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म्‍यूचुअल फंड पर निवेशकों को नहीं सुहाया SEBI का फंडा

सेबी ने 6 अक्टूबर को सभी म्यूचुअल फंड कंपनियों से स्कीम में दोहराव से बचने के लिए कैटेगरी बदलने को कहा था.

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कैपिटल मार्केट रेगुलेटर सेबी ने निवेशकों का भ्रम दूर करने के लिए म्यूचुअल फंड स्कीम की जो कैटेगरी तय की हैं, उसे बहुत सफलता नहीं मिली है. सच तो यह है कि इससे म्यूचुअल फंड स्कीम की संख्या बढ़ गई है. एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स ऑफ इंडिया (एम्फी) के डेटा के मुताबिक, पिछले साल सितंबर में जहां 571 ओपन एंडेड इक्विटी और डेट स्कीम थीं, उनकी संख्या इस साल मार्च में 597 हो गई थी.

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सेबी ने 6 अक्टूबर को सभी म्यूचुअल फंड कंपनियों से स्कीम में दोहराव से बचने के लिए उनकी कैटेगरी बदलने या उन्हें मर्ज करने को कहा था. उसने इक्विटी फंड की 10, डेट फंड की 16 और हाइब्रिड फंड की 6 कैटेगरी तय की है. सेबी ने कहा है कि एक म्यूचुअल फंड कंपनी को सभी कैटेगरी में एक ही फंड रखना होगा.

इंडस्ट्री की 80 पर्सेंट संपत्ति मैनेज करने वाले टॉप 10 फंड की एनालिसिस से पता चला कि सिर्फ सात ने अपनी मौजूदा स्कीम को मर्ज किया है, यानी आपस में मिलाया है. नई कैटेगरी के मुताबिक बदलाव करने पर अप्रैल तक उनकी स्कीम की संख्या 6 पर्सेंट घटकर 397 हो गई थी. सेबी के नए नियम के बाद भी करीब आधे फंड में से हरेक के पास 35 से अधिक स्कीम हैं.

सेबी ने 6 अक्टूबर को सभी म्यूचुअल फंड कंपनियों से स्कीम में दोहराव से बचने के लिए कैटेगरी बदलने  को कहा था.

इस बारे में इनवेस्टमेंट रिसर्च कंपनी वैल्यूरिसर्च के सीईओ धीरेंद्र कुमार ने कहा:

‘जिसके लिए कैटेगरी बनाई गई है, वहां कुछ स्कीम को मिलाया गया है. कुछ के मैंडेट में बदलाव किया गया है और उसे संबंधित कैटेगरी में डाला गया है.’

उन्होंने कहा कि सेबी ने फंड की परिभाषा को तो स्टैंडर्ड बना दिया, लेकिन इससे निवेशकों की परेशानी कम नहीं होगी. अभी भी कैटेगरी की संख्या बहुत अधिक है. कुमार ने कहा, ''इसके मुकाबले काफी कम स्कीम से ज्यादातर निवेशकों की जरूरतें पूरी हो सकती हैं.''

एसबीआई म्यूचुअल फंड, डीएसपी ब्लैकरॉक म्यूचुअल फंड और एक्सिस म्यूचुअल फंड को स्कीम के मर्जर की जरूरत नहीं पड़ी, क्योंकि उनकी मौजूदा स्कीम में दोहराव नहीं था. यह दावा इन फंड हाउसों के प्रवक्ता ने किया है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि सेबी से कहां गलती हुई?

इनवेस्टमेंट एडवाइजरी फर्म आउटलुक एशिया कैपिटल के सीईओ मनोज नागपाल ने कहा:

‘’सेबी को एक जैसी स्कीम्स के मर्जर का निर्देश देना चाहिए था. उसे फंडों के मैंडेट यानी मकसद को बदलने के लिए नहीं कहना चाहिए था.’’

एटिका वेल्थ मैनेजमेंट के सीईओ और एमडी गजेंद्र कोठारी ने कहा, ''सेबी के नए निर्देश का पालन करने के लिए ज्यादातर फंड हाउसों ने कुछ स्कीम के इनवेस्टमेंट के मकसद को बदला है. इसलिए स्कीम की संख्या कमोबेश पहले की तरह बनी हुई है.''

32 तरह के इक्विटी, डेट और हाइब्रिड स्कीम के अलावा सेबी ने सॉल्यूशन बेस्ड फंड की दो कैटेगरी भी बनाई है. इनमें से एक रिटायरमेंट प्लानिंग और एक चिल्ड्रेन्स फ्यूचर से जुड़ी है. दूसरी कैटेगरी इंडेक्स फंड-एक्सचेंज ट्रेडेड फंड और फंड ऑफ फंड्स की खातिर बनाई गई है. इन कैटेगरी के तहत स्कीम्स की संख्या एक से अधिक हो सकती है.

कोठारी ने कहा, ''सेबी के इन रूल्स का मकसद यह था कि डुप्लीकेट स्कीम्स को मिलाया जाए, जिससे एडवाइजर्स और निवेशकों का भ्रम दूर हो.'' हालांकि इसके चलते हर एसेट क्लास में कई कैटेगरी बन गई हैं. इसलिए सेबी के इस कदम से कोई फायदा नहीं हुआ.

टॉप 10 फंड हाउसों में से हरेक के पास पहले 42-43 स्कीम थीं, क्योंकि उनकी हर कैटेगरी में मौजूदगी थी. इस मामले में एम्फी के चेयरमैन ए बालासुब्रमण्यन ने कहा:

हर फंड हाउस के पास अब से 25 से 35 के बीच स्कीम होंगी. सेबी के निर्देशों पर 30 जून तक अमल पूरा कर लिया जाएगा.

उन्होंने कहा कि बड़े फंड हाउस इन सभी कैटेगरी में मौजूद हैं, इसलिए उन्हें कंसॉलिडेशन करना होगा. हालांकि छोटे फंड हाउसों के पास अलग-अलग कैटेगरी में नई स्कीम लॉन्च करके पैसा जुटाने का मौका है.

(स्रोत: Bloombergquint)

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