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‘अच्छे दिन’ की रिपैकेजिंग, जय बांग्ला Vs सोनार बांग्ला एक विडंबना

अंग्रेजों ने बंगाल को बांटा तो टैगोर का दर्द जिस कविता में छलका वो थी ‘आमार सोनार बांग्ला’

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छह सात पहले की बात है. देश ने एक ख्वाब खरीदा था-अच्छे दिन आएंगे. आए या नहीं? खरीदार जानता है. इस सुपरहिट ख्वाब की खुमारी में मार्केटिंग 'कंपनी' अब भी है. इसे अब नए सूबे में रिपैकेजिंग कर उतारा है. प्रोडक्ट का नया नाम है सोनार बांग्ला. जिनका ख्वाब टूटा है उनकी समझ का फेर है कि अच्छे दिन से तात्पर्य क्या था, सोनार बांग्ला में क्या चमकाना है.

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सोनार बांग्ला का विजन

बीजेपी ने अपने बंगाल मेनिफेस्टो, 'सोनार बांग्ला संकल्प पत्र' में वादा किया है कि जीती तो पहली कैबिनेट बैठक में ही CAA लागू करेगी. ये वही CAA है जिसके खिलाफ AIADMK है, जो तमिलनाडु में बीजेपी की सहयोगी है. जिसको लेकर शाहीनबाग की दादियों ने हाड़ कंपाया, दिल्ली ने दंगे झेले और देश अब भी दाग पर दाग झेल रहा है (इंटरनल मैटर बताने से दाग अच्छे नहीं हो जाएंगे). कहने वाले कहेंगे कि जब तक मीडिया इन विरोधाभासों पर टीवी की पिद्दी खिड़कियों में कठपुतलियां बिठाकर डिनर टाइम डिबेट न करे, बंगालियों को इस गड़बड़ी का कांटा नहीं गड़ेगा. या गड़ेगा? बीजेपी ने वादा किया है कि घुसपैठियों को रास्ता नहीं मिलेगा और शरणार्थियों को 10 हजार रुपए हर साल.

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घोषणापत्र में लिखी बातों से ज्यादा उद्घोष बाहरी बनाम बंगाली, सम्मान की लडाई, जय श्रीराम बनाम चंडी पाठ, बेटी-बुआ, नंदीग्राम का गद्दार, असली चोट बनाम नकली चोट और सोनार बांग्ला बनाम जय बांग्ला का है. फोकस क्लीयर है. सोनार बांग्ला का विजन हाजिर है.

फ्री,फ्री, फ्री

ये शब्द घोषणापत्र में बार-बार सुनाई पड़ता है. जैसे राजू रस्तोगी की तरह कोमा में पड़ी किस्मत को जगाने की कोशिश हो रही हो.

ढेर सारी नौकरियां, ढेर सारी मुफ्त की योजनाएं. महिलाओं के लिए केजी से पीजी तक मुफ्त शिक्षा, महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा, पुरोहितों को 8 के बजाय 30 हजार का भत्ता, भूमिहीन किसानों को 4 हजार रुपए, किसानों को 10 हजार (ऐंवी दिल्ली बॉर्डर पर बैठे किसान बीजेपी को दुश्मन बताते हैं). वैसे 'मुफ्त' की करछी से वोट की मलाई काछने की कोशिश में TMC भी है. विधवा महिलाओं को 1 हजार, पुरोहितों को 8 के बजाय 10 हजार, किसानों को 6 हजार, मतलब गदर वादे. ये मुफ्त का माल आएगा कहां से, कायाकल्प के लिए विजन क्या है, बताने की जरूरत नहीं. कोई पूछने वाला नहीं. बीजेपी हर परिवार को एक रोजगार देगी तो टीएमसी हर साल पांच लाख रोजगार देगी. देंगी, मतलब कहा है कि देंगी. वैसे भी कौन पूछेगा कि दीदी नौकरी इतनी दी होती तो 'चाकरी' बड़ा मुद्दा नहीं बनती. और बीजेपी से नेशनल लेवल पर बेहिसाब बेरोजगारी का हिसाब मांगने वाला कोई माई का लाल बचा ही नहीं. कोई पूछता तो प्रोडक्ट की रिपैकेजिंग ही क्यों होती?

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सोनार बांग्ला Vs जय बांग्ला

जय बांग्ला बनाम सोनार बांग्ला की लड़ाई चल रही है. बंगाल इन नारों में बंट गया है. विडंबना देखिए कि 1905 में अंग्रेजों ने बंगाल को बांटा तो टैगोर का दर्द जिस कविता में छलका वो थी 'आमार सोनार बांग्ला'.

टीएमसी का नारा 'जय बांग्ला' मशहूर बंगाली कवि काजी नजरूल इस्लाम की कविता 'पूर्ण अभिनंदन' से लिया गया है. इन दोनों को बांग्लादेश ने गले लगाया. सोनार बांग्ला बांग्लादेश का नेशनल एंथम है तो जय बांग्ला राष्ट्रीय स्लोगन.

ये भी महज संयोग ही है कि इन दोनों को अपनाने वाले बांग्लादेश की तरक्की की गूंज पश्चिम तक सुनाई दे रही है.

पश्चिम से अमेरिका के चुनाव याद आते हैं. 'लेट्स मेक अमेरिका ग्रेट अगेन' को अमेरिका ने नकार दिया. कहा ऐसी ग्रेटनेस नहीं चाहिए कि अमेरिकी समाज बंट जाए. पड़ोसी एक दूसरे से कट जाएं. प्रोग्रेसिव अमेरिका जीत गया. बहुत पहले सुना था- देश जो कल सोचता है बंगाल वो आज सोचता है. क्या अब भी ऐसा ही है?

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