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म्यूचुअल फंड आज सभी निवेशकों की पोर्टफोलियो का एक जरूरी हिस्सा बन गया है. आगे भी हालात ऐसे ही रहने वाले हैं क्योंकि म्यूचुअल फंड एक मजबूत पोर्टफोलियो तैयार करने का आसान और किफायती तरीका माना जाता है. निवेशकों को अपने निवेश का चुनाव करने से पहले कुछ सावधानियां बरतने की जरूरत है. म्यूचुअल फंड्स के बारे में निवेशकों को लुभाने के लिए कई ऐसी बातें कही जाती हैं जिनको ठीक से समझना बेहद जरूरी है. इनमें से कुछ बातें इस तरह से हैं.
इक्विटी और डेट म्यूचुअल फंड्स में सबसे बड़ा फर्क यह है कि इक्विटी म्यूचुअल फंड्स में शेयर में निवेश होता है, और डेट म्यूचुअल फंड्स में बॉन्ड, डिबेंचर, सरकारी सिक्योरिटीज वगैरह में निवेश किया जाता है. डेट म्यूचुअल को हमेशा सुरक्षित बताया जाता है और कई निवेशक इसे फिक्स्ड डिपॉजिट या छोटी बचत स्कीम जैसे दूसरे डेट साधनों का विकल्प मान लेते हैं.
पिछले कुछ सालों में ये सब सामने आ चुका है. इसलिए निवेशकों को इसकी जानकारी होनी चाहिए कि कौन सा डेट फंड कितना जोखिम भरा है ताकि ऐसी नौबत आने पर उन्हें कोई झटका ना लगे.
म्यूचुअल फंड में एक सुविधा जरूर होती है कि निवेशक जब चाहें अपना पैसा निकाल सकते हैं. लेकिन यह सुविधा तभी मिल पाती है जब हालात सामान्य हों. संकट के समय में जैसा कि हमने फ्रैंकलिन टेम्पलटन केस में देखा, म्यूचुअल फंड्स खास प्रावधानों को लागू कर सकता है. जिससे पैसा तुरंत निकालना मुश्किल साबित हो सकता है. यहां निवेशकों ने देखा कि रातों रात एक साथ कई फंड ठप हो गए, अब निवेशकों को उनका पैसा तभी मिलेगा जब म्यूचुअल फंड उन्हें पैसे लौटाएगा.
पोर्टफोलियो के जोखिम को कम करने के लिए हमेशा अलग-अलग तरह के म्यूचुअल फंड्स रखने की सलाह दी जाती है. हालांकि ऐसा करने से भी ये गारंटी नहीं है कि निवेशकों का पैसा सुरक्षित रहे. ऐसे कई डेट फंड्स हैं जिनका नेट एसेट वैल्यू एक दिन में 17 से 50 फीसदी तक गिर गया, और निवेश के हिसाब से होल्डिंग्स का मूल्य भी गिर गया. इसलिए किसी घटना की वजह से पोर्टफोलियो का बड़ा हिस्सा प्रभावित होने की सूरत में, जैसा कि कई निवेशकों ने हाल में देखा, अलग-अलग तरह के म्यूचुअल फंड्स रहने से कोई फायदा नहीं होता.
सामान्य तौर पर इक्विटी परिवर्तनशील संपत्ति की श्रेणी में आता है और डेट को स्थिर संपत्ति माना जाता है. इसलिए उम्मीद यह होती है कि डेट फंड में धीरे-धीरे और नियमित तरीके से बढ़ोतरी होगी और इसी हिसाब से निवेशकों को उनका रिटर्न मिलेगा.
कई बार तो डेट फंड्स में आए बदलाव आम तौर पर इक्विटी म्यूचुअल फंड में आए बदलाव से भी ज्यादा होते हैं. इसके अलावा डेट फंड्स में 3-4 फीसदी बदलाव से करीब आधे साल के रिर्टन का सफाया हो सकता है. इसलिए डेट फंड में होने वाले बदलाव को भी ध्यान में रखना चाहिए.
इक्विटी फंड्स पर शेयर मार्केट का सीधा असर होता है. कई निवेशक तीन साल के निवेश को लॉन्ग टर्म यानि लंबा निवेश मानते हैं क्योंकि यह अपने आप में एक लंबा वक्त होता है. हालांकि इक्विटी पर आधारित म्यूचुअल फंड्स में लंबा समय 7 से लेकर 10 साल तक का हो सकता है. इसलिए यह निवेशकों के लिए कष्ट भरा समय हो सकता है अगर इस दौरान उन्हें अच्छा रिटर्न मिलता नहीं नजर आता. खासकर ऐसे वक्त में जब इकनॉमी का आउटलुक ही बेरंग नजर आ रहा हो. लेकिन निवेशकों को इस दौरान अनुशासन दिखाना चाहिए और बेहतर नतीजे के लिए अपना निवेश जारी रखना चाहिए.
(लेखक अर्णव पांड्या Moneyeduschool के संस्थापक हैं. ये लेखक के अपने विचार है. इससे क्विंट का किसी तरह का सरोकार नहीं है.)
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