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चीन ने चुपके से भारत के टेक स्टार्टअप्स में पिछले पांच वर्षों में चार बिलियन डॉलर लगाए. यह रकम बड़ी नहीं है, लेकिन 92 कंपनियों में ये जो निवेश है, उससे भारत की ऑनलाइन दुनिया पर अपना दबदबा खूब बढ़ाया है. भारत में 30 यूनीकॉर्न (एक अरब डॉलर वैल्यूएशन वाली कंपनियां) हैं, जिनमें से18 में चीन के निवेशकों का पैसा लगा है. इस तरह चीन ने भारत के इर्दगिर्द वर्चुअल बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव बना दिया है.
अब जब ये खबर सामने आई कि चीन ने पीपल्स बैंक ऑफ चाइना ने HDFC में अपने निवेश को बढ़ाकर एक पर्सेंट से ज़्यादा कर दिया तब भारत सरकार जागी. उसने विदेशी निवेश के नियमों में इस हफ्ते बदलाव किया.
कोरोना की महामारी के बाद ये डर है कि भारत की कंपनियों का वैल्युएशन गिरेगा तो विदेशी कंपनियां उन्हें ख़रीदने के लिए दौड़ी आएंगी. भारत की पाबंदियों के बाद चीन के साथ हमारे रिश्तों पर क्या असर पड़ेगा. इसपर हमने फॉरेन पॉलिसी थिंक टैंक गेटवे हाउस के फेलो अमित भंडारी से बात की. गेटवे हाउस ने हाल ही में भारत में चीनी निवेश पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की थी.
टिकटॉक, अलीबाबा, टेनसेंट, शाओमी, और ओप्पो हमारे यहां छाए हुए हैं. पेटीएम का 40% शेयर अलीबाबा के पास है. फ्लिपकार्ट, स्नैपडील, स्विगी, जोमैटो, ओला, ओयो, बिग बास्केट, उड़ान समेत 92 कंपनियों में चीनी निवेश मौजूद है.
चीन ने पाकिस्तान, श्रीलंका, म्यान्मार और बांग्लादेश में फिजिकल इंफ्रास्ट्रक्चर में पैसे लगाए और भारत में उसने डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर में. भारत में चीन का चार बिलियन निवेश बड़ी बात नहीं लेकिन उसके अनुपात में उसकी मौजूदगी और असर भारत पर बहुत ज़्यादा है.
आज इंटरनेट की दुनिया में एक तरफ अमेरिकी कंपनियां और दूसरी तरफ चीन की कंपनियां कड़े मुकाबले में है और हर तरह के डेटा को कंट्रोल करना चाहती हैं इसीलिए प्राइवेसी, सेंसरशिप, राष्ट्रीय सुरक्षा, डेटा कंट्रोल डेटा लोकलाइजेशन जैसे मुद्दे भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण हो गए हैं. ये हमको पहले से पता है लेकिन अभी तक सरकार बढ़िया क़ानून बनाने के मामले में धीमे चल रही है.
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