advertisement
पूर्व केंद्रीय मंत्री और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल का मानना है कि देश में कितने कोरोना पॉजिटिव केस हैं, सरकार के पास इसका कोई आंकड़ा नहीं है. सिब्बल का मानना है कि लॉकडाउन से संक्रमण कम हुआ है या नहीं ये भी कहा नहीं जा सकता. द क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया से खास कार्यक्रम राजपथ में कपिल सिब्बल ने महामारी के इस दौर से संबंधित अलग-अलग मुद्दों पर बातचीत की. छात्रों की पढ़ाई से लेकर कोर्ट की ऑनलाइन प्रक्रिया, लॉकडाउन से लेकर राहत पैकेज पर और महामारी के दौरान सरकारी प्रतिक्रिया पर कपिल सिब्बल ने खुलकर अपनी राय रखी.
इस सवाल पर कि क्या लॉकडॉउन के बाद देश भर में छात्रों की पढ़ाई तकनीक से दोबारा शुरू की जा सकेगी, कपिल सिब्बल ने कहा,
सिब्बल ने आगे कहा कि 3 मई के बाद भी स्कूलों, धार्मिक जगहों और दूसरी जगह भीड़ इकट्ठी नहीं होनी चाहिए. फिलहाल हजारों लोग कोरोना से संक्रमित हो सकते हैं, लेकिन कई में ऐसे लक्षण नहीं दिखते. इसलिए सावधानी बरतनी होगी.
सवाल- क्या सख्ती से प्रभाव पड़ा है. कुछ लोग कह रहे हैं कि दूसरे देशों की तुलना में संक्रमण दर को हम बहुत बड़े स्तर पर जाने से रोकने में कामयाब रहे हैं. क्या वाकई ऐसा है?
इस सवाल पर कि सेहत क्या राज्यों का मामला नहीं है, और क्या इसमें केंद्र की सिर्फ सलाहकार वाली भूमिका नहीं है, सिब्बल ने कहा कि 'NDMA, 2005 लागू होने के बाद ये बाकी कानूनों को दरकिनार कर देता है. जैसी आपदा आज सामने है, तो एक नेशनल प्लान इस एक्ट के तहत बनाया जा सकता था. जिसमें मजदूरों, बिजनेसमैन और दूसरे लोगों को राहत देने के प्रावधान किए जाते. साथ में स्टेट प्लान और डिस्ट्रिक्ट प्लान भी होने चाहिए. सरकारों के साथ बात कर केंद्र सरकार को प्लान बनाना चाहिए. इस एक्ट के जरिए केंद्र सरकार के पास पर्याप्त अधिकार हैं.’
कपिल सिब्बल ने सरकार पर कोरोना की स्थिति को न समझ पाने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा, ‘WHO ने जनवरी के आखिर में कोरोना को पैंडेमिक बता दिया था. लेकिन हमारे यहां लॉकडॉउन 24 मार्च को हुआ. इस बीच इन्हें नेशनल प्लान बना लेना था. लेकिन सरकार ने 13 मार्च को इस महामारी को किसी तरह का संकट बताने से ही इंकार कर दिया था. मतलब सरकार के लोगों ने सोचा ही नहीं कि यह महामारी इतनी बड़ी समस्या हो सकती है.’
राहत पैकेज पर सिब्बल ने कहा कि ‘हमें अपनी बाकी देशों से तुलना नहीं करना चाहिए. उनकी स्थिति काफी अलग है. फिर भी राजकोषीय घाटे की बिना परवाह किए लोगों को ज्यादा मदद देनी चाहिए, चाहे नोट प्रिंट क्यों न करना पड़े. तुरंत पांच से दस हजार रुपये गरीबों को सीधे खाते में देने चाहिए. इस वक्त सिर्फ गरीब नहीं बिजनेस मैन को भी पैसा चाहिए.
पढ़ें ये भी: कोरोना | जानबूझकर जिम्मेदार मिला चीन तो भुगत सकता है नतीजे: ट्रंप
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)