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धर्म, देशभक्ति, आंदोलन...भगत सिंह का भारत Vs आज का भारत

Bhagat Singh की 114वीं जयंती आते-आते भारत में ‘राष्ट्रवाद’ की परिभाषा बदल दी गई है

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भारत के महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक भगत सिंह(Bhagat Singh) 23 वर्ष की आयु में देश की आजादी के लिए फांसी के फंदे पर झूल गए. आज देश उस क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी को उनकी 114वीं जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है.

28 सितंबर 1907 को जन्मे भगत सिंह भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में सबसे प्रभावशाली शख्सियतों में से एक बन गए. यदि आप किसी भी भारतीय से भगत सिंह के बारे में पूछते हैं, तो वे आपको बताएंगे कि वे अपने माता-पिता या दादा-दादी से भगत सिंह की कहानियों को सुनकर बड़े हुए हैं.

भगत सिंह को अक्सर "शहीद" के रूप में याद किया जाता है लेकिन उनकी व्याख्या सबने अलग-अलग की और विभिन्न राजनीतिक पार्टियों ने उनके इमेज को अपने विचारों के अनुरूप ढालकर उन्हें अपना बताया.
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यह ध्यान देने कि बात है कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान राष्ट्रवाद के कई प्रतिस्पर्धी दृष्टिकोण मौजूद थे लेकिन किसी भी विचार के नेता की देशभक्ति पर कभी संदेह नहीं किया गया था.विडंबना यह है कि भगत सिंह की 114वीं जयंती आते-आते भारत में ‘राष्ट्रवाद’ एक विवादित मुद्दा बन गया है और सिर्फ "भारत माता की जय" जैसे नारे के एक लिटमस टेस्ट में सिमट गया है. भगत सिंह के भी इमेज को अपनी सहूलियत से बदलने की कोशिश है.

जो भगत सिंह ताउम्र खुद को नास्तिक बताते रहे, देशभक्ति को धर्म से परे बताते रहें, आज उनके पगड़ी को भी सिर्फ एक रंग में दिखाया जा रहा है. ऐसे में याद करते हैं भगत सिंह के कुछ प्रसिद्ध विचारों को और उसे आज के भारत पर कस कर देखते हैं.

रुढ़िवादी सोच के खिलाफ खड़े भगत सिंह

शहीद भगत सिंह अपने छोटी लेकिन समृद्ध जीवनकाल में रूढ़िवादी सोच को चुनौती देते नजर आते हैं. वो आलोचना करने की सीख भी देते हैं. भगत सिंह का विचार है कि “जो भी व्यक्ति विकास के लिए खड़ा है,उसे हर एक रुढ़िवादी चीज की आलोचना करनी होगी, उसमें अविश्वास करना होगा, तथा उसे चुनौती देनी होगी.”

Bhagat Singh की 114वीं जयंती आते-आते भारत में ‘राष्ट्रवाद’ की परिभाषा बदल दी गई है

रुढ़िवादी सोच के खिलाफ खड़े भगत सिंह

(ग्राफिक्स: मोहन सिंह) 

लेकिन क्या आज के भारत में उन रूढ़िवादी मान्यताओं को चुनौती देने की खुली आजादी है? कई उदाहरण ऐसे हैं जहां वो संकीर्ण सोच हमारे नीति-निर्माता और सरकारी तंत्र में नजर आया. जैसे उत्तराखंड के पूर्व सीएम तीरथ सिंह रावत का बयान कि “औरतों को फटी हुई जींस में देखकर हैरानी होती है. सवाल उठता है कि इससे समाज में क्या संदेश जाएगा?” कोरोना जैसे जानलेवा मुद्दे पर अवैज्ञानिक नजरिए को हमारे मंत्री बढ़ावा देते नजर आते हैं.

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आलोचना और स्वतंत्र विचार की अहमियत समझाते भगत सिंह

भगत सिंह के जीवन की कहानी से एक चीज तो जग जाहिर है- वो शासन, चाहे कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो, उसकी आलोचना करने और उसके विरोध में खड़े होने से नहीं हिचके. उन्होंने कहा था “निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार, ये क्रांतिकारी सोच के दो अहम लक्षण हैं.”

Bhagat Singh की 114वीं जयंती आते-आते भारत में ‘राष्ट्रवाद’ की परिभाषा बदल दी गई है

आलोचना और स्वतंत्र विचार की अहमियत समझाते भगत सिंह

(ग्राफिक्स: मोहन सिंह)

लेकिन आज आलम यह है कि सरकार की आलोचना का मतलब देशद्रोह बना दिया गया है. सेडिशन, रासुका और UAPA का इस्तेमाल सरकार अपनी मर्जी से कर रही है और इसपर अदालत भी कई बार उसे लताड़ चुकी है. सरकार के खिलाफ बोलने वाले कई पत्रकारों का मुंह बंद कराए जाने के आरोप लगे हैं.

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धर्म पर भगत सिंह

आज के विपरीत भगत सिंह के राष्ट्रवाद में धर्म का कोई स्थान नहीं. निजी जिंदगी में भी उन्होंने ईश्वर को मानने से इंकार कर दिया था. भगत सिंह अपने नास्तिक होने की बात को छुपाते नहीं हैं बल्कि 23 से भी कम उम्र में “मै नास्तिक क्यों हूं” नामक ऐसा लेख लिखते हैं जो कालजयी है.

Bhagat Singh की 114वीं जयंती आते-आते भारत में ‘राष्ट्रवाद’ की परिभाषा बदल दी गई है

धर्म पर भगत सिंह

(ग्राफिक्स: मोहन सिंह)

आश्चर्य है कि आज के भारत में सेक्युलर होने को एक बड़ी भीड़ ने गाली बना दिया है. धर्म के नाम पर आए दिन मॉब लिंचिंग हो रही है और मंदिर-मस्जिद के नाम पर हो रहे झगड़े.

भगत सिंह आज “आंदोलनजीवी” होते

ध्यान देने कि बात है कि भगत सिंह सिर्फ औपनिवेशिक शासन के खिलाफ आवाज नहीं उठाते बल्कि समय-समय पर भारतीय नेताओं को भी रियलिटी चेक देते रहे. उनके लिए अधिकारों के लिए आंदोलन करना और क्रांति करना जरूरी अधिकार है. उन्होंने कहा था “क्रांति मानव जाति का एक अपरिहार्य अधिकार है.”

Bhagat Singh की 114वीं जयंती आते-आते भारत में ‘राष्ट्रवाद’ की परिभाषा बदल दी गई है

भगत सिंह आज “आंदोलनजीवी” होते

(ग्राफिक्स: मोहन सिंह)

लेकिन आज भारत में खुद प्रधानमंत्री किसान आंदोलन के बीच संसद में कहते हैं कि “एक नई जमात पैदा हुई है आंदोलनजीवी की और वो परजीवी होते हैं”. आश्चर्य है. इतना ही नहीं केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने भरी सभा में लगवाए थे ‘गोली मारो...’ के नारे.

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प्यार आदमी के चरित्र को ऊपर उठाता है- भगत सिंह

भले ही भगत सिंह की माशूका सिर्फ आजादी रही हो लेकिन वो प्यार करने के पक्षधर रहे. उन्होंने कहा था “प्यार हमेशा आदमी के चरित्र को ऊपर उठाता है, यह कभी उसे कम नहीं करता है”.

Bhagat Singh की 114वीं जयंती आते-आते भारत में ‘राष्ट्रवाद’ की परिभाषा बदल दी गई है

प्यार आदमी के चरित्र को ऊपर उठाता है- भगत सिंह

(ग्राफिक्स: मोहन सिंह)

क्या आजादी के 7 दशक बाद में भारत में आसानी से धर्म-जाति के परे प्यार की आजादी है. नहीं. कभी कथित लव जिहाद तो कभी जाति के नाम पर प्यार करने वालों को समाज और सत्ता सता रही.

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