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सरकारी बजट अब पहले जैसा अहम और विशाल आयोजन नहीं रहा है. इसमें अब ऐसा कोई बड़ा रहस्य नहीं खुलता, जो आपकी कमाई और खर्च पर कोई बड़ा फर्क डाले. बजट अब भरोसा करने लायक सालाना हिसाब-किताब भी नहीं रहा, क्योंकि प्रामाणिक आंकड़े अब सामने नहीं आते.
बजट अब पहले से ज्यादा राजनीतिक सरोकारों के आधार पर बनता है. फिर भी हमारी पुरानी आदत नहीं छूटती. बजट के पहले हम माथापच्ची करते हैं और सरकार को बताते हैं कि उसे क्या करना चाहिए. दूसरा हिस्सा होता है भविष्यवाणी का, जहां हम लोगों को बताते हैं कि सरकार क्या कर सकती है. इसमें भी पहले जिस तरह से लॉटरी लग जाती थी, अब नहीं लगती, क्योंकि मौजूदा सरकार ऐसी है जिसे आपके अनुमान और भविष्यवाणियों को गलत साबित करने में मजा आता है. लेकिन जैसा कि पहले कहा, हमारी आदत है कि छूटती नहीं. और अब हम एक बार फिर ये गलतियां करने जा रहे हैं.
सबसे पहले हेडलाइन. बजट जैसा भी आए, कुछ सुर्खियां तय हैं:
टैक्स घटाने की गुहार चारों तरफ से लगी है, लेकिन कई जानकारों को लगता है कि कोविड के कारण किसी तरह का सेस या सरचार्ज आ सकता है. स्वास्थ्य बजट में दूसरा बड़ा बजवर्ड होगा.
टैक्स में थोड़ी छूट मिल सकती है, क्योंकि ज्यादातर लोगों की कमाई घटी है. सरकार थोड़ा लालच छोड़े, तो अब वक्त की मांग है कि वो डीजल और पेट्रोल के दामों में कमी लाए, और इसके लिए टैक्स का एक्साइज रेट कम करे क्योंकि अर्थव्यवस्था बंद पड़ी थी, इसलिए सरकार की टैक्स वसूली में काफी कमी आई है. सरकार को पैसों की जरूरत है. हो सकता है कि वो कोविड बॉन्ड और इन्फ्रास्ट्रक्चर बॉन्ड लाए, जिसमें पैसे जमा कराने वाले से कोई सवाल नहीं पूछा जाएगा और कुछ सालों के बाद एक मामूली ब्याज के साथ रकम लौटा दी जाएगी. काला धन निकालने का ये एक तरीका हो सकता है. वक्त मौजूं है ये करना चाहिए!
सोने पर भी सरकार कई क्रांतिकारी आइडिया पर विचार करती रही है. इस बजट इस पर भी नजर सुरक्षा पर खर्च बढ़ाने के लिए भी कोई नया कदम. पैसे उठाने का कोई नया तरीका सामने आ सकता है.
ऐसी संपत्ति जिसे अर्जित नहीं किया गया हो, उसपर किसी प्रकार का टैक्स आ सकता है. शेयर बाजार में कैपिटल गेन्स पर टैक्स की चर्चा हर साल होती है, इस बार भी यह चर्चा गर्म है. हालांकि, इसपर राय बंटी हुई है, कुछ लोग यह भी मानते हैं कि अभी के चढ़ते बाजार में सरकार शायद ऐसा न करे.
मुंबई के कॉरपोरेट खबरी जिसपर नजर रखे हुए हैं, वो ये है कि बैंकों के पुनर्गठन के लिए सरकार क्या कर सकती है. खासकर सरकारी बैंकों को सेहतमंद बनाने के लिए, उनकी रिस्ट्रक्चरिंग, पूंजी उठाने और बेहतर मैनेजमेंट के लिए ये एक जरूरी काम है. जब ऐसी रिस्ट्रक्चरिंग होती है, तो बैंक चाहते हैं कि वो टैक्स न्यूट्रल हों, यानी इस प्रकार के मर्जर या कंसॉलिडेशन मजबूत बैंक पर टैक्स का बोझ न बढ़ जाए. जब ये योजना आएगी तो वो सिर्फ बैंकों के लिए नहीं आएगी. सभी तरह की कंपनियों के लिए आएगी और इसका फायदा निजी सेक्टर की कुछ बेहद बड़ी कंपनियां भी उठा सकती हैं.
बजट भाषण में आप 'आत्मनिर्भर भारत' शब्द कई बार सुनेंगे. ये कहा जा सकता है कि आत्मनिर्भर भारत बनने के लिए इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाना जरूरी है, और बाहर से आने वाले सामानों को महंगा कर दिया जाए. ये एक विवादास्पद कदम होगा.
कोरोना महामारी के बाद बजट में फिस्कल डेफिसिट अगर बढ़ जाए, तो इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए. इस बात पर सर्वसम्मति है. फिर भी सरकार इसे अनुशासित रखने की कोशिश करेगी, क्योंकि ज्यादा डेफिसिट यानी ज्यादा मुद्रास्फीति, जिससे उसे काफी डर लगता है, क्योंकि इस वजह से वोट घटते या बढ़ते हैं. सरकार को ग्रोथ बढ़ाने के लिए इस बार ज्यादा उधार तो लेना पड़ेगा, लेकिन इतना भी नहीं कि प्राइवेट सेक्टर के लिए पूंजी महंगी हो जाए. इस विषय में वो अपना ढेर सारा काम रिजर्व बैंक पर छोड़ देती है कि मॉनिटरी जरिए से रोकड़ा जुटाने में वो जुटा रहे. इस साल के आर्थिक सर्वेक्षण में इस बात की वकालत की गई है कि सही मकसद के लिए अगर नोट छापने पड़ें, तो इसमें संकोच नहीं करना चाहिए.
हम अपनी सदी