वीडियो एडिटर: विवेक गुप्ता
वीडियो प्रोड्यूसर: कौशिकी कश्यप
भारत में जीडीपी ग्रोथ के जो हालात हैं और अर्थव्यवस्था जिस बुरे दौर में पहुंच चुकी है, उसे देखते हुए इस बार 'बिग बैंग' यानी बड़े सुधारों का बजट पेश होगा या फिर यह एक सालाना इवेंट होकर रह जाएगा. आजकल सरकारें बड़े-बडे़ आर्थिक फैसले जब बजट के बाहर लेने लगी हैं तो हो सकता है इसमें इकनॉमी को लेकर कोई बड़ा ऐलान न हो. लेकिन बजट से पहले पीएम की इकनॉमी के स्टेकहोल्डरों से सीधी मुलाकात ने ‘बिग बैंग’ बजट की संभावनाएं भी जगा दी हैं.
क्या इस बार आएगा पीएम मोदी का ‘पर्सनल टच’ वाला बजट?
बेरोजगारी के चरम, मांग में भारी कमी और निवेश के अकाल की वजह से बेहद मुश्किलों से घिरी अर्थव्यवस्था के दौर में पीएम ने बजट से पहले जो अहम बैठकें की हैं. ग्लोबल एक्सपर्ट से जो मुलाकातें की हैं, उनसे बड़े ऐलानों की संभावनाएं जग गई हैं. हो सकता है कि यह ‘बिग बैंग’ बजट हो और इसमें पीएम की निजी छाप हो.
अब यह अनुमान लगाया जा सकता है कि बजट में क्या-क्या हो सकता है. चूंकि शहरी मध्यवर्ग में काफी बेचैनी है, इसलिए हो सकता है वहां पर्सनल इनकम टैक्स में कटौती हो. लेकिन इसकी संभावना बहुत कम बनती दिख रही है क्योंकि टैक्स वसूली काफी कम रही है. यह पिछली वसूली से भी कम हो गई है.
चूंकि सरकार के पास पैसे ही नहीं हैं. लिहाजा वह पर्सनल इनकम टैक्स में कटौती कर अपना रेवेन्यू कम क्यों करना चाहेगी. दूसरी ओर, कॉरपोरेट टैक्स में कटौती पहले ही हो चुकी है इसलिए और कटौती की संभावना नहीं है.
कम इनकम वालों के टैक्स स्लैब में हो सकता है मामूली बदलाव
सच्चाई यह है कि कॉरपोरेट कटौती का लाभ निवेश के तौर पर तो नहीं ही हुआ है. हां यह हो सकता है कि कम इनकम वाले टैक्स पेयर्स यानी 5 से 15 लाख रुपये की कमाई वालों के लिए इनकम टैक्स के स्लैब में थोड़ा चेंज कर उन्हें राहत देने की कोशिश हो. लेकिन ऐसा करने के लिए सरकार अमीरों पर सरचार्ज या कोई नया टैक्स लगा सकती है. यह लगातार कहा जा रहा है कि टैक्स में कटौती की जाए ताकि लोगों के हाथ में पैसा आए और वो ज्यादा खर्च करें और इससे बाजार में फिर मांग पैदा हो.
जहां तक इनडायरेक्ट टैक्स का सवाल है तो अब यह जीएसटी काउंसिल तय करने लगी है. इस मामले में बजट में आप अपना इरादा तो जता सकते हैं लेकिन कटौती काउंसिल के जरिये ही होगी. इसलिए इस मामले में भी किसी बड़े ऐलान की संभावना नहीं दिखती.
गांव,गरीब और किसान पर फोकस हो सकता है यह बजट
चूंकि सरकार के पैसे नहीं है और और खर्चे बहुत ज्यादा है. इसलिए सरकार ने मंत्रालयों से ज्यादा खर्च नहीं करने को कहा है. अब सवाल ये है कि आपके पास जो पैसा है उसे खर्च किस पर करना है.
दरअसल इकनॉमी को रफ्तार देने के लिए सबसे पहले ग्रामीण इलाकों में खर्च करने की जरूरत पड़ेगी. किसानों, भूमिहीन खेत मजदूरों, सिंचाई परियोजना और नरेगा के मोर्चे पर ध्यान देना होगा. किसानों की आमदनी कैसे बढ़े इस पर ध्यान देना होगा. एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस वक्त सिंचाई, किसान, छोटी और ग्रामीण सड़कों के विकास पर ध्यान देना होगा. जाने-माने स्टेस्टशियन प्रणब सेन का मानना है कि यह बजट भारत, गरीबी, गांव और किसान पर फोकस हो सकता है. बजट में भूमिहीन खेत मजदूरों पर फोकस हो सकता है.
इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च करना जरूरी लेकिन फंड कहां है?
