6 अक्तूबर. साल था 1866. यानी 150 साल पहले. जगह- अमेरिका का इंडियाना. अमेरिका की पटरियों पर रेल दौड़ते अभी तीन दशक ही बीते थे. रोज की तरह भाप के इंजन से चलती वो रेल पूर्व की ओर बढ़ रही थी. मौसम खुशगवार था. न ज्यादा ठंडा, न ज्यादा गरम. ओहायो-मिसिसिपी के नाम से पहचानी जानी वाली उस रेलगाड़ी को इंडियाना राज्य के जैक्सन कंट्री इलाके के पास जबरन रुकवा लिया जाता है. नकाब पहने कुछ बदमाश ट्रेन में दाखिल होते हैं. उनके पास हथियार भी हैं.
ट्रेन ऐसे इलाके में रुकवायी जाती है जहां ज्यादा बसावट नहीं है. ताकि, न तो पुलिस और कानून उन तक पहुंच पाए और न ही आसपास खड़े लोग कोई नुकसान पहुंचाएं. ध्यान रहे ये 1866 का साल है. अमेरिका, 4 साल तक चली सिविल वॉर के जख्मों से उबर रहा था. कहीं गुस्सा उबल रहा था तो कहीं लूटपाट की घटनाएं बढ़ रही थीं. बस, अब तक ये चलती रेलगाड़ियों तक नहीं पहुंची थीं.
6 अक्तूबर 1866 को ये भरम भी टूट गया. नकाबपोश बदमाश ट्रेन में घुस गए. पहले एक तिजोरी को खाली किया गया. दूसरी तिजोरी को ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया. जिसके बाद बदमाश ट्रेन से कूद गए. ये पूरी कहानी अमेरिकन लाइब्रेरी के रिकॉर्ड में दर्ज है.
इस डकैती में रेलवे को 13 हजार डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा. आज ये रकम छोटी लग सकती है. लेकिन, जरा सोचिए, बात 150 साल पहले की हो रही है. ब्यूरो ऑफ लेबर स्टैट्स्टिक्स के मुताबिक 2017 में ये रकम होती 1 लाख 87 हजार डॉलर. इसे भारतीय करंसी में देखें तो ये आंकड़ा होगा करीब 1 करोड़ 22 लाख रुपये. यानी, उस वक्त के लिहाज से कोई छोटी-मोटी डकैती कतई नहीं थी.
कहने को एक डकैती मई 1865 में भी हुई थी, लेकिन सिविल वॉर की वजह से उसे सामान्य लूट माना गया.
कौन था पहली ट्रेन डकैती का लुटेरा?
पिंकर्टन नेशनल डिटेक्टिव एजेंसी ने जब इस केस की पड़ताल शुरू की तो उनकी तहकीकात पहुंची रेनो ब्रदर्स के पास. जॉर्ज किनी नाम के एक मुसाफिर ने वारदात में शामिल दो लुटेरों को पहचान लिया था. मामले में तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया लेकिन जल्द ही जमानत पर छोड़ दिया गया.
जॉर्ज किनी नाम के जिस मुसाफिर ने अपराधियों को पहचाना था, उसकी गोली मारकर हत्या कर दी गई. जिसके बाद दूसरे यात्रियों ने उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया. आखिरकार तीनों पर सारे आरोपों को हटाना पड़ा.
डकैती को अंजाम देने वाले रेनो गैंग को रेनो ब्रदर्स या जैक्सन थीव्स के तौर पर भी पहचान मिली हुई थी. जॉन रेनो और फ्रैंक रेनो भाई थे और यही वजह थी कि इस गैंग को रेनो ब्रदर्स गैंग के नाम से पुलिस रिकॉ़र्ड में जाना जाने लगा. हालांकि, इसमें कई दूसरे सदस्य भी शामिल थे. अपराधियों का ये संगठन मध्य-पश्चिमी अमेरिका में अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहे थे. 1861 से 1865 के बीच चली सिविल वॉर के दौरान अपराध बढ़ गया. रेनो ब्रदर्स के नाम एक नहीं बल्कि तीन रेल डकैतियां दर्ज हैं. रेनो की ट्रेन डकैतियों में से लूटा गया ज्यादातर पैसा कभी बरामद नहीं हुआ.
1866 के बाद आई ट्रेन डकैती की बाढ़
6 अक्तूबर को इंडियाना की ट्रेन लूट के बाद जैसे ऐसी डकैतियों की बाढ़ सी आ गई. महज दो हफ्ते के भीतर, दो और ट्रेनों को लूट लिया गया. इंडियाना में एक, दूसरी लूट में 40 हजार डॉलर की लूट हुई यानी आज के हिसाब से करीब 3 करोड़ 65 लाख.
1890 में ट्रेन डकैतियां अपने चरम पर थीं. इसके पीछे वजह थी, तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और रफ्तार से बढ़ता रेल नेटवर्क. जो लुटेरे कल तक छोटी-मोटी वारदातों को अंजाम दे रहे थे, उन्हें रेनो ब्रदर्स ने एक तरह से लूट का नया तरीका दे दिया. ट्रेनों के जरिए कैश, महंगा सामान, बेशकीमती खनिज और दूसरी कीमती चीजें ट्रांसपोर्ट की जाती थीं.
ज्यादातर गैंग ने अपने इलाके बांट लिए थे. रेनो ब्रदर्स इंडियाना में अपराधों को अंजाम दे रहे थे तो फेरिंगटन गैंग कैंटकी और टेनेसी में ट्रेन लूट रहा था. जेस जेम्स का गैंग, मिडवेस्टर्न राज्यों में ट्रेनों के भीतर आतंक का दूसरा नाम बन चुका था.
जब हालात हाथ से बाहर जाने लगे तो ट्रेनों में प्राइवेट डिटेक्टिव और सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया जाने लगा. 20वीं सदी की शुरूआत होते-होते ऐसे ज्यादातर गैंग को कानून के सींखचों में कैद कर दिया गया या मार दिया गया.
‘द ग्रेट ट्रेन रॉबरी’
6 अक्तूबर 1866 की पहली रेल लूट के बाद, रेलगाड़ियों में लूट की खबरें इतनी आम हो गईं कि साल 1903 में एडविन एस. पोर्टर ने 12 मिनट की एक मूक फिल्म का निर्माण और निर्देशन किया.
दिलचस्प बात ये है कि 114 साल बाद भी फिल्म मौजूद है. इसके कुछ हिस्सों को देखकर मालूम होता है कि फिल्म को रियल लोकेशन पर शूट किया गया है. तकनीक का भी काफी बेहतरीन इस्तेमाल फिल्म में दिखाई देता है.
ट्रेन डकैतियों के इतिहास की जब-जब चर्चा होगी, तब 6 अक्तूबर 1866 के इंडियाना रेल डकैती का नंबर सबसे पहले आएगा.
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