ADVERTISEMENTREMOVE AD

खुशवंत सिंह ने कुछ यूं बयां किया था भारत-पाक बंटवारे का दर्द

भारत सरकार ने पद्म विभूषण से किया था खुशवंत सिंह को सम्मानित

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

देश के दिग्गज लेखकों में शुमार खुशवंत सिंह की आज जन्मदिन है. 99 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह देने वाले खुशवंत सिंह ने 'ट्रेन टू पाकिस्तान', 'द एंड ऑफ इंडिया' और 'कंपनी ऑफ विमेन' समेत करीब 40 से ज्यादा किताबें लिखीं. उन्हें पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया.

उनके जन्मदिन पर देखिए उनका खास इंटरव्यू-

वीडियो एडिटर: मोहम्‍मद इरशाद आलम

(ये इंटरव्यू डॉ. किरण बाला ने 6 फरवरी, 2006 में अपनी एक डॉक्टोरल रिसर्च के लिए लिया था. उनकी रिसर्च खुशवंत सिंह के जर्नलिस्टिक कामों पर थी.)

ADVERTISEMENTREMOVE AD
मेरे लिखने का मकसद इंफॉर्म, प्रोवोक और मन बहलाना है. मैंने इंडिया के लोगों पर पूरी सीरीज की. जब मैं विदेश में पढ़ा रहा था, तब मुझे एहसास हुआ कि मैं अपने देश के बारे में कितना कम जानता हूं. मैंने मुस्लिम माइनॉरिटी पर एक वीकली मुखपत्र बनाया, क्योंकि उनके साथ भेदभाव होता था. उनका अपना कोई प्रेस नहीं था. मैं हमारे ‘विदेशी दुश्मन’ के लिए केवल एक ही विनती कर रहा था. मैंने जिन्ना के बर्थडे पर एक स्पेशल इशू भी किया था.
खुशवंत सिंह

1939 से 1947 तक, खुशवंत सिंह ने लाहौर कोर्ट में काम किया. बंटवारे का दर्द झेलने के बाद सिंह ने 1947 में इंडियन फॉरेन सर्विस ज्वॉइन कर ली और पाकिस्तान के पंजाब में अपने घर को हमेशा के लिए छोड़ दिया. बंटवारे को लेकर खुशवंत सिंह ने कहा,

‘बंटवारा ऐसी घटना थी, जिसने मुझे बहुत प्रभावित किया. मैंने पाकिस्तान को चुना था. मैं लाहौर में रह रहा था. मुझे लगा कि यह भारत के दूसरे प्रांत जैसा होगा. मुझे कभी एहसास नहीं हुआ, न ही मेरे किसी नेता ने सोचा था कि बंटवारा ऐसा भयानक रूप ले लेगा. आखिरकार, नेहरू और जिन्ना ने हमें आश्वासन दिया कि कुछ नहीं होगा, ये एक शांतिपूर्ण बंटवारा होगा. दोनों सरासर गलत थे.’

2014 में ओल्ड एज और डेथ पर खुशवंत सिंह ने कहा था कि ये दोनों काफी डरावने हैं.

ओल्ड एज और डेथ काफी डरावना है. मैं बस यही दुआ करता हूं कि मैं बिना किसी दर्द के जाऊं. मैं अकेला रहता हूं. मैंने अपनी कारें बेच दी हैं. मैं पूरा अपने बच्चों पर निर्भर हूं. लेकिन मैं उन पर आखिर कितना निर्भर हो सकता हूं? मैं जानता हूं कि मैं एक बोझ बन जाऊंगा और मैं उन पर इसका और बोझ नहीं डालना चाहता.
खुशवंत सिंह

इस इंटरव्यू के चार साल बाद खुशवंत सिंह का देहांत हो गया. उनका निधन 2014 में उनके दिल्ली स्थित घर पर हुआ था.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

0
Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें