कोई सरकार अच्छी है या बुरी, इसका फैसला उसके कामकाज के आधार पर किया जाता है. हालांकि जब सरकार एक साल पुरानी हो, तो परफॉर्मेंस के साथ उसके इरादे भी देखे जाते हैं. 19 मार्च को यूपी में योगी आदित्यनाथ सरकार को आए एक साल हो जाएगा. इस सरकार ने कुछ अच्छी नीतियां पेश की हैं, भले ही उन्हें ठीक तरह से लागू न किया गया हो. ऐसा ही एक फैसला बूचड़खानों पर सख्ती है.
अमेरिका और यूरोप में आपको मीट की दुकानें दिखेंगी, लेकिन वहां आवासीय कॉलोनियों में कटते हुए पशु नहीं दिखेंगे. हालांकि भारत में कसाई आवासीय कॉलोनियों में भी पशु काटते हुए दिख जाते हैं. ऐसे में योगी का बूचड़खानों को रेगुलेट करने का फैसला सही है. हालांकि उन्होंने इस नीति को ठीक से लागू नहीं किया.
बिना योजना के और बिना नोटिस के बूचड़खानों पर सख्ती की गई, जिससे बड़ी संख्या में लोगों का रोजगार छिन गया.
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सांप्रदायिकता, लड़कियों का उत्पीड़न बरकरार
कसाइयों में ज्यादातर मुसलमान हैं. इसलिए बूचड़खानों पर सख्ती को सांप्रदायिक माना गया. उसकी वजह यह है कि बीजेपी मुसलमानों को निशाना बनाकर हिंदू वोटरों को गोलबंद करने की कोशिश करती आई है और मुख्यमंत्री आदित्यनाथ की छवि भी कट्टर हिंदू नेता की है. इस नीति के ऐलान के बाद कई शहरों में पुलिस वाले लीगल बूचड़खानों से भी रिश्वत लेने लगे.
योगी सरकार का दूसरा बड़ा फैसला पुलिस थानों में कथित एंटी-रोमियो स्क्वॉड खोलना था. इस पर भी ठीक से अमल नहीं हुआ. पुलिसवालों को यह नहीं बताया गया कि सार्वजनिक जगहों पर महिलाओं का उत्पीड़न रोकने के लिए उन्हें क्या करना है और क्या नहीं. इसलिए लड़का-लड़की के साथ जाने पर पुलिस वालों ने उन्हें रोका और परेशान किया. कई बार तो उन्हें पुलिस थाने में लाया गया. इससे कुछ समय तक तो लगा कि यूपी में पुलिस राज आ गया है.
यूपी ने बालिग नौजवानों के साथ भी अपराधियों जैसा सलूक किया गया. एंटी-रोमियो स्क्वॉड का ऐसे लोगों ने समर्थन किया, जिनका मानना है कि यंग लड़कों और लड़कियों को करीब नहीं आना चाहिए. यह बीजेपी की सांस्कृतिक विचारधारा से मेल खाता है. इस पॉलिसी के बावजूद यूपी में लड़कियों का उत्पीड़न नहीं रुका है.
पुलिस राज की ओर बढ़ रहा है यूपी
योगी सरकार ने ‘मुठभेड़’ की पॉलिसी भी अपनाई है. हमारे देश में मुठभेड़ का मतलब है कि पुलिस किसी अपराधी को गिरफ्तार करती है, उसे भागने को कहती है और फिर गोली मारकर उसकी हत्या कर दी जाती है. 15 फरवरी को योगी ने विधानसभा में बताया था कि उनके कार्यकाल में 1,200 मुठभेड़ में 40 अपराधियों को मार गिराया गया. इस पर सरसरी नजर डालने से ही पुलिस की गड़बड़ी का पता चल जाता है.
पूर्व पुलिस अधिकारी प्रकाश सिंह ने हाल में लिखा था कि इस बारे में स्पष्ट गाइडलाइंस तय हैं. एक गाइडलाइन यह है कि जहां भी पुलिस फायरिंग में दो या उससे अधिक लोगों की जान जाती है, राष्ट्रीय पुलिस आयोग को उसकी न्यायिक जांच करवानी पड़ती है.
दूसरी, पुलिस कार्रवाई में किसी के मारे जाने पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को मजिस्ट्रेट जांच करवानी होती है.
तीसरी, सुप्रीम कोर्ट का फैसला है कि सीआईडी या किसी और पुलिस स्टेशन के मुठभेड़ करने पर उसकी स्वतंत्र जांच होनी चाहिए. क्या योगी सरकार इन गाइडलाइंस का पालन कर रही है, इसकी जानकारी नहीं है?
हमारे देश में पुलिस अपनी ताकत का दुरुपयोग करती आई है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2000-2017 के बीच एनएचआरसी ने देशभर में 1,782 फर्जी मुठभेड़ के मामले दर्ज किए थे. इनमें यूपी का योगदान 44.55 फीसदी है.
योगी सरकार के एजुकेशन रिफॉर्म का पॉजिटिव असर हो सकता है
आदित्यनाथ सरकार के 12वें महीने में करीब 66.37 लाख छात्र 10वीं और 12वीं की परीक्षा दे रहे हैं. उनके नकल पर सख्ती करने से करीब 10 लाख छात्र इन परीक्षाओं में शामिल नहीं हुए. वह शिक्षा माफिया की नकेल कसने की कोशिश कर रहे हैं.
पहली नजर में यह बहुत सख्त कदम लग सकता है, लेकिन इस पॉलिसी को देशभर में लागू करना चाहिए. मुख्यमंत्री 12वीं तक मुफ्त शिक्षा की एक पॉलिसी का ऐलान करने जा रहे हैं, जिससे सभी समुदाय के लोगों को फायदा होगा.
हमारे देश में मुफ्त शिक्षा का मतलब स्कूल फीस माफ करना है. हालांकि इसके तहत किताबें, स्कूल ड्रेस, खाना और हॉस्टल की भी मुफ्त व्यवस्था की जानी चाहिए. कम से कम गरीबी रेखा से नीचे लोगों को तो यह सुविधा मिलनी ही चाहिए.
25 फरवरी को शाहजहांपुर में योगी ने एक रैली में कहा था, '‘राज्य की पिछली सरकारों ने 15 साल में वंशवाद, जातिवाद और तुष्टिकरण की राजनीति की, जबकि 11 महीने की उनकी सरकार के कार्यकाल में काफी विकास हुआ है.’' यह बयान गुमराह करने वाला है.
योगी सरकार भी तुष्टिकरण की राजनीति कर रही है. उसने मानसरोवर जाने वाले हिंदू तीर्थयात्रियों की सब्सिडी बढ़ाकर डबल कर दी है. यह काम ऐसे समय में किया गया है, जब बीजेपी हज सब्सिडी खत्म करने का श्रेय ले रही है.
अब तक बीजेपी की जो सरकारें आई हैं, वे सड़क बनाने का श्रेय ले सकती है. अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने इस पर काफी ध्यान दिया था. हालांकि मनमोहन सिंह, अखिलेश यादव, नीतीश कुमार और दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भी रोड इंफ्रास्ट्रक्चर पर काफी काम किया है.
इसे छोड़ दें, तो आज देश की अर्थव्यवस्था की हालत बहुत अच्छी नहीं है. यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी नॉन-परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) की तरह दिख रहे हैं.
(तुफैल अहमद मिडिल-ईस्ट मीडिया रिसर्च इंस्टीट्यूट, वाशिंगटन डीसी में साउथ एशिया स्टडीज प्रोजेक्ट के डायरेक्टर हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
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