“मुझे मेरी अम्मी के पास जाना है, मुझे बाबा के पास जाना है..” सिसकती हुई आवाज में एक दूध सी सफेद बच्ची. चेहरे पर कुछ गहरे कटे हुए निशान. बिखरे हुए भूरे रंग के बाल, बादामी रंग की फूली हुई आंखें, आंखों के नीचे का नीले पड़े निशान... कपड़े कुछ जगहों से इस तरह फटे हुए मानों ये पुराने नहीं बल्कि किसी ने नोचे हों, खींचे हों, फाड़े हों. बिना चप्पल के सूझे हुए पांव.
तभी पीछे से एक आवाज आती है... गुड़िया तुम क्यों रो रही हो? अरे तुम्हें पहले तो कभी नहीं देखा यहां? तुम तो अभी बहुत छोटी हो? तुम यहां इस हालत में कैसे आ सकती हो? क्या नाम है तुम्हारा?
अनजान सी दुनिया में अपनेपन से भरी आवाज सुनकर बच्ची दबी जुबान में जवाब देती है, मैं गुड्डी हूं... कश्मीर के कठुआ से.
गुड्डी तुम तो मेरे हिंदुस्तान की हो.
लेकिन तुम यहां? क्या तुम्हारे साथ भी वही हुआ, जो मेरे साथ हुआ था? क्या तुम भी मेरी ही तरह देर रात, किसी बस में सवार होकर कहीं जा रही थी. क्या तुम भी देर रात अपने किसी दोस्त के साथ थी? या फिर तुमने दूसरी लड़कियों की तरह छोटे कपड़े...? सॉरी सॉरी गुड्डी मुझे माफ कर दो.. तुम तो बहुत छोटी हो, मुझे तुमसे ये सब नहीं कहना चाहिए. लेकिन तुम यहां कैसे आ गई? क्या इन 6 सालों में वहां कुछ नहीं बदला?
एक सांस में एक साथ पूछे गए इतने सवाल सुनकर गुड्डी पहले थोड़ा घबराई, और फिर सवालों के जवाब के बजाय उसके कंपकपाते होठों से सिर्फ इतना ही निकला- आप कौन हैं? और 6 साल पहले क्या हुआ था?
16 दिसंबर 2012 की मनहूस रात
गुड्डी के सिर पर हाथ रखते हुए सफेद लिबास में खड़ी लड़की ने कहा- मैं निर्भया हूं.
16 दिसंबर 2012 को, ठिठुरती ठंड में कुछ इंसानों ने अपनी हैवानियत दिखाई थी....लेकिन जब मेरे साथ कुछ इंसानों ने इंसान ना होने का सबूत दिया तब बहुत से इंसान ही सड़क पर आये थे, तिरंगा लेकर, कैंडल लेकर. हाथों में तख्तियां लेकर, उसपर लिखा था ‘बलात्कारियों को फांसी दो’, ‘जस्टिस फॉर निर्भया’ और ना जाने क्या-क्या. चीखते-चीखते लोगों के गले छिल गए थे कि ‘अब और निर्भया नहीं चाहिए, इंसाफ चाहिए, इंसाफ चाहिए...’
यहां तक कि कानून में बदलाव हुए, रेप पीड़ित लड़कियों के लिए निर्भया फंड बना ताकि उनकी मदद की जा सके..
इतना कहते कहते निर्भया की आंखों में हजारों तस्वीरें गईं. सामने खड़ी गुड्डी भी उसे एकटक देख रही थी, उसकी आंखों में भी आंसू थे.
बताओ ना इतने सालों में अपने देश में क्या बदल गया?
लेकिन निर्भया ने सामने खड़ी मासूम को हिम्मत देते हुए कहा- गुड्डी तुम रो मत, मैं हूं तुम्हारे साथ.. बताओ ना इतने सालों में अपने देश में क्या-क्या बदल गया? तुम यहां क्यों आ गई, कैसे आ गई? तुम तो अभी उस उम्र में भी नहीं हो.
गुड्डी की आंखों से आंसू का एक बूंद उसके गाल पर बने जख्मों से होते हुए उसके होंठों के बगल के जख्म पर ठहर गया. गुड्डी बोली- हां, दीदी बहुत कुछ बदल गया, बहुत कुछ..
आपको इंसाफ दिलाने के लिए लोग तिरंगा लेकर सड़कों पर थे, लेकिन इस बार लोग तिरंगा लेकर सड़कों पर तो जरूर निकले, लेकिन मेरे इंसाफ के लिए नहीं बल्कि बलात्कार के आरोपियों के लिए. आपके वक्त में लोगों का गला ‘बलात्कारियों को फांसी दो’ कहते-कहते छिल गया था, और मेरे वक्त आरोपी को बचाने के लिए लोग ‘भारत माता’ का नारा लगा कर भारत मां की बेटी के खिलाफ खड़े थे. आपके वक्त में वकील क्या, कोर्ट क्या, हर कोई बलात्कारियों को सजा दिलाने के लिए आवाज बुलंद कर रहा था. मेरे वक्त बलात्कारी को बचाने के लिए वकीलों की टीम ने मेरे इंसाफ के लिए पैरवी करने वालों को कोर्ट के दरवाजे पर ही घेर लिया था..
रेप में लोग धर्म ढूंढ़ रहे हैं
गुड्डी बोलते बोलते रुक जाती है. थोड़ा लड़खड़ाते हुए अपनी बातों को समेटती ही. फिर कहती है, देश इतना बदल गया कि 6 साल पहले इंसाफ की लड़ाई में हिंदू या मुसलमान नहीं बल्कि हिंदुस्तान शामिल था, आज कोई मेरा धर्म देख रहा है, तो कोई बलात्कारियों का.
कोई ये कह रहा है कि वो इस ‘धर्म’ का है इसलिए उसे बलात्कारी मत कहो, कोई कह रहा है छोड़ो जो हुआ सो हुआ बस पता लगाओ कि बलात्कारी का धर्म क्या है, उसी हिसाब से उसे टारगेट करेंगे.
दीदी मुझे बहुत डर लग रहा है, क्या यहां भी कोई हमारे साथ.... . निर्भया ने अपने आप को संभालते हुए बस इतना कहा- 'डरो मत गुड्डी, यहां इंसान नहीं, फरिश्ते रहते हैं.'
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