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पैसा कमाने से ज्यादा बढ़ाने से बढ़ता है. अमीर बनने के लिए मोटी सैलरी जरूरी नहीं है, बस सही वक्त पर सही जगह इन्वेस्टमेंट और प्लानिंग जरूरी है.
युवा खासतौर पर जान लें, सपने हकीकत में बदलने के लिए जरूरी है आपके बैंक खातों में मोटी रकम हो. जरूरी नहीं कि इसके लिए आप मोटी सैलरी वाली नौकरी या बड़े बिजनेस का इंतजार करें. कम सैलरी के साथ भी कुछ सालों में आपके पास इतनी रकम हो सकती है जिनसे बड़े काम किए जा सकते हैं. बेहतर निवेशक कैसे बनें ये सभी सवाल अक्सर हमारे जेहन में घूमते रहते हैं. तो सबसे बड़ा सवाल ये है कि सुरक्षित जिंदगी के लिए क्या उपाय करें. और सटीक फाइनेंशियल प्लानिंग कैसे करें.
तरीका ज्यादा मुश्किल नहीं है, लेकिन हर बड़े लक्ष्य को हासिल करने की तरह अमीर बनने के भी नियम होते हैं इसलिए इन पर अमल कीजिए
युवा अक्सर इंश्योरेंस की अहमियत को समझ नहीं पाते. लेकिन इमरजेंसी की स्थिति में इसकी जरूरत समझ आती है. ऐसे में इंश्योरेंस अपकी बड़ी मदद करता है, फाइनेंशियल प्लानिंग कर के हम आसानी से बड़ी से बड़ी मुश्किलों को आसानी से सुलझा सकते हैं.
इंश्योरेंस यानी बीमा हम सबकी जिंदगी से किसी ना किसी रूप में जुड़ा है. लाइफ इंश्योरेंस, हेल्थ इंश्योरेंस, मोटर इंश्योरेंस, ट्रैवल इंश्योरेंस, फायर इंश्योरेंस, प्रॉपर्टी इंश्योरेंस ये भी इंश्योरेंस अपके जरूरत के वक्त काम आएंगे.
हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी भविष्य में बीमारियों के इलाज के लिए होने वाले खर्चों का सुरक्षा कवच है. अपने शरीर की देखभाल पर खर्च होने वाले पैसों की बचत के लिए हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी ही एकमात्र तरीका है. ये पॉलिसी सुनिश्चित करती है कि इमरजेंसी के दौरान आपकी सेविंग पर बोझ न आए. हालांकि सेविंग पर कितना असर पड़ेगा या नहीं पड़ेगा, ये पॉलिसी के प्रकार पर निर्भर करता है.
जब आप कोई बीमा पॉलिसी खरीदते हैं, तो बीमाकर्ता आपको एक पॉलिसी बुकलेट देता है, जिसमें आपकी पॉलिसी से संबंधित सभी नियम और शर्तों का जिक्र होता है सभी शर्तों को ध्यान से पढ़ें.
ज्यादातर मामलों में बीमाकर्ता पॉलिसी डॉक्यूमेंट देने के 15 दिनों के भीतर आपको आईडी कार्ड या हेल्थ कार्ड भेज देगा, क्योंकि इसे बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDA) ने अनिवार्य किया है. लेकिन अगर आपको निर्धारित समय के भीतर अपना आईडी कार्ड नहीं मिलता है, तो इसके लिए आप अपनी बीमा कंपनी से डिमांड कर सकते हैं.
अपनी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी को जारी रखने के लिए, बीमाकर्ता को निर्धारित समय पर पॉलिसी फीस या प्रीमियम का भुगतान करते रहना चाहिए. अपने बजट में से मासिक/तिमाही/छमाही/सालाना आधार पर प्रीमियम के भुगतान के लिए कुछ पैसे अलग करते रहें. सही समय पर प्रीमियम का भुगतान नहीं करने से पॉलिसी टर्मिनेट की जा सकती है, जिसके बाद पॉलिसी से किसी तरह का फायदा नहीं मिलेगा
लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी की तरह हेल्थ पॉलिसी ज्यादा लंबे समय के लिए नहीं होती है. हेल्थ पॉलिसी को सालाना आधार पर या हर 2-3 साल में रिन्यू करने की जरूरत होती है
टैक्स बचत की प्लानिंग के लिए फरवरी या मार्च का इंतजार नहीं करना चाहिए. अप्रैल से ही ट्रैक्स के लिए प्लानिंग करना जरुरी होता है. सैलरी का ब्योरा मिलते ही टैक्स देनदारी निकाल लें. उन सभी ऑप्शन को समझ ले जिनमें टैक्स बचत हो सकती हो.
शुरुआत अपने टैक्स स्लैब को जानने से करें, ताकि आपको अंदाजा मिल जाए कि टैक्स कितना देना पड़ सकता है.
सबसे पहले ये याद रखें कि अब आपको मेडिकल रीइंबर्समेंट और ट्रांसपोर्ट अलाउंस नहीं मिलेंगे, बल्कि 40,000 रुपए का सालाना स्टैंडर्ड डिडक्शन मिलेगा. आपकी कंपनी इस स्टैंडर्ड डिडक्शन का फायदा देने के बाद आपका टैक्स कैलकुलेट करेगी और उसे काटने के बाद आपके बैंक अकाउंट में सैलरी क्रेडिट करेगी. लेकिन अगर आप अभी से कंपनी को ये बता देते हैं कि सालभर के दौरान आप कहां-कहां निवेश करने वाले हैं, तो आपका टैक्स कम काटा जाएगा.
