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गिलगित-बाल्टिस्तान: कहानी घने अंधेरे में गुमनामी की

जानें 1947 में किन परिस्थितियों में पाकिस्तान ने इस क्षेत्र पर कब्जा किया.  

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स्वतंत्रता दिवस पर अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गिलगित-बाल्टिस्तान का जिक्र जम्मू एवं कश्मीर पर पाकिस्तान के दावे की हवा निकालने की रणनीति के तहत किया हो, लेकिन ऐसा कर उन्होंने रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण एक ऐसे क्षेत्र की तरफ ध्यान दिलाया है, जिसका इतिहास लगभग भुलाया जा चुका है. जिसका राजनीतिक भविष्य शक के घेरे में लिपटा हुआ है.

दस लाख से अधिक की जनसंख्या वाले विवादित गिलगित-बाल्टिस्तान में दो स्वतंत्रता दिवस मनाए जाते हैं. एक 14 अगस्त को, जब पाकिस्तान अपना स्वतंत्रता दिवस मनाता है दूसरा एक नवंबर को जब इलाका 1947 में हासिल की गई अपनी आजादी को याद करता है. यह आजादी महज 21 दिन तक टिक पाई थी. तब से आज तक पाकिस्तान का रुख शिया बहुल इस इलाके की संप्रभुता और संवैधानिक स्थिति को लेकर अस्पष्ट बना हुआ है.

गिलगित-बाल्टिस्तान - भूगोल

सिंधु नदी को अपने दामन में समेटे इस इलाके में बेहद खूबसूरत और माउंट एवरेस्ट से कुछ ही कम ऊंची पर्वत चोटियां हैं. पहले इसे उत्तरी इलाका (नार्दन एरियाज) कहा जाता था. इसके उत्तर में चीन और अफगानिस्तान, पश्चिम में पाकिस्तान का खैबर पख्तूनख्वा प्रांत और पूरब में भारत है, जिसमें दुनिया का सबसे ऊंचा युद्ध का स्थल सियाचिन शामिल है. अपने इसी भूगोल की वजह से यह इलाका भारत, चीन और पाकिस्तान, तीनों के लिए सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है.

कश्मीर में गिलगित की स्थिति

जहां तक भारत का सवाल है, तो गिलगित-बाल्टिस्तान 1947 तक वजूद में रही जम्मू एवं कश्मीर रियासत का हिस्सा रहा था और इसीलिए यह पाकिस्तान के साथ क्षेत्रीय विवाद का हिस्सा है. पाकिस्तान इसे नहीं मानता. इसका कहना है कि डोगरा शासकों ने 1846 में इस इलाके को जम्मू-कश्मीर में शामिल कर लिया था, नहीं तो यह कभी भी कश्मीर रियासत का हिस्सा नहीं रहा है.

अपने इस दावे के पक्ष में पाकिस्तान 1935 की उस लीज का उल्लेख करता है, जिसने अंग्रेजों को 60 साल तक इस क्षेत्र का नियंत्रण दे दिया था. पाकिस्तान का कहना है कि डोगरा राजतंत्र ने क्षेत्र पर नियंत्रण को खत्म कर दिया था और जम्मू एवं कश्मीर के अंतिम राजा महाराजा हरि सिंह का 73 हजार वर्ग किलोमीटर में फैले इस क्षेत्र पर कोई अधिकार नहीं था.

पाक को कैसे मिला गिल्गित-बाल्टिस्तान?

वर्ष 1947 में भारत विभाजन के समय यह क्षेत्र, जम्मू एवं कश्मीर की तरह न भारत का हिस्सा रहा और न ही पाकिस्तान का. डोगरा शासकों ने अंग्रेजों के साथ लीज डीड को पहली अगस्त 1947 को रद्द करते हुए क्षेत्र पर अपना नियंत्रण कायम कर लिया. लेकिन, महाराजा हरि सिह को गिलिगित स्काउट के स्थानीय कमांडर कर्नल मिर्जा हसन खान के विद्रोह का सामना करना पड़ा.