दूसरी ओर, इन्फ्रास्ट्रक्चर पर बड़ा खर्च होने की बात हो रही है. इसके लिए एक लाख करोड़ रुपये के फंड की योजना बना कर दी गई है. लेकिन यह पैसा आएगा कहां से. क्या बजट में किसी डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन बनाने का ऐलान हो सकता है जो इन्फ्रास्ट्रक्चर फंडिंग का काम करे. इसके लिए फिस्कल डेफिसिट की चिंताओं को दरकिनार करना होगा. अगर एक या आधा फीसदी फिस्कल डेफिसिट टारगेट बढ़ भी जाता है तो इससे एक से लाख दो करोड़ रुपये का फंड इन्फ्रास्ट्रक्टर के लिए आ सकता है. साथ ही यह इसके आधार पर विदेशी बाजार से भी फंड जुटाया जा सकता है. दूसरा, सरकार विनिवेश के मोर्चे पर भी वाकई गंभीर हो कर कोई कदम उठा सकती है. इससे संबंधित ऐलान भी बजट में सुनने को मिल सकता है.
बेरोजगारी के भयावह आंकड़े,बड़े कदम उठाने होंगे
बेरोजगारी के आंकड़े भयावह हैं. ओवरऑल आंकड़ा साढ़े सात फीसदी का है. यह बेरोजगारी का उच्चतम स्तर है. 20 साल से 24 साल के युवाओं में 37 फीसदी बेरोजगारी है. वहीं ग्रेजुएट और हायर एजुकेटेड युवाओं में बेरोजगारी का आंकड़ा 60 फीसदी है. यह बेहद खतरनाक है.
अब तक इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च कर विकास की बात हो रही थी लेकिन पैसे नहीं है. निजी निवेश नहीं हो रहा है. लिहाजा इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च कर ग्रामीण इकनॉमी को रफ्तार देकर रोजगार बढ़ाने के उपाय किए जाएं, जिससे कंजप्शन बढ़े और इकनॉमी का चक्र दोबारा शुरू हो. हमारी अनौपचारिक इकनॉमी पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है. प्रणब सेन का कहना है कि नोटबंदी और जीएसटी से इकनॉमी को करारा झटका लगा है.
इकनॉमी में भरोसा बढ़ाना सबसे जरूरी
अब यह साफ है कि सरकार के लिए पैसे जुटाना एक चैलेंज है. भारत की 90 फीसदी इकनॉमी प्राइवेट सेक्टर चलाता है और उसका भरोसा बढ़ाना बेहद जरूरी है. बड़ी बात ये है कि भारत में इकनॉमी के जो चार स्टेकहोल्डर हैं.
छोटी प्राइवेट कंपनियां, निवेशक, कंज्यूमर और हाउसहोल्डर यानी घरेलू बचत कर्ता, इन सबमें भरोसा बढ़ाना बेहद जरूरी है. इन्हें विश्वास में लिए बगैर इकनॉमी का सेंटिमेंट नहीं सुधर सकता. क्योंकि कंज्यूमर और कारोबारियों दोनों में इकनॉमी को लेकर विश्वास की कमी है.
ठोस प्लान बना कर बड़े कदम उठाए सरकार
एक बात और, अब छोटे-छोटे कदमों मसलन सेक्टरवाइज कदम उठाने से काम नहीं चलेगा. सरकार को इकनॉमी को दोबारा खड़ा करने के लिए बड़ा और ठोस प्लान बना कर काम करना होगा. हिन्दुस्तान में जितनी मंदी आनी थी आ चुकी है. पीएम ने ठीक ही कहा है कि यहां से हमारी इकनॉमी बाउंस बैक कर सकती है. हममें बाउसबैंक की क्षमता है. लेकिन हमें इस बात पर फोकस करना होगा कि इकनॉमी को दोबारा रफ्तार देने के लिए संसाधन कहां से जुटाए जाएं.
दरअसल अब इन्फ्रास्ट्रक्चर में खर्च कर, थोड़ा टैक्स कटौती और मांग पैदा कर रोजगार पैदा करने की दिशा में काम करना होगा. इस वक्त देश की इकनॉमी खराब है. लेकिन ग्लोबल हालात भी ठीक नहीं है. इसलिए हमें अपने बूते अर्थव्यवस्था के इस संकट से निकलना होगा.
अक्सर हम कहते हैं और यह बार-बार कहा जाता है कि हमें लैंड रिफॉर्म करना होगा, लेबर रिफॉर्म करना होगा. सरकारी संपत्तियों कर पैसा इकट्ठा करना होगा और टैक्स टेरर को कम करना होगा और देशी हो विदेशी, दोनों पूंजी के साथ समान व्यवहार करना होगा. जब तक हम ऐसा नहीं करेंगे भारत एक बड़ी आर्थिक ताकत नहीं बन सकता. बहरहाल. यह देखना होगा कि इकनॉमी इस बदहाली के बीच एक फरवरी का दिन बिग बैंग बजट का होगा या सिर्फ एक सालाना इवेंट का रह जाएगा.
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