं. हां, लोगों की नजरों से यह छूट जाता है कि किस तरह आर्थिक क्षेत्र में ‘विवेक और भेदभाव’ के जरिए क्रूर अत्याचार किए जाते हैं.

कम लोग यह जानते हैं कि हमारे देश में कारोबारियों को कैसे परेशान किया जाता है. और इसका विरोध करने की हिम्मत भी कम ही लोगों में होती है. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि हमारे यहां कारोबारियों को भ्रष्ट कह देना, फैशन बन चुका है. इसलिए अगर राज्य इन लोगों को परेशान करता है तो लोगों को मुफ्त का मजा मिल जाता है- इसके बावजूद कि यह प्रवृत्ति बहुत खतरनाक है.

0

क्या केयर्न एनर्जी की नैतिक और कानूनी जीत को हम पचा सकेंगे?

इस बात पर शायद आपको केयर्न एनर्जी का टैक्स विवाद याद आ जाए. "राष्ट्रवादी" लोग इस बात से नाराज हैं कि एक "लालची" विदेशी कंपनी, जिसे "टैक्स चोर" कहा जाता है, ने "हमारी सरकार" के 1.7 अरब डॉलर लूटने के लिए इंटरनेशनल कोर्ट में अर्जी लगा दी. वह पेरिस में सरकार की संपत्ति और एयर इंडिया के हवाई जहाजों पर नजर गड़ाए हुए था. लेकिन "उनकी हिम्मत कैसे हुई" के शोर में भेदभाव का आधा अधूरा सच कहीं गुम हो गया. सभी ने सरकार की करतूत को सही ठहराया. हां, इस बात का डर है कि इस टिप्पणी के बाद लोग मुझे ट्रोल कर सकते हैं.

लेकिन जरा शांति से सोचिए, और सच्चाई जानिए. दरअसल केयर्न एनर्जी ने राजस्थान के बाड़मेर में तेल की खोज पर एक अत्यधिक जोखिम भरा- और बेहद सफल- दांव लगाया था. इसके बाद जब केयर्न के ऑयलफील्ड्स ने रेगिस्तान में लाखों बैरल काला सोना उगला तो भारत की आंखें खुशी से चमक उठीं.

2006 में केयर्न ने भारत में अपने कारोबार को रीस्ट्रक्चर किया. तब उससे किसी एडवर्स टैक्स की मांग नहीं की गई थी. पांच साल बाद केयर्न ने अपने ऑपरेशंस वेदांता को बेच दिए लेकिन कंपनी में 9% स्वामित्व बरकरार रखा. उस समय भी लेनदेन ठीक-ठाक था.

फिर 2012 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार को सुप्रीम कोर्ट में वोडाफोन के मामले में मुंह की खानी पड़ी. इसके बाद सरकार तैश में आकर एक ऐसा कानून लेकर आई जिसके तहत वह कई साल पहले से कंपनी से टैक्स वसूल सकती थी! यह राज्य की "विवेकाधीन और भेदभावपूर्ण" शक्तियों का एक दुखद इस्तेमाल था. आजाद भारत में टैक्सेशन का सबसे खतरनाक अर्ध सत्य जिसे सरकार सबको सुना-समझा रही थी.

इसके बाद जो हुआ, उसे हम कानून के डंडे के सहारे की गई दादागिरी ही कहेंगे.

2015 में केयर्न एनर्जी पर 10,200 करोड़ रुपए के कैपिटल गेन्स टैक्स लगाए गए. वह भी रीस्ट्रक्चरिंग के नौ साल बाद. इसके अलावा ब्याज और जुर्माना भी लगाया गया. फिर सरकार ने वेदांता में केयर्न की लगभग 9% हिस्सेदारी को जब्त कर लिया. 2018 में उन शेयरों को जबरन बेच दिया और 2,700 करोड़ रुपए से ज्यादा के लाभांश और टैक्स रीफंड्स को अपने कब्जे में ले लिया, इसके बावजूद कि मामले पर न्यायिक फैसला होना बाकी था.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

केयर्न से रिश्ते सुधारने में ही भलाई है

स्वाभाविक था कि केयर्न एनर्जी भारत सरकार को अंतरराष्ट्रीय अदालत में घसीट ले जाती. यहां हमारे अर्ध सत्य से परदा उठ गया. भारत सरकार ने जिस आर्बिट्रेटर को तैनात किया था, उसने भी हमारे खिलाफ फैसला सुनाया. लेकिन भारत सरकार इस बात को नकारती रही. इस पर बहस करती रही कि टैक्स लगाना उसका सॉवरिन अधिकार है, इसलिए यह अंतरराष्ट्रीय मुकदमे का विषय नहीं हो सकता.

