महाराष्ट्र में एक गर्भवती दुष्कर्म पीड़िता ने एबाॅर्शन के लिए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) एक्ट की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है.
सुप्रीम कोर्ट ने पीड़िता की याचिका पर एटार्नी-जनरल और महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी किया है. याचिका में पीड़िता ने अपने भ्रूण के असामान्य विकास को देखते हुए 24 हफ्ते के गर्भ को खत्म कराने की इजाजत मांगी है.
जस्टिस जगदीश सिंह खेहर, कुरियन जोसेफ और अरुण मिश्र ने मेडिकल रिपोर्ट देखने के बाद बीती 20 जुलाई को इस पर सुनवाई करने का निर्देश दिया.
वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंसाल्वेस ने अदालत को बताया, कि मेडिकल रिपोर्ट के मुताबिक पीड़िता के गर्भ में पल रहा भ्रूण पूरी तरह विकसित नहीं हुआ है. बच्चे के पैदा होने के बाद बचने की संभावना कुछ ही घंटे है.
एमटीपी कानून को दी चुनौती
पीड़िता ने अदालत से अपने गर्भपात के लिए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) एक्ट 1971 की धारा 3 (2) तहत निर्देश देने की मांग की है. ऐसा इस वजह से है क्योंकि कानूनन 20 हफ्ते से अधिक के गर्भ को खत्म नहीं किया जा सकता.
एमटीपी कानून की धारा 5 के तहत 20 हफ्ते से अधिक के गर्भ को उस स्थिति में खत्म करने की इजाजत दी गई है जिसमें मां की जान को खतरा हो. मौजूदा मामले में मां की जान को तो खतरा नहीं है, लेकिन भ्रूण असामान्य है और उसके बचने की संभावना नहीं के बराबर है.
मौजूदा कानून में बदलाव की जरुरत
पीड़िता की ओर से कहा गया है कि 20 हफ्ते की ऊपरी सीमा के इस कानून को साल 1971 में सही ठहराया जा सकता था, जब टेक्नोलाॅजी इतनी विकसित नहीं थी. लेकिन अब तो 26 हफ्ते बाद भी सुरक्षित ढंग से एबाॅर्शन कराया जा सकता है.
कोलिन गोंसाल्वेस ने अमेरिका, ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका, डेनमार्क, चीन जैसे कई देशों उदाहरण दिया जहां एबाॅर्शन कानून में समय की कोई ऊपरी सीमा तय नहीं है.
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