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कॉरपोरेट टैक्स में कटौती के बाद शायद अब पर्सनल इनकम टैक्स में छूट की मांग तेज होती जा रही है. इकनॉमी में डिमांड और कंजप्शन बढ़ाने के लिए पर्सनल इनकम टैक्स में छूट बेहद जरूरी मानी जा रही है. एक्सपर्ट्स की राय है कि आम टैक्सपेयर्स को छूट देकर इकनॉमी में डिमांड बढ़ाई जा सकती है. पिछले कई वर्षों से इनकम टैक्स के सेक्शन 80C के तहत छूट की सीमा बढ़ाने की मांग की जा रही है.
सरकारी कर्मचारी, प्राइवेट सेक्टर के कर्मचारी से लेकर एनजीओ तक में काम करने वाले के लिए इनकम टैक्स के सेक्शन 80C के तहत मिलने वाली छूट ही टैक्स राहत का सबसे बड़ा जरिया है. लेकिन पिछले छह साल से इस छूट की अधिकतम सीमा में कोई बदलाव नहीं आया है. यह अब भी डेढ़ लाख रुपये ही है. लाइफ इंश्योरेंस प्रीमियम, पीएफ में कंट्रीब्यूशन, बच्चों की ट्यूशन फीस, हाउसिंग लोन के मूलधन का भुगतान और पीपीएफ में कंट्रीब्यूशन, ये सभी 80C के तहत डिडक्शन के दायरे में आ जाते हैं. इतनी सारी चीजों को इसमें समेट लेने की वजह से छूट की डेढ़ लाख रुपये की सीमा बहुत जल्द पार होने लगती है.
एक सुझाव यह है कि 80C के तहत आने वाले पीपीएफ इनवेस्टमेंट की लिमिट बढ़ाई जाए. अभी यह सीमा डेढ़ लाख रुपये है. इसे बढ़ा कर दो लाख रुपये किया जा सकता है.
बजट से NPS यानी नेशनल पेंशन स्कीम में भी कंट्रीब्यूशन सीमा बढ़ाए जाने की उम्मीद लगाई जा रही है. इस वक्त 50 हजार रुपये तक के निवेश पर टैक्स छूट मिलती है. इसे अब एक लाख रुपये करने की मांग हो रही . यह मांग बिल्कुल वाजिब है क्योंकि जिस तरह से महंगाई बढ़ रही है और कॉस्ट ऑफ लिविंग में इजाफा हो रहा है, उसमें रिटायरमेंट के बाद लोगों के पास बड़ा फंड होना चाहिए. इससे रिटायरमेंट फंड में सेविंग को बढ़ावा मिलेगा. नेशनल पेंशन स्कीम में ज्यादा फंड आना भी सरकार की इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास योजना के लिए काफी मददगार साबित होगा.
दरअसल इस वक्त इकनॉमी में रफ्तार के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर में बड़े निवेश की जरूरत है. अगर इन्फ्रास्ट्रक्चर बॉन्ड में दोबारा निवेश को टैक्स फ्री करना है तो अलग सेक्शन के तहत इसे न डाल कर 80C में भी डाला जा सकता है. इससे इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश को बढ़ावा मिलेगा और फंड की कमी का सामना कर रही सरकार को सहूलियत हासिल होगी. अगर इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश बढ़ता है तो रोजगार भी बढ़ेगा.
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