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अमित शाह के दौरे के बाद क्या जम्मू कश्मीर में विपक्षी पार्टियां जोश में आएंगी?

जम्मू और कश्मीर में नए सिरे से राजनीतिक सरगर्मियां देखी जा रही हैं.

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कश्मीर (Kashmir) फिर संकट की घड़ी से गुजर रहा है. इस संकट के कई पहलू हैं, राजनीतिक, सुरक्षा संबंधी और आर्थिक. हालांकि पिछले आठ महीनों में शहरी इलाकों में आतंकवादी घटनों की जानकारियां मिल रही थीं, लेकिन श्रीनगर में जो हद देखी जा रही है, उसकी उम्मीद किसी को नहीं थी.

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इसी तरह जम्मू और कश्मीर में नए सिरे से राजनीतिक सरगर्मियां देखी जा रही हैं. नेता लोग अपने पारंपरिक गढ़ों को छोड़कर बेहतर मौके तलाश रहे हैं.

नेताओं के लिए नए समीकरण कुछ अनूठे नतीजे दे सकते हैं. इसी तरह नए आर्थिक आंकड़े बताते हैं कि देश के बाकी के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुकाबले जम्मू-कश्मीर में बेरोजगारी बहुत जबरदस्त है. औद्योगिक इकाइयों पर कोविड-19 महामारी और राजनीतिक असंतोष, दोनों की दोहरी मार है. 85 प्रतिशत के बंद होने के आसार हैं.

इस सिलसिले में मोदी सरकार के आउटरीच प्रोग्राम के मद्देनजर गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) जम्मू-कश्मीर पहुंचे हैं. इसके अलावा सितंबर महीने से 70 से ज्यादा केंद्रीय मंत्री घाटी की सैर कर चुके हैं. इन मंत्रियों में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, जूनियर पर्यटन मंत्री अजय भट्ट, जूनियर कम्यूनिकेशन मंत्री देवुसिंह चौहान वगैरह शामिल हैं.

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दुबई सरकार के साथ एमओयू

सोमवार को केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने दुबई सरकार के प्रतिनिधियों के साथ उच्च स्तरीय मीटिंग की. इस दौरान इंडस्ट्रियल पार्क, आईटी टावर्स, मल्टीपर्पज टावर्स, लॉजिस्टिक्स, मेडिकल कॉलेज, सुपर-स्पैशियैलिटी अस्पताल और दूसरे रियल एस्टेट प्रॉजेक्ट्स बनाने के लिए समझौता ज्ञापन यानी एमओयू पर दस्तखत किए गए.

सोमवार के समझौते को जम्मू-कश्मीर प्रशासन की सबसे बड़ी उपलब्धियों के तौर पर दिखाया गया, चूंकि यह केंद्र शासित प्रदेश बढ़ती बेरोजगारी के मसले से जूझ रहा है.

अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 रद्द करने के बाद यह गृह मंत्री का पहला जम्मू-कश्मीर दौरा है. हालांकि तब से अब तक बहुत कुछ बदल चुका है. उनके दौरे की प्राथमिकताओं में से एक था, घाटी में पिछले दिनों हुई हिंसा के मद्देनजर सुरक्षा वार्ता करना है.

हाल के हमलों की जिम्मेदार आतंकवादी समूह द रेज़िज्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने ली है, जिसे पुलिस लश्कर-ए-तैय्यबा का नया वर्जन बताती है. मशहूर फार्मासिस्ट मक्खनलाल बिंद्रू और सरकारी स्कूल की प्रिंसिपल सतविंदर कौर की हत्या के बाद से अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों में दहशत फैल गई है.
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हिंसा का बढ़ना

वैसे पंडित समुदाय के कई लोग महफूज जगहों पर चले गए, चूंकि पुलिस को यह जानकारी मिली थी कि उन्हें निशाना बनाया जा सकता है. कई लोग बाहर निकलने से बच रहे हैं कि कहीं वे गोलीबारी के बीच फंस न जाएं.

श्रीनगर की दूसरी जगहों पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम हैं, जहां कुछ साल पहले तक हालात संतोषजनक थे. सोमवार को श्रीनगर में महिला राहगीरों की तलाशी ली जा रही थी. केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की महिला कर्मी उनके बैगों की जांच कर रही थीं.

इस साल शहर के आस-पास के इलाकों में दर्जन भर से ज्यादा मुठभेड़ें हो चुकी हैं. श्रीनगर में इस साल सबसे ज्यादा हिट एंड रन हमले हुए हैं. इनमें मशहूर कृष्णा ढाबा के मालिक के बेटे आकाश मेहरा और कई दूसरे विशेष पुलिस अधिकारी और पुलिसकर्मियों की हत्याएं शामिल हैं.

श्रीनगर पुलिस भी दोपहिया वाहनों के खिलाफ अभियान छेड़ती हुई दिख रही है. कई इलाकों में पुलिस सवारों को रोकने का इशारा करती दिखती है और फिर उनके वाहनों की तलाशी ली जाती है.
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ऐसी आशंका है कि हमलावर स्कूटर और बाइक्स जैसे दोपहिया वाहनों का इस्तेमाल कर रहे हैं. ज्यादातर हमलों को अंधेरे में अंजाम दिया जाता है. 8 अक्टूबर से अब तक कश्मीर घाटी में करीब 11 बार मुठभेड़ें हुई हैं जिनमें 17 आतंकवादी मारे गए हैं. पुलिस का कहना है कि आतंकवादियों में वे लोग भी शामिल हैं जिनका इस साल हुई 28 हत्याओं में हाथ रहा है. मारे गए आतंकवादियों में इम्तियाज अहमद डार, मुख्तार शाह, शम्स सोफी, शाहिद बशीर और उमर कांडे शामिल हैं. ये सभी 2021 में हुई हत्याओं में शामिल थे.

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बातचीत का क्या मतलब है- क्षेत्रीय पार्टियां पूछती हैं

गृह मंत्री का असली इम्तिहान यही है. हाल के महीनों के फेरबदल को छोड़ दिया जाए, तो मुख्यधारा की राजनीति काफी ठहरी हुई सी है. इन दिनों पार्टियां अपनी प्रेस विज्ञप्तियों में लोगों को फील गुड कराने की कोशिश में हैं. ज्यादातर क्षेत्रीय नेता धार्मिक त्योहारों की शुभकामनाएं देकर तसल्ली कर रहे हैं.

यह पत्रकार मुख्यधारा की कई क्षेत्रीय पार्टियों के सदस्यों के संपर्क में रहा है. ज्यादातर ने कहा है कि उन्हें गृह मंत्री से मुलाकात का न्यौता नहीं मिला है. नेशनल कांफ्रेंस के प्रवक्ता इमरान नबी डार ने कहा, “अब तक कुछ नहीं है. पार्टी ने इस पर कोई फैसला भी नहीं किया है. अगर कहीं से कोई न्यौता मिलता है तब हम तय करेंगे. जब हमें कुछ संकेत मिलता है तब पार्टी फैसला लेगी.”

क्षेत्रीय राजनीति में आखिरी हलचल तब हुई थी, जब जून में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 नेताओं के समूह को दिल्ली बुलाया और उनसे बातचीत की थी.

लेकिन क्षेत्रीय नेता कहते हैं कि उस पर कोई प्रगति नहीं हुई है.पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रवक्ता मोहित भान कहते हैं, “उस पर आगे कोई तरक्की नहीं हुई. इसलिए किसी दूसरे मंत्री से मिलने का क्या फायदा? हम सरकार के आला नेता से मिल लिए पर फिर भी कुछ नहीं हुआ.”
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भान का कहना है कि

सरकार को साफ करना चाहिए कि वह मीटिंग करने के बाद क्या कदम उठाने वाली है. “क्या यह सब देखने-दिखाने के लिए है? क्या यह मीटिंग किसी अंतरराष्ट्रीय दबाव में की जा रही है? या वे लोकतांत्रिक व्यवस्था में भरोसा नहीं करते और नहीं चाहते कि जम्मू कश्मीर में हालात सामान्य हों. केंद्र सरकार को इन सवालों के जवाब देने होंगे. हम उन्हें इसके बारे में क्या बता सकते हैं?”