खान ने 2 नवंबर 1947 को गिलगित-बाल्टिस्तान की आजादी का ऐलान किया. इससे दो दिन पहले 31 अक्टूबर को हरि सिंह ने रियासत के भारत में विलय को मंजूरी दी थी. 21 दिन बाद पाकिस्तान इस क्षेत्र में दाखिल हुआ और सैन्य बल पर इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया.

जानें 1947 में किन परिस्थितियों में पाकिस्तान ने इस क्षेत्र पर कब्जा किया.  
गिलगित में काम करते पाकिस्तानी मजदूर(फोटो:IANS)

अप्रैल 1949 तक गिलगित-बाल्टिस्तान पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर का हिस्सा माना जाता रहा। लेकिन, 28 अप्रैल 1949 को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर की सरकार के साथ एक समझौता हुआ, जिसके तहत गिलगित के मामलों को सीधे पाकिस्तान की केंद्र सरकार के अधीन कर दिया गया. इस करार को कराची समझौते के नाम से जाना जाता है. अहम बात यह है कि क्षेत्र का कोई भी नेता इस करार में शामिल नहीं था.

गिल्गित में चीन का दांव

पाकिस्तान ने बाद में गिलगित-बाल्टिस्तान के सुदूर उत्तर में स्थित एक इलाके को कारकोरम राजमार्ग के निर्माण के लिए चीन को ‘गिफ्ट’ कर दिया. चीन इस इलाके के खनिजों और पन बिजली संसाधनों के दोहन के लिए इलाके में बड़े पैमाने पर निवेश किए हुए है. इस विवादित क्षेत्र में चीन की पहुंच और पाकिस्तान के दमनकारी शासन द्वारा कथित मानवाधिकार उल्लंघन ने इलाके में अलगाववादी आंदोलन को जन्म दिया.

जानें 1947 में किन परिस्थितियों में पाकिस्तान ने इस क्षेत्र पर कब्जा किया.  
गिलिगत में पाकिस्तानी कंस्ट्रक्शन साइट (फोटो:IANS)

लेकिन, इस आंदोलन की कम ही जानकारी मिलती है. बेहद कड़े संघीय कानून इलाके तक विदेशियों और मीडिया की पहुंच को लगभग असंभव बनाते रहे हैं. इसके बावजूद ऐसी रिपोर्ट मिल रही हैं कि क्षेत्र के लोग तीन हजार किलोमीटर लंबे चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का विरोध कर रहे हैं. इस परियोजना में चीन ने 46 अरब डालर का निवेश किया है. यह दक्षिण पाकिस्तान को सड़क, रेलवे और पाइपलाइन के एक जाल के जरिए पश्चिमी चीन से जोड़ेगी.

पाकिस्तान का कहना है कि यह परियोजना इस पिछड़े इलाके में सामाजिक-आर्थिक विकास का जरिया बनेगी. लेकिन, स्थानीय लोगों को डर है कि इस परियोजना का मकसद क्षेत्र की जनसंख्या को ही बदल देना है. लोग चाहते हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर विवाद के हल की प्रक्रिया में उन्हें भी हिस्सा बनाया जाए.

पाकिस्तान की दमनकारी नीति

पाकिस्तान गिलगित में किसी भी असंतोष को सैन्य शक्ति से कुचल देता है. गिलगित के सामाजिक कार्यकर्ता सेंगे हसनान सेरिंग ने कहा कि इसकी ताजा मिसाल संघीय योजना मंत्री एहसान इकबाल का वह बयान है, जिसमें उन्होंने कहा है कि चीन-पाकिस्तान गलियारे का विरोध करने वालों पर बेहद कड़ा आतंकवाद रोधी कानून लगाया जाएगा. सेंरिंग वाशिंगटन स्थित इंस्टीट्यूट फार गिलगित-बाल्टिस्तान स्टडीज के अध्यक्ष हैं और क्षेत्र के आंदोलनों के समर्थक हैं.

सरकार की चेतावनी उस वक्त आई है जब अलगाववादी अवामी एक्शन कमेटी आफ गिलगित-बाल्टिस्तान ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा परियोजना को वापस लेने के लिए अनिश्चितकालीन हड़ताल का आह्वान किया है.

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