इसके अलावा अगर आपने होम लोन ले रखा है या हाउस रेंट अलाउंस का क्लेम करने वाले हैं, तो ये दोनों चीजें भी अपनी कंपनी को वित्त वर्ष की शुरुआत में ही बता दें, आपके हाथ में मंथली सैलरी बढ़कर आएगी, और आप अपनी इन्वेस्टमेंट प्लानिंग बेहतर तरीके से कर पाएंगे. इसलिए ये काम सबसे पहले कर लीजिए.
सेक्शन 80सी के तहत मिलने वाली 1.5 लाख रुपए की छूट के लिए प्लानिंग बेहद आसान है. इसके दायरे में आपका ईपीएफ कंट्रीब्यूशन भी आता है, इसलिए पहले ये पता लगाइए कि पीएफ का आपका सालाना कंट्रीब्यूशन कितना है और उसे डेढ़ लाख में से घटाकर बाकी रकम का इन्वेस्टमेंट करने की योजना बना लीजिए. ईएलएसएस यानी इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम सबसे बेहतर स्कीम में से एक मानी जाती है.
एक चीज यहां जरूर याद रखें, केवल टैक्स बचाने के लिए इन्वेस्टमेंट न करें या इंश्योरेंस पॉलिसी न लें. इन्वेस्टमेंट का मकसद होना चाहिए बढ़िया रिटर्न और इंश्योरेंस का मकसद होना चाहिए फाइनेंशियल प्रोटेक्शन
बढ़ती महंगाई के साथ हमारी जरूरतें भी उसी तेजी से बढ़ रही हैं. ऐसे में अचानक सामने आने वाले खर्चों से सारा बजट हिल जाता है. ऐसी ही समस्याओं से निबटने के लिए इमरजेंसी फंड का होना बहुत जरूरी होता है.
अचानक आने वाले खर्चों के लिए इमरजेंसी फंड है जरूरी होता है. इसलिए आप भी अपने लिए एक इमरजेंसी फंड बनाएं जो 3-6 महीने के खर्च चलाने लायक होना चाहिए. इमरजेंसी फंड बीमारी, दुर्घटना जैसी स्थिति में काम आता है
इमरजेंसी फंड जरुरत के वक्त में फाइनेशल फैसले लेने में मददगार होता है. इमरजेंसी फंड होने से आप पैसे की कमी के बजाय आप इमरजेंसी की स्तिथी पर फोकस कर सकते. इमरजेंसी फंड होने पर आपको मौजूदा निवेश को बंद करने या हटाने की जरूरत नहीं होती. बैंक/दोस्त-रिश्तेदारों से लोन लेने की जरूरत भी नहीं पड़ती.
आज की युवा पीढ़ी लाइफस्टाइल में नहीं बल्कि इंवेस्टमेंट के लिए भी स्मार्ट तरीके की तलाश में रहते हैं. फाइनेशियल प्लीनिंग के लिए युवाओं को बेहद जरूरी बातें याद रखनी होती हैं.
अगर आप लक्ष्य तय नहीं करेंगे, तो आपका निवेश किसी काम नहीं आएगा. ये कुछ ऐसा ही है जैसे आप एक ट्रेन में बैठ गए हैं और आपको नहीं मालूम कि कहां उतरना है.
बाजार के उतार चढ़ाव से डरते हैं तो म्यूचुअल फंड के जरिए निवेश करना अच्छा विकल्प हो सकता है. म्यूचुअल फंड का पैसा भी बाजार में ही लगता है लेकिन इसमें ये काम आपके लिए एक जानकार करता है जिससे जोखिम काफी कम हो जाता है. सबसे पहले तो आपको ये तय करना है कि आपके निवेश का मकसद क्या है, आप कितना निवेश कर सकते हैं और कितने समय के लिए इसमें बने रह सकते हैं. अगर आपको साल-दो साल के लिए निवेश करना है, तो उसके लिए अलग म्यूचुअल फंड होंगे. अगर आपको 5, 7, 10 साल या इससे भी ज्यादा समय के लिए निवेश करना है, तो उसके लिए दूसरे म्यूचुअल फंड होंगे.
निवेश का यह एक शानदार विकल्प माना जाता है इसकी एक वजह यह है कि इस पर मिलने वाला ब्याज टैक्स फ्री होता है ऐसे में यदि आप इनकम टैक्स बचानने के लिए सेक्शन 80 सी के तहत पीपीएफ में निवेश करते हैं तो इस पर जमा रकम को अपने दस्तावेजों में शो करके टैक्स की छूट का लाभ उठा सकते हैं.
फिक्स्ड डिपॉजिट या एफडी पर बैंक अच्छा खासा ब्याज देते हैं. एसबीआई, पीएनबी, एचडीएफसी और आईसीआईसीआई जैसे बैंक एफडी पर अच्छा ब्याज दे रहे हैं. एफडी अकाउंट्स को आप फोन बैंकिंग या इंटरनेट बैंकिंग के जरिए भी खुलवा सकते हैं. हालांकि जमा की अवधि के आधार पर अलग-अलग बैंकों ने एफडी की ब्याज दर भी अलग-अलग तय कर रखी हैं.
ये भी पढ़ें- धन की बात एपिसोड 5। म्यूचुअल फंड क्या है और कैसे करें निवेश?
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