‘मुख्यधारा’ के मायने ही बदल गए हैं

मोहित भान ने कहा कि पिछली बार प्रधानमंत्री की बैठक से पहले वे लोग वहां नहीं जाना चाहते थे. “हमें इस बारे में संदेह था कि वे लोग इस बैठक को गंभीरता से लेंगे या नहीं. लोगों का दबाव था कि असल मुद्दों को उठाया जाए. इसलिए हम लोग उनसे मिले.लोकतंत्र ऐसे ही काम करता है. हम सरकार के मुखिया से मिल रहे थे. हम उस कुर्सी की इज्जत कर रहे थे और ऐसे उपाय करने की बात कह रहे थे कि जो शांति बहाल करने, लोगों की उम्मीदों को पूरा करने का रास्ता साफ करे. हमने लोगों की रिहाई वगैरह की बात की. लेकिन फिर इस पर बात आगे नहीं बढ़ी. हमने भरोसा कायम करने की सलाह दी. लेकिन वह भी नहीं हुआ.” वह कहते हैं.

पीपुल्स कांफ्रेंस के स्रोत भी कहते हैं कि गृह मंत्री की बैठक के बारे में हमने अब तक कोई योजना नहीं बनाई है. विशेषज्ञों का मानना है कि केंद्र सरकार ने इस क्षेत्र में राजनीति की भाषा ही बदल दी है.

उनके लिए मुख्यधारा के मायने ही बदल गए हैं- हम आम तौर पर एनसी, पीडीपी को मुख्यधारा की पार्टियां कहते हैं. लेकिन अब यह पीपुल्स कांफ्रेंस, अपनी पार्टी, या जम्मू कश्मीर बीजेपी हो गई है.यह इस बात पर निर्भर करता है कि केंद्र इसे कैसे लेता है. अब वे लोग राजनीति की परिभाषा गढ़ रहे हैं. वे लोग बता रहे हैं कि कौन वहां कौन है.”
नूर अहमद बाबा, पॉलिटिकल साइंटिस्ट और एकैडमिक
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लेकिन बीजेपी का कैडर खुश है

अमित शाह के दौरे से बीजेपी का क्षेत्रीय कैडर जोश में है. उसे महसूस हो रहा है कि पिछले महीने 70 केंद्रीय मंत्रियों के दौरे से घाटी में बहुत कुछ बदल गया है. बीजेपी के मीडिया सेल के प्रभारी मंजूर बट कहते हैं, “सभी 77 मंत्री जम्मू कश्मीर में उन इलाकों तक गए, जहां तक अब तक कोई नेता नहीं गया है.”

“हर मंत्री वहां दो-दो दिन रहे. नागरिक उड्डयन मंत्री ने दो हवाईअड्डों की घोषणा की, खेल मंत्री ने खेल गतिविधियों के लिए 100 करोड़ रुपए के पैकेज की घोषणा की. नई प्रक्रिया शुरू हुई है. अब इस कार्यक्रम का समापन माननीय प्रधानमंत्री के दौरे से होगा.”

बट का कहना है -

हाल के हमले एक तरह से कौंध थी, लेकिन इससे कश्मीर की ‘विकास प्रक्रिया’ पर बुरा असर नहीं होगा.“सभी मंत्री हमारे स्थानीय कार्यकर्ताओं से मिले. गृह मंत्री की भी ऐसी ही योजना है कि वह हमारी स्थानीय इकाइयों के सदस्यों से मिलेंगे. श्री शाह सिर्फ पार्टी के गृह मंत्री नहीं, पूरे देश के गृह मंत्री हैं. मेरा मानना है कि सभी दूसरी पार्टियों के लोगों को उनसे मिलने की कोशिश करनी चाहिए.
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(शाकिर मीर एक फ्रीलांस पत्रकार हैं और टाइम्स ऑफ इंडिया, द वायर के लिए भी लिखते हैं. उनका ट्विटर हैंडिल @shakirmir है. यह एक ओपिनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है)

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