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पहली बार घर से दूर पढ़ाई करने जाने वाले छात्रों को अक्सर उनके घर वाले सलाह देते थे कि एक ऐसी डायरी बनाओ जिसमें सारे खर्चा-पानी को लिखो फिर साल के आखिरी में देखो कि आपने कहां-कहां खर्च किया, कितना किया, कितना बचाया और फिर उस आधार पर आने वाले साल में कैसे खर्च करना है उसका फैसला लो.
बस देश का आर्थिक सर्वेक्षण (Economic survey) भी उस डायरी की तरह ही है. इसे आम बजट पेश करने से एक दिन पहले पेश किया जाता है. इसमें क्या क्या होता, इसे कौन बनाता है, ये सब कुछ आसान भाषा में समझते हैं.
हर साल की 31 जनवरी को पेश होने वाला आर्थिक सर्वे एक अहम सालाना दस्तावेज माना जाता है जो वित्त मंत्री लोकसभा और राज्यसभा के पटल पर रखती हैं. इस सर्वे को तैयार करता है डिपार्टमेंट ऑफ इकॉनमिक अफेयर्स (DEA). देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) की देख-रेख में इसे तैयार किया जाता है. अभी हाल ही में मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ वी अनंत नागेश्वरन ने पूर्व सीईए कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन की जगह ली है. इस सर्वे को अंतिम सहमति वित्त मंत्रालय ही देता है.
शॉर्ट में समझें तो आर्थिक सर्वेक्षण में साल भर का लेखा-जोखा होता है और आने वाले साल के लिए संभावित सुझाव, समाधान और चुनौतियां भी होती हैं.
इसमें मुख्य रूप से दो बातें होती हैं. सर्वे पिछले एक साल की अर्थव्यवस्था की तस्वीर पेश करता है.
यहीं नहीं आर्थिक सर्वे दूर्दशी होता है. इसमें आने वाले साल के लिए कई अनुमान लगाए जाते हैं जैसे देश की वृद्धि. हर सेक्टर की इस तरह से पड़ताल की जाती है ताकि किस क्षेत्र में कितना विकास होगा और कैसे होगा इसका अनुमान होता है.
कुल मिलाकर आने वाले साल में अर्थव्यवस्था का क्या हाल होने वाला है इसका अनुमान होता है. ये इसलिए किया जाता है ताकि सरकार ये तय कर सके कि किस क्षेत्र को कितना पैसा देना है. हम बजट में देखते हैं कि रेलवे को कितना मिला, फलां सेक्टर को कितना फंड दिया, ये सब तय किया जाता है.
इकनॉमिक सर्वे एक विस्तृत दस्तावेज होता है इसलिए अब इसे दो हिस्सों में या कह लीजिए दो वॉल्यूम में पेश किया जाता है. इसके पहले हिस्से में अर्थव्यवस्था की चुनौतियों पर फोकस होता है और दूसरे हिस्से में अर्थव्यवस्था के सभी खास सेक्टर्स का रिव्यू रहता है.
हालांकि संवैधानिक तौर पर सरकार इसे पेश करने के लिए या इसमें की गई सिफारिशों को मानने के लिए बाध्य नहीं है. अगर सरकार चाहे तो इसमें दिए गए सारे सुझावों को खारिज कर सकती है. फिर भी इसकी महत्ता बन चुकी है.
लेकिन आमतौर पर इसके आलोचकों का मानना है कि इसमें डेटा पेश किया जाता है ताकि उस आधार पर आने वाले साल में फैसले लिए जा सके. लेकिन कई सेक्टर में सरकार डेटा या तो इकट्ठा नहीं करती या फिर वो डेटा जुटाने में अक्षम होती है. ऐसे में इसका सही उपयोग नहीं हो पाता.
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