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Pradosh Vrat 2024 Date: माघ माह, शुक्ल त्रयोदशी प्रदोष व्रत कब, जानें मुहूर्त, पूजा विधि व मंत्र

Pradosh Vrat 2024 Date: प्रदोष व्रत हर माह के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन रखा जाता है, फरवरी का दूसरा प्रदोष व्रत 21 फरवरी, बुधवार के दिन रखा जाएगा.

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Pradosh Vrat 2024: प्रदोष व्रत हर माह के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन रखा जाता है, फरवरी का दूसरा प्रदोष व्रत 21 फरवरी, बुधवार के दिन रखा जाएगा बुधवार के चलते इस प्रदोष व्रत को बुध प्रदोष व्रत (Budh Pradosh Vrat) कहते हैं. भगवान शिव (Lord Shiva) को समर्पित प्रदोष व्रत के दिन भक्त उपवास रखते हैं और भगवान शंकर की पूजा करते हैं, मान्यता हैं कि प्रदोष व्रत रखने पर भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है, भक्तों को आरोग्य का वरदान मिलता है और जीवन के समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं. हम आपकों इस प्रदोष व्रत की तिथि, शुभ मुहूर्त व पूजा विधि बता रहे हैं.

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Bhaum Pradosh Vrat: प्रदोष व्रत पूजा विधि

  • पूजा करने के लिए सुबह उठकर स्नान पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण किए जाते हैं और व्रत का संकल्प लेते हैं.

  • इसके बाद भोलेनाथ का ध्यान किया जाता है.

  • प्रदोष व्रत की असल पूजा रात के समय की जाती है.

  • बजरंगबली का पूजन भी भक्त रात में ही करते हैं.

  • पूजा सामग्री में फल, फूल, धतूरा, गंगाजल, धूपबत्ती, सफेद फूल, चंदन, काले तिल और बेलपत्र आदि शामिल किए जाते हैं.

  • भोलेनाथ की आरती की जाती है और भोग लगाकर पूजा का समापन होता है.

माघ, शुक्ल त्रयोदशी

  • प्रारम्भ - 11:27 ए एम, फरवरी 21

  • समाप्त - 01:21 पी एम, फरवरी 22

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प्रदोष व्रत के मंत्र | Pradosh Vrat Mantra

महामृत्युंजय मंत्र

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

श‍िव नामावली मंत्र

।। श्री शिवाय नम:।।

।। श्री शंकराय नम:।।

।। श्री महेश्वराय नम:।।

।। श्री सांबसदाशिवाय नम:।।

।। श्री रुद्राय नम:।।

।। ओम पार्वतीपतये नम:।।

।। ओम नमो नीलकण्ठाय नम:।।

शिव गायत्री मंत्र

ऊँ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि, तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्।

शिव आरोग्य मंत्र

माम् भयात् सवतो रक्ष श्रियम् सर्वदा।

आरोग्य देही में देव देव, देव नमोस्तुते।।

ओम त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।

उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।

शिव स्तुति मंत्र

द: स्वप्नदु: शकुन दुर्गतिदौर्मनस्य, दुर्भिक्षदुर्व्यसन दुस्सहदुर्यशांसि।

उत्पाततापविषभीतिमसद्रहार्ति, व्याधीश्चनाशयतुमे जगतातमीशः।।

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