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सैम मानेकशॉ: ऐसा दिलेर फील्ड मार्शल जो किसी से नहीं डरता था?

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और मानेकशॉ के बीच क्या विवाद हुआ

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दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान बर्मा के मोर्चे पर फ्रंटियर फोर्स रेजिमेंट के कैप्टन के तौर पर जापानियों से मुकाबला करते हुए जनरल गंभीर रूप से घायल हो गए थे. उन्हें कई गोलियां लगीं जब उन्हें अस्पताल ले जाया गया और सर्जन ने उनसे पूछा कि क्या हुआ था तो उन जनरल ने मजाकिया लहजे में जवाब दिया, "मुझे गधे ने लात मार दी थी". ये जांबांज जरनल थे सैम मानेकशॉ.

जिनकी बहादुरी असीमित और अपार लगती है. भारत के पहले फील्डमार्शल जनरल मानेकशॉ के बारे में जितना कहा जाए कम लगता है.

भारतीय सेना के पहले आर्मी चीफ रहे सैम जमशेदजी मानेकशॉ का जन्म 3 अप्रैल, 1914 को हुआ था. स्वतंत्र भारत में उन्होंने जिस तरह से सेना की कमान संभाली उसका वर्णन नहीं किया जा सकता है.

इसके बाद तो हर युद्ध में उन्होंने आगे बढ़कर मोर्चा संभाला. उनकी अगुआई में 1965 में पाकिस्तान के खिलाफ भारत की जीत हुई. इसके बाद 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी वे हीरो थे, जब जंग शुरु होने के महज 13 दिनों में ही भारत ने पाकिस्तान को घुटनों पर ला दिया, और बांग्लादेश आजाद हुआ.

पेश है 'सैम बहादुर' की जिंदगी की सबसे दिलचस्प कहानियों पर एक नजर, जिसे पढ़कर आप भी उनकी शख्सियत के मुरीद हो जाएंगे.

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डॉक्टर बनना चाहते थे सैम

सैम ने पंजाब और नैनीताल में शेरवुड कॉलेज से अपनी शिक्षा पूरी की थी, जिसमें कैंब्रिज बोर्ड की स्कूल सर्टिफिकेट परीक्षा में डिस्टिंक्शन भी था. स्कूल के बाद उन्होंने अपने पिता से गुजारिश की थी, कि वह उन्हें लंदन भेज दें ताकि वो मेडिसिन की पढ़ाई कर सकें. हालांकि, उनके पिता ने इसलिए रजामंदी नहीं दी, क्योंकि वो विदेश में अकेले रहने के लिहाज से बहुत छोटे थे.

पिता के फैसले पर विद्रोह जताते हुए मानेकशॉ ने इंडियन मिलिट्री एकेडमी (आईएमए) की प्रवेश परीक्षा दी, और 1 अक्टूबर 1932 को देहरादून में 40 कैडेटों के पहले बैच में चुन लिए गए.

पूर्व  प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और मानेकशॉ के बीच क्या विवाद हुआ
सैम के युवावस्था की तस्वीर
(फोटो: niyogibooksindia)

कई गोलियां लगने के बावजूद लड़ते रहे

सैम को दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बर्मा के मोर्चे पर भेजा गया. वहां फ्रंटियर फोर्स रेजिमेंट के कैप्टन के तौर पर जापानियों से मुकाबला करते हुए वे गंभीर रूप से घायल हो गए थे. उन्हें कई गोलियां लगी थी, लेकिन वे बहादुरी से अपने साथी सैनिकों  हौंसला अफजाई करते रहे.

जब उन्हें अस्पताल ले जाया गया तो इलाज के दौरान सर्जन ने उनसे पूछा कि उनको क्या हुआ था तो मानेकशॉ ने मजाकिया लहजे में जवाब दिया, "मुझे गधे ने लात मार दिया था".

सार्वजनिक जीवन में हंसी-मजाक के लिए मशहूर सैम अपने निजी जिंदगी में भी उतने ही जिंदादिल इंसान थे. उनकी बेटी माया दारूवाला ने बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में बताया था, “लोग सोचते हैं कि सैम बहुत बड़े जनरल हैं, उन्होंने कई लड़ाइयां लड़ी हैं, उनकी बड़ी-बड़ी मूंछें हैं तो घर में भी उतना ही रौब जमाते होंगे. लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं था. वह बहुत जिंदादिल थे. बच्चे की तरह. हमारे साथ शरारत करते थे. हमें बहुत परेशान करते थे. कई बार तो हमें कहना पड़ता था कि डैड स्टॉप इट. जब वो कमरे में घुसते थे तो हमें यह सोचना पड़ता था कि अब यह क्या करने जा रहे हैं.”
पूर्व  प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और मानेकशॉ के बीच क्या विवाद हुआ
जंग की रणनीति तैयार करते हुए सैम
(फोटो: niyogibooksindia)
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इंदिरा गांधी के साथ मजेदार किस्से

जब 1971 में भारत- पाकिस्तान के बीच की जंग छिड़ने वाली थी, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जनरल मानेकशॉ से पूछा कि क्या लड़ाई के लिए तैयारियां पूरी हैं? इस पर मानेकशॉ ने हाजिरजवाब देते हुए कहा- “आई ऐम ऑलवेज रेडी स्वीटी."  इंदिरा गांधी जैसी एक कड़क स्वभाव की महिला और देश की प्रधानमंत्री को 'स्वीटी' कहने का हौंसला और हुनर केवल मानेकशॉ के पास ही था.

एक बार अफवाह उड़ी कि मानेकशॉ आर्मी की मदद से इंदिरा गांधी के तख्तापलट की कोशिश करने वाले हैं. इंदिरा ने सैम को बुलाकर इस बारे में सीधा सवाल किया कि क्या ये खबर सच है?  इस पर सैम ने इंदिरा को बेबाक जवाब दिया-

“आप अपना काम देखिए, मैं अपना काम देख रहा हूं. जब तक आर्मी में मेरे काम में कोई दखल नहीं देगा, तब तक मैं राजनीति में दखल नहीं दूंगा.”
पूर्व  प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और मानेकशॉ के बीच क्या विवाद हुआ
सैम और इंदिरा गांधी
(फोटो: niyogibooksindia)
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बाइक बेचने का वाकया

भारत-पाक के बंटवारे से पहले सैम और आघा मोहम्मद याह्या खान (जो 1971 युद्ध के दौरान पाकिस्तान के राष्ट्रपति थे) सेना में एक साथ सेवा दे रहे थे. मानेकशॉ के पास लाल रंग की एक जेम्स मोटरसाइकल थी, जो याह्या को बहुत पसंद थी. बटवारे के समय याह्या ने वो बाइक सैम से खरीदने की इच्छा जताई. 1000 रुपये में सौदा तय हुआ. याह्या ने कहा कि वो पाकिस्तान से पैसे भेज देंगे, लेकिन उन्होंने कभी पैसे नहीं भेजे. बाद में जब 1971 के युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को हरा दिया और बांग्लादेश अस्तित्व में आ गया तो मानेकशॉ ने कहा था, "याह्या ने मेरी बाइक का 1000 रुपये मुझे कभी नहीं दिया लेकिन अब उसने आधा देश दे दिया है."

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