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वीडियो प्रोड्यूसर: विशाल कुमार
लोकसभा चुनाव की वजह से 2019 में दो बार बजट पेश किया गया. लेकिन दोनों बार के बजट में रोजगार बढ़ाने को लेकर जिन बड़े ऐलानों की उम्मीद थी वो नहीं दिखी. जो सरकार, हर साल दो करोड़ रोजगार पैदा करने का वादा करके सत्ता में आई थी, वह पकौड़ा तल कर रोजगार बढ़ाने के उपाय सुझाने से लेकर ईपीएफओ के आंकड़े दिखा कर अपना बचाव करती नजर आई. इस बीच, जीडीपी ग्रोथ के लगातार भरभरा कर गिरने की वजह से वह तमाम ताकत लगा कर भी इस मोर्चे पर अपना बचाव करने में नाकाम दिखी.
लिहाजा, सरकार के लिए 2020 के बजट में सबसे बड़ी चुनौती होगी रोजगार बढ़ाने के पुख्ता इंतजामों का ऐलान. लेकिन क्या सरकार के लिए यह इतना आसान होगा? इंडियन इकनॉमी जिस बुरे दौर से गुजर रही है, उसमें सरकार को रोजगार बढ़ाने के लिए ‘आग के दरिया’ से होकर गुजरना होगा.
मौजूदा वित्त वर्ष के दौरान 5 फीसदी ग्रोथ रेट का अनुमान है. यह 11 साल का सबसे कम ग्रोथ रेट है. मैन्यूफैक्चरिंग और कंस्ट्रक्शन सेक्टर की बुरी हालत की वजह से जीडीपी ग्रोथ को यह करारा झटका लगा है. जाहिर है इससे बड़े पैमाने पर बेरोजगारी बढ़ी है.
रोजगार न बढ़ने का असर मांग पर पड़ा है और इससे शहरी और ग्रामीण, दोनों इलाकों में कंज्यूमर डिमांड में कमी आई है. मांग न होने से उत्पादन और निवेश में गिरावट और इससे रोजगार में कमी. यानी, इकनॉमी के दुश्चक्र में फंसने का क्लासिक उदाहरण. भारतीय अर्थव्यवस्था इसी हालात से गुजर रही है. ऐसे में सरकार को उन सेक्टरों के लिए बड़े ऐलान करने होंगे, जो ज्यादा रोजगार पैदा करते हैं. छोटे और मझोले उद्योग, कंस्ट्रक्शन, रियल एस्टेट और एग्रीकल्चर इस देश में रोजगार देने वाले सबसे बड़े सेक्टर हैं. लेकिन इन सेक्टरों की हालत खराब है.
आइए देखते हैं, देश में बेरोजगारी का क्या आलम है.
ये भयावह आंकड़े हैं और इसके लिए मोदी सरकार के दो बड़े फैसलों नोटबंदी और जीएसटी काफी हद तक जिम्मेदार हैं. तमाम एक्सपर्ट्स का मानना है कि मोदी सरकार के इन दोनों कदमों से इकनॉमी को जो नुकसान हुआ है, उसका अभी ठीक-ठीक आकलन अभी तक नहीं हुआ है. लेकिन इसने देश में बड़े पैमाने पर लोगों के रोजगार पर चोट पहुंचा. सबसे ज्यादा नुकसान छोटे और मझोले उद्योग यानी MSME सेक्टर पर पड़ा जो देश के सबसे ज्यादा रोजगार देने वाले सेक्टरों में से एक है.
साफ है कि सरकार को इस बजट में रोजगार बढ़ाने के बड़े कदमों का ऐलान करना होगा. इसके लिए सरकार को एमएसएमई सेक्टर को बूस्टर डोज देना होगा, फिस्कल डेफिसिट बढ़ने की चिंता किए गए बगैर इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च बढ़ाना होगा ताकि कंस्ट्रक्शन और निर्माण कार्य को बढ़ावा मिले.इन्फ्रास्ट्रक्चर से जुड़े कंस्ट्रक्शन के काम में बड़े पैमाने पर लोगों को रोजगार देने की क्षमता होती है. इसलिए सरकार को इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए फंड जुटा कर इसमें बड़े पैमाने पर गतिविधियां बढ़ानी होगी.
हाल ही में सेबी चेयरमैन यूके सिन्हा की अगुआई वाली आरबीआई कमेटी ने एमएसएमई के लिए 5000 करोड़ रुपये का Stressed asset fund बनाया जाना चाहिए ताकि इस सेक्टर को नोटबंदी और जीएसटी से जो नुकसान पहुंचा है, उससे राहत मिल सके. यह फंड इस सेक्टर की पूंजी की कमी को काफी हद तक पूरा कर सकता है.
एमएसएमई मंत्री नीतिन गडकरी ने इस बार इस सेक्टर के लिए 12 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान करने की मांग की है जो पिछले वित्त वर्ष ( 2019-20) के लिए 71 फीसदी ज्यादा है. देखना होगा, सरकार बजट में इस मांग को किस हद तक पूरा करती है.
रोजगार बढ़ाने के लिए सरकार को रूरल सेक्टर में कृषि और गैर कृषि उद्योगों में पैसा झोंकना होगा. इससे रूरल सेक्टर में डिमांड और कंजप्शन बढ़ाएगा. जाहिर है इससे ग्रामीण सेक्टर में बिजनेस गतिविधियां बढ़ेंगी और रोजगार भी.
ब्रोकरेज फर्म मोतीवाल ओसवाल की एक रिपोर्ट के मुताबिक अगर भारत को बढ़ती बेरोजगारी की समस्या से निपटना है तो 2030 तक उसे हर साल एक करोड़ रोजगार पैदा करने होंगे. ILO की रिपोर्ट के मुताबिक 2015 से 2020 तक हर साल देश की लेबर फोर्स में 88 लाख लोग जुड़ते जाएंगे. इतनी बड़ी वर्क फोर्स के लिए रोजगार पैदा करना एक भारी चुनौती है. उम्मीद है सरकार 2020 के बजट में इसकी बुनियाद रखने की कोशिश करती दिखेगी.
देखें वीडियो : बजट 2020: बिग बैंग बदलाव की उम्मीद, दिखेगा मोदी का पर्सनल टच
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