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बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट या म्यूचुअल फंड, कहां लगाएं पैसे? 

कई बैंकों ने अपनी डिपॉजिट स्कीमों पर ब्याज दरें बढ़ाई हैं. इनमें एसबीआई और एचडीएफसी बैंक जैसे नाम भी शामिल हैं

धीरज कुमार अग्रवाल
आपका पैसा
Updated:
कई बैंकों ने अपनी डिपॉजिट स्कीमों पर ब्याज दरें बढ़ाई हैं. इनमें एसबीआई और एचडीएफसी बैंक जैसे नाम भी शामिल हैं
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कई बैंकों ने अपनी डिपॉजिट स्कीमों पर ब्याज दरें बढ़ाई हैं. इनमें एसबीआई और एचडीएफसी बैंक जैसे नाम भी शामिल हैं
(फोटो: iStock )

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एक बार फिर से बैंकों की ब्याज दरें बढ़ने का सिलसिला शुरू हो गया है. नोटबंदी के बाद से पिछले पूरे साल ब्याज दरों में गिरावट देखने को मिली और ऐसा लगने लगा था कि शायद ये दरें निचले स्तर पर कुछ समय तक स्थिर रहेंगी. लेकिन नए कैलेंडर ईयर की शुरुआत से ही साफ हो गया कि ब्याज दरें फिर से ऊपर जाएंगी. हालांकि ज्यादातर बैंकों ने अभी तक कर्ज पर ब्याज दरों में बढ़ोतरी करने से खुद को बचाए रखा है, कई बैंकों ने जमा पर ब्याज दरें बढ़ाई हैं. इसकी खासतौर पर दो वजहें हैं.

पहली वजह तो ये है कि ब्याज दरें नीचे आने के बाद बैंकों में एफडी कराने में लोगों की दिलचस्पी कम हुई और लोग म्यूचुअल फंड या इंश्योरेंस स्कीमों में पैसे लगाना बेहतर समझने लगे. रिजर्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि वित्त वर्ष 2017-18 में बैंकों का कुल जमा केवल 6.7 प्रतिशत बढ़ा है. ये 1963 के बाद यानी पिछले पचपन सालों में सबसे कम बढ़ोतरी है. वहीं मार्च 2017 के मुकाबले मार्च 2018 में म्यूचुअल फंड्स का एसेट (या एयूएम) 22 प्रतिशत बढ़ा है. जाहिर है लोगों ने बेहतर रिटर्न की उम्मीद में एफडी का दामन छोड़कर एमएफ का हाथ थामना बेहतर समझा है.

दूसरी वजह ये है कि बैंकों के नॉन परफॉर्मिंग एसेट यानी एनपीए बढ़ने के बाद उनके मार्जिन पर दबाव भी बढ़ा है. हाल ही में आई रिजर्व बैंक की एक रिसर्च रिपोर्ट में कहा गया है कि 2011 से बैंकों की एसेट क्वालिटी लगातार गिर रही है, और अप्रैल 2015 के बाद से इस गिरावट में तेजी आई है. नतीजा ये हुआ है कि बैंकों का नेट इंटरेस्ट मार्जिन यानी एनआईएम भी नीचे आया है. रिपोर्ट के मुताबिक 2010-11 में बैंकों का एनआईएम 2.9 प्रतिशत था जो अब 2.5 प्रतिशत रह गया है. ऐसे में बैंकों के पास डिपॉजिटर्स को अपनी ओर दोबारा खींचने के लिए ब्याज दरें बढ़ाने के अलावा कोई रास्ता नहीं दिख रहा.

हाल ही में कई बैंकों ने अपनी डिपॉजिट स्कीमों पर ब्याज दरें बढ़ाई हैं. इनमें एसबीआई और एचडीएफसी बैंक जैसे नाम भी शामिल हैं. कुछ प्रमुख बैंकों के एफडी पर मिल रही ब्याज दरें इस प्रकार हैः

(ग्राफिक: Rohit Maurya/Quint Hindi)

एफडी पर ब्याज दरों में बढ़ोतरी के बावजूद आपको बैंकों से अधिकतम 7.5 प्रतिशत का सालाना रिटर्न ही मिल सकेगा. ऐसे में ये सवाल बड़ा अहम हो जाता है कि क्या म्यूचुअल फंड के बजाय फिर से एफडी में पैसे लगाने चाहिए? इसका जवाब इस बात पर निर्भर करेगा कि आपके निवेश का लक्ष्य क्या है और आप कितने समय के लिए पैसे निवेश करना चाहते हैं.

अगर आप छोटी अवधि के लिए, मसलन साल-डेढ़ साल, निवेश करना चाहते हैं और इसके बाद उस रकम का इस्तेमाल घर खरीदने, शादी-विवाह या बच्चों की पढ़ाई के लिए करना चाहते हैं तो बैंक एफडी में निवेश पर विचार किया जा सकता है. लेकिन अगर आपकी निवेश की अवधि लंबी है, मसलन पांच-सात या दस साल या उससे भी ज्यादा, तो फिर आपके लिए एफडी के मुकाबले म्यूचुअल फंड बेहतर विकल्प हैं.

यहां भी आप जोखिम उठाने की अपनी क्षमता और वित्तीय लक्ष्य को ध्यान में रखकर वो म्यूचुअल फंड स्कीम चुन सकते हैं, जो आपके लिए उपयुक्त हैं. जैसे अगर आप रिटायरमेंट के लिए निवेश करना चाहते हैं और जोखिम उठाने से नहीं डरते हैं तो फिर इक्विटी या बैलेंस्ड फंड चुन सकते हैं.

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(ग्राफिक: Rohit Maurya/Quint Hindi)

प्योर इक्विटी या बैलेंस्ड फंड स्कीमों में आपका निवेश शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव के जोखिम के अधीन रहता है. इसका मतलब ये है कि आपको अपने निवेश पर उम्मीद के मुताबिक रिटर्न मिल भी सकता है और नहीं भी. लेकिन अगर आप छोटी अवधि के निवेश में बैंक एफडी से बेहतर रिटर्न हासिल करना चाहते हैं तो फिर इक्विटी बेस्ड स्कीमों के बजाय डेट म्यूचुअल फंड में निवेश कर सकते हैं. यहां आप बैंक एफडी के मुकाबले दो से ढाई परसेंट ज्यादा सालाना रिटर्न की उम्मीद कर सकते हैं, और यहां जोखिम भी इक्विटी के मुकाबले काफी कम होता है.

(ग्राफिक: Rohit Maurya/Quint Hindi)

फिलहाल निवेश का फैसला करने के पहले ये बात ध्यान में रखें कि आने वाले दिनों में ब्याज दरों में थोड़ी और बढ़ोतरी हो सकती है. साथ ही, अगर आपने पहले से म्यूचुअल फंड में निवेश कर रखा है तो उसे निकालकर एफडी में लगाने की जल्दबाजी ना करें.

याद रखें कि नए फाइनैंशल इयर में किसी भी म्यूचुअल फंड स्कीम से पैसे निकालने पर आपको निवेश की अवधि के मुताबिक लॉन्ग टर्म या शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स भी चुकाने होंगे, फिर चाहे वो इक्विटी फंड हो या डेट फंड. और, अगर आपका निवेश किसी वित्तीय लक्ष्य को ध्यान में रखकर किया गया है तो उससे छेड़छाड़ से पहले अपने वित्तीय सलाहकार की मदद जरूर लें.

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Published: 06 May 2018,10:39 AM IST

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