ADVERTISEMENTREMOVE AD

खय्याम, एक खूबसूरत ख्याल जो कभी खत्म नहीं होगा...  

खय्याम उन संगीतकारों में हैं, जिनका संगीत सुकून देता है. देता रहेगा.

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

जुलाई का महीना. उमस भरी रात. समय करीब 11 बजे. मैं बिस्तर पर करवटें ले रहा हूं. नींद नहीं आ रही. एक आवाज का इंतजार है जो रोज गली के दूसरे छोर किसी घर से आती है. भरोसा है कि वो आवाज आए तो उसे सुनते-सुनते जरूर नींद आ जाएगी. तभी रेडियो बजने लगता है. आवाज आती है -

करोगे याद तो हर बात याद आएगी, गुजरते वक्त की हर मौज ठहर जाएगी ...

ADVERTISEMENTREMOVE AD

खय्याम उन संगीतकारों में हैं, जिनका संगीत सुकून देता है. देता रहेगा. खय्याम 19 अगस्त को हमें छोड़कर चले गए, लेकिन खय्याम एक खूबसूरत ख्याल हैं जो कहीं जाता नहीं, ठहर जाता है. उनका संगीत ऐसा है, जिसके आगे वक्त जैसे ठहर जाता है. पीढ़ियों से परे हैं खय्याम.

0
खय्याम का जन्म पंजाब के जालंधर में 1927 में हुआ. खय्याम एक्टर बनना चाहते थे. लेकिन म्यूजिक डायरेक्टर बाबा चिश्ती ने उनका कंपोजिशन सुना और उन्हें साथ ले लिया. 17 साल की उम्र से उन्होंने कंपोज करना शुरू किया.  पहली फिल्म थी ‘हीर रांझा’. ’ 19 अगस्त, 2019 को उन्होंने लंबी बीमारी के बाद मुंबई के एक अस्पताल में आखिरी सांसें लीं.

आज सबकुछ उंगलियों पर है. दूर से रेडियो की आवाज का मोहताज नहीं. यूट्यूब है. चंद क्लिक पर लाखों की संख्या में म्यूजिक मौजूद है. लेकिन पता नहीं क्यों जब कुछ अच्छा सुनने का मन  करता है, जब बेचैन होता है या जब मूड अच्छा भी होता है, तो जो गाना सर्च करता हूं, वो खय्याम का निकलता है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
‘मोहम्मद जहूर खय्याम हाशमी को वैसे तो नेशनल अवॉर्ड, फिल्म फेयर अवॉर्ड, संगीत नाटक अदादमी पुरस्कार और पद्म भूषण जैसे कई सम्मान मिले. लेकिन उमराव जान, कभी-कभी जैसी फिल्मों में उनका संगीत सुन लीजिए, पुरस्कारों-सम्मानों से कहीं आगे की बात  है.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

हिंदी फिल्मों में चाहे लाख स्टीरियोटाइप हों, लाख पिछड़ापन हो, लेकिन एक बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि इसका म्यूजिक जिंदगी आसान बनाता है. बर्थडे, शादी ब्याह और पार्टियां, इन नगमों के बिना अधूरी लगती हैं. और हिंदी फिल्मों का संगीत खय्याम के बिना कभी पूरा नहीं होगा. खय्याम न होते तो लता, लता न होतीं, रफी, रफी न होते और आशा ऐसी न होंतीं.

जिस उमराव जान के गाने और उसके साथ आशा भोंसले की आवाज अमर हो गई, उसके लिए खय्याम ने ही आशा को थोड़ा नीचे सुर में गाने को कहा. आशा ने इंकार किया. फिर मानीं और बाद में जानीं की खय्याम क्या कह रहे थे. आशा को समझ आया कि उनकी गायकी बेहतर हो गई है. उन्होंने खय्याम से माफी मांगी.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

वो खय्याम जिन्होंने 'उमराव जान' से एक नई आशा को आवाज दी, जिन्होंने रफी से अपना हर कायदा मनवाया, वो खय्याम, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी संगीत को दिया, वो जाने से पहले अपनी जिंदगी की पूरी कमाई संगीतकारों की नई पीढ़ी के नाम कर गए. 2017 में अपने 90वें जन्मदिन पर खय्याम ने अपनी सारी जमा पूंजी 'खय्याम जगजीत कौर चैरिटेबल ट्रस्ट' के नाम कर दी. ये ट्रस्ट नए संगीतकारों और म्यूजिक इंडस्ट्री से जुड़े युवाओं को मदद करता है.

खय्याम चले गए लेकिन आपके लिए अपना पूरा खजाना छोड़ गए हैं. जब भी दिन भारी लगे और रातें काली तो खय्याम का ख्याल कीजिएगा. ये नुस्खा मेरे बहुत काम आता है, आपके भी आ सकता है. मोहब्बत वालों के और गम वालों के, दोनों के काम आते हैं खय्याम. खय्याम हमेशा रहेंगे. जब भी उनका कोई गीत बजेगा (और खूब बजेगा), खय्याम का ख्याल आएगा. और सवाल आएगा - वाह कोई ऐसा भी म्यूजिक का जादूगर था?

खय्याम उन संगीतकारों में हैं, जिनका संगीत सुकून देता है. देता रहेगा.
19 अगस्त 2019 को मोहम्मद जहूर खय्याम का निधन हो गया 
फोटो: स्मृति चंदेल 

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×