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शादी टूटने पर पत्नी की जान लेने से बेहतर है तीन तलाक-AIMPLB

बोर्ड ने न सिर्फ तीन तलाक को सही करार दिया, बल्कि पुरुषों को बहु विवाह के अधिकार की भी वकालत की है.

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भारत
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ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPB) ने तीन तलाक को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज किए जाने की मांग की है.

बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में अपना हलफनामा दायर किया है. इस हलफनामे में कहा गया है कि,

पुरुषों के पास फैसला लेने की बड़ी ताकत होती है, जिस कारण शरिया ने पतियों को तलाक का अधिकार दिया है. उनसे जल्दबाजी में फैसले लेने की संभावना नहीं होती हैं और वे अपनी भावनाओं पर काबू रखने में ज्यादा सक्षम होते हैं.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड 

बोर्ड ने दी बेतुकी दलील

बोर्ड ने बेतुकी दलील देकर न सिर्फ तीन तलाक को सही करार दिया है बल्कि पुरुषों को बहु विवाह के अधिकार की भी वकालत की है. बोर्ड का कहना है कि इसका मकसद अवैध संबंधों को रोकना है और महिलाओं की रक्षा करना है.

बोर्ड का कहना है कि पति- पत्नी में संबंध खराब होने पर शादी को खत्म करने की कानूनी प्रक्रिया में काफी समय लगता है. ऐसे में पति अपनी पत्नी से छुटकारा चाहता है. कई मामलों में पति पत्नी की हत्या करके उससे छुटकारा पाने का अवैध तरीका आजमाते हैं. ऐसे में तीन तलाक एक बेहतर सहारा है.


याचिका के जवाब में दी दलील

सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की खंडपीठ ने तीन तलाक मामले पर खुद संज्ञान लिया था और मुख्य न्यायधीश टीएस ठाकुर से गुजारिश की थी कि वो एक स्पेशल बेंच बनाएं. यह बेंच पर्सनल लॉ की वजह से भेदभाव की शिकार मुस्लिम महिलाओं के मामले को देख रही है.

तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित करने के लिए शायरा बानो और कई मुस्लिम महिलाओं ने याचिका दाखिल की थी. उसी के जवाब में बोर्ड ने ऐडवोकेट एजाज मकबूल के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में 68 पेजों का एक हलफनामा दाखिल किया है.

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की दलील
सामाजिक सुधार के नाम पर पर्सनल लॉ को दोबारा से नहीं लिखा जा सकता. पर्सनल लॉ को चुनौती नहीं दी जा सकती क्योंकि ऐसा करना संविधान के पार्ट-3 का उल्लंघन होगा. संविधान के अनुच्छेद-25, 26 और 29 के तहत पर्सनल लॉ को संरक्षण मिला हुआ है.

बोर्ड ने कहा है कि 1985 में सुप्रीम कोर्ट के शाह बानो मामले में फैसले को पलटने के लिए राजीव गांधी सरकार ने जो कानून बनाया था, वह मुस्लिम महिलाओं की रक्षा के लिए काफी है.

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