सरकार के इस दावे में कुछ सच्चाई हो सकती है कि टैक्स लगाना उसका सॉवरिन अधिकार है लेकिन जिस तरह केयर्न एनर्जी पर हल्ला बोला गया, उसके चलते नैतिक पलड़ा उसी की तरफ झुकने वाला था. ऐसी स्थिति में सबकी भलाई इसी में है कि केयर्न के साथ अपनी लाग-डांट को भुला दिया जाए. मामले का निपटारा किया जाए और टैक्स लगाने के अधिकार का इस्तेमाल किया जाए लेकिन निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

फ्लिपकार्ट की छलांग पर हमारा दोहरा अर्ध सत्य

‘भारतीय’ ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म फ्लिपकार्ट की कीमत जब 37.6 बिलियन डॉलर लगाई गई तो कइयों ने अपनी पीठ थपथपाई. कंपनी ने 3.6 बिलियन डॉलर नकद जुटाए और सॉफ्टबैंक जैसी एंटिटीज ने उसमें निवेश किया. इस पर ‘राष्ट्रवादियों’ ने तालियां पीटनी शुरू कर दीं- “देखो-देखो, तीन साल से भी कम समय में हमारे अपने ई-कॉमर्स हीरो ने 15 बिलियन डॉलर से भी ज्यादा दौलत कमाई है.” लेकिन यह भी पूरा नहीं, आधा सच है!

सच है कि फ्लिपकार्ट ने ऊंची छलांग लगाई है. 2018 में उसकी कीमत 22 बिलियन डॉलर थी, जब वह अपने भारतीय मालिकों, यानी बंसल ब्वॉयज के हाथों से फिसलकर अमेरिकी वॉलमार्ट के पास पहुंच गई थी. तब भी ‘राष्ट्रवादियों’ का दावा था कि “16 बिलियन डॉलर के सबसे बड़े एफडीआई का बहाव भारत की तरफ होगा.” लेकिन मुझे यह भ्रम तोड़ना पड़ा क्योंकि 16 बिलियन डॉलर में से 14 बिलियन डॉलर तो अमेरिका, चीन, जापान और दक्षिण अफ्रीका की तरफ बह गए. सिर्फ 2 बिलियन डॉलर की मामूली सी रकम ही भारत पहुंची.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

ऐसा क्यों हुआ? क्योंकि अपने “राष्ट्रवादी” दिमाग का इस्तेमाल करके हमने अपनी खौफनाक ‘एजेंसियों’ को फ्लिपकार्ट की “जालसाजी” का पता लगाने में लगा दिया. नतीजा यह हुआ कि कंपनी के मालिक देश से भाग लिए. अक्टूबर 2011 में फ्लिपकार्ट सिंगापुर में रजिस्टर की गई ताकि देश के अधपके और रोजाना बदलते रहने वाले कानूनों से बचा जा सके. इसीलिए जब वॉलमार्ट की सेल से फायदा उठाने की बारी आई तो भारत के हाथ खाली रहे और बाकी के देशों ने तिजोरियां भर लीं.

अब ऐसा ही एक और नजारा सामने है. तीन साल से भी कम समय में 15 अरब डॉलर की इस वृद्धि का फायदा पूरी तरह से विदेशी शेयरहोल्डर्स को हो रहा है. तो, भारत में जो पौधा लगाया गया था, उसके पेड़ बनने पर फल खाने का मजा भारतीयों के अलावा दूसरे लोग लूट रहे हैं.

हमारे देश को प्राथमिक पूंजी में सिर्फ 3.6 बिलियन डॉलर ही मिलेंगे जबकि ज्यादा बड़ी रकम और मुनाफा दूसरे देश कमाएंगे.

क्यों? क्योंकि हम अपनी गलतियों से सीखते नहीं. क्योंकि हम भारतीय कारोबारियों को इस बात के लिए मजबूर करते हैं कि वे अपनी कंपनियों को भारत की सीमाओं से दूर ले जाएं. और इस तरह उनके लिए परदेस में रिहाइश का अर्ध सत्य रचते हैं.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें