Home Budget सरकारी कंपनियों में विनिवेश और निजीकरण में है फर्क, यहां समझिए
सरकारी कंपनियों में विनिवेश और निजीकरण में है फर्क, यहां समझिए
विनिवेश को उदारीकरण का हिस्सा माना जाता है
क्विंट हिंदी
आम बजट 2022
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विनिवेश की प्रक्रिया में तेजी अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के शासनकाल में आनी शुरू हुई थी
(फोटो: क्विंट हिंदी)
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विनिवेश यानी निवेश का उलटा. जैसे निवेश का मतलब होता है किसी कारोबार में या कंपनी में पैसे लगाना, उसी तरह विनिवेश का मतलब है उस पैसे को वापस निकालना. जब सरकार विनिवेश शब्द का इस्तेमाल करती है तो इसका मतलब है सार्वजनिक उपक्रमों में सरकारी हिस्सेदारी बेचने की प्रक्रिया. विनिवेश की प्रक्रिया के तहत सरकार या तो अपनी पूरी हिस्सेदारी बेच सकती है या फिर आंशिक हिस्सेदारी बेचकर कुछ पैसे जुटा सकती है.
विनिवेश के जरिए सरकार किसी भी कंपनी या संस्थान में अपने शेयर किसी और पक्ष को बेचकर दूसरी योजनाओं पर खर्च करने के लिए रकम की व्यवस्था करती है. विनिवेश को उदारीकरण का हिस्सा माना जाता है. विनिवेश या तो किसी प्राइवेट कंपनी के पक्ष में किया जा सकता है या फिर उनके शेयर पब्लिक को भी जारी किए जा सकते हैं.
विनिवेश की प्रक्रिया में तेजी अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के शासनकाल में आनी शुरू हुई थी, और तब से अब तक केंद्र सरकार इसके जरिए अच्छी-खासी रकम जुटा चुकी है. लेकिन पिछले एक दशक में विनिवेश को केंद्र सरकारों ने काफी गंभीरता से लिया है. वित्त वर्ष 2010 से लेकर 2019 तक सरकार ने विनिवेश के जरिए 3.8 लाख करोड़ रुपए जुटाए हैं, और इसमें से करीब 2.8 लाख करोड़ तो पिछले 5 साल में ही जुटाए गए हैं.
(ग्राफिक्स: क्विंट हिंदी)
पिछले कारोबारी साल में सरकार ने बजट में विनिवेश के जरिए 80,000 करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य घोषित किया था, लेकिन करीब 85,000 करोड़ रुपए जुटाकर लक्ष्य से ज्यादा हासिल किया. अब मौजूदा कारोबारी साल 2019-20 के लिए विनिवेश के जरिए 90,000 करोड़ रुपए की रकम जुटाने का लक्ष्य रखा गया है. इसका एक बड़ा हिस्सा सेंट्रल पब्लिक सेक्टर एंटरप्राइजेज (सीपीएसई) के नॉन-कोर एसेट को बेचकर जुटाए जाने का लक्ष्य है. इन कंपनियों में एनटीपीसी, भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड, सेल और सीमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया भी शामिल हैं.