Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Business Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019बजट की ABCD- सरकार को सबसे ज्यादा कहां खर्च करना पड़ता है?

बजट की ABCD- सरकार को सबसे ज्यादा कहां खर्च करना पड़ता है?

बजट भाषण सुनने से पहले इससे जुड़ी कुछ बातों को जान लिया जाए

धीरज कुमार अग्रवाल
बिजनेस
Published:
बजट भाषण सुनने से पहले इससे जुड़ी कुछ बातों को जान लिया जाए
i
बजट भाषण सुनने से पहले इससे जुड़ी कुछ बातों को जान लिया जाए
(फोटो- क्विंट हिंदी)

advertisement

बजट यानी आमदनी और खर्चों का हिसाब-किताब. यही हिसाब-किताब केंद्र सरकार के सालाना बजट भाषण में भी होता है. इसके जरिए सरकार ये बताती है कि आने वाले कारोबारी साल में उसकी आमदनी कितनी और कहां से होगी, साथ ही वो कहां-कहां और कितना खर्च करने की योजना बना रही है.

सरकार की आमदनी का जरिया होते हैं अलग-अलग तरीके के टैक्स, सरकारी कंपनियों से मिलने वाला डिविडेंड और विनिवेश से जुटाई गई रकम. इसी आमदनी में से सरकार अपने सारे खर्चे पूरे करती है. लेकिन एक कल्याणकारी राज में सरकार को विकास योजनाओं के अलावा कई सामाजिक- आर्थिक योजनाओं पर भी खर्च करने पड़ते हैं. और अगर सरकारी आमदनी इन खर्चों के लिए कम पड़ती है तब सरकार को उधार लेना पड़ता है. इस लेख में हम जानने की कोशिश करेंगे कि सरकार को किन जगहों पर पैसे खर्च करने पड़ते हैं.

बजट डॉक्युमेंट में एक बड़ा दिलचस्प आंकड़ा दिया जाता है. इसमें बताया जाता है कि केंद्र सरकार के पास रुपया आता कहां से है और जाता कहां है. इसे देखकर आप आसानी से पता लगा सकते हैं कि सरकार कहां और कितना खर्च करती है. केंद्र सरकार के खर्चों का करीब तीन-चौथाई हिस्सा पहले से तय जगहों पर चला जाता है, जैसे- ब्याज का भुगतान, केंद्र सरकार के कर्मचारियों की सैलरी और पेंशन, राज्यों की हिस्सेदारी और सब्सिडी.

(फोटो: क्विंट हिंदी)
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

सबसे बड़ा खर्च है राज्यों का हिस्सा

केंद्र सरकार के खर्चों में सबसे बड़ा हिस्सा होता है राज्यों को टैक्स में हिस्सेदारी का. वैसे, जो केंद्र सरकार का सबसे बड़ा खर्च है, वही राज्य सरकारों की कमाई का एक बड़ा स्रोत है. वित्त आयोग की सिफारिशों के मुताबिक केंद्र सरकार टैक्स डिविजिबल पूल का करीब 42 पर्सेंट हिस्सा राज्यों के साथ साझा करती है. जीएसटी लागू होने के बाद से राज्य सरकारों के लिए इस पूल की अहमियत और बढ़ गई है.

ब्याज भुगतान है दूसरा बड़ा खर्च

केंद्र सरकार पर जो उधार होता है, उसका ब्याज चुकाने में सरकार को अपनी आमदनी का एक मोटा हिस्सा खर्च करना पड़ता है. इस उधार में अंतरराष्ट्रीय संस्थानों से लिया कर्ज होता है, बॉन्ड के जरिए जुटाए गए पैसे होते हैं और साथ ही आरबीआई से लिया गया कर्ज भी शामिल होता है.

सरकारी योजनाओं पर भी आता है मोटा खर्च

केंद्र सरकार की अपनी योजनाएं और प्रायोजित योजनाएं मिला दी जाएं तो करीब एक चौथाई खर्च इन योजनाओं पर चला जाता है. केंद्रीय योजनाएं वो स्कीम होती हैं जिसका पूरा खर्च और कार्यान्वयन केंद्र सरकार के जिम्मे होता है. इन स्कीमों में भारतनेट, नमामि गंगे और प्रधानमंत्री मुद्रा योजना जैसे नाम आते हैं.

केंद्र प्रायोजित योजनाओं में वो स्कीमें आती हैं जिनका कार्यान्वयन राज्य सरकारें करती हैं, लेकिन इनके खर्चे में दोनों की संयुक्त हिस्सेदारी होती है. अक्सर बड़ा हिस्सा केंद्र सरकार खर्च करती है. इन योजनाओं में से कुछ हैं- महात्मा गांधी नेशनल रूरल एंप्लॉयमेंट गारंटी प्रोग्राम, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, स्वच्छ भारत मिशन.

सब्सिडी पर भी होता है अच्छा-खासा खर्च

सब्सिडी सरकार की तरफ से दी जाने वाली आर्थिक सहायता होती है. आमतौर पर भारत में सब्सिडी किसानों, उद्योग-धंधों और कंज्यूमर्स को ध्यान में रखकर दी जाती है. यह डायरेक्ट या इनडायरेक्ट तरीके से दी जा सकती है.

डायरेक्ट सब्सिडी लोगों को नकद भुगतान के जरिए दी जाती है जैसे- एलपीजी सिलेंडर पर मिलने वाली सब्सिडी. इनडायरेक्ट सब्सिडी में टैक्स कटौती के जरिए आर्थिक मदद दी जाती है जिसका उदाहरण है होम लोन के ब्याज भुगतान पर मिलने वाली टैक्स छूट. सरकारी सब्सिडी का सबसे बड़ा हिस्सा फूड सब्सिडी पर खर्च किया जाता है.

इन सबके अलावा केंद्र सरकार के दूसरे खर्चों में वित्त आयोग को अनुदान, रक्षा मंत्रालय का बजट, सरकारी कर्मचारियों की सैलरी और पेंशन जैसे खर्च शामिल होते हैं. वित्त आयोग को जो अनुदान (ग्रांट) दिया जाता है, उसका इस्तेमाल पंचायतों, नगरपालिकाओं और राज्यों के आपदा राहत कोष को आर्थिक मदद के लिए होता है.

(लेखक धीरज कुमार अग्रवाल एक मीडिया प्रोफेशनल हैं और वेल्दी एंड वाइज (Wealthy & Wise) के नाम से फाइनेंशियल एजुकेशन पॉडकास्ट चलाते हैं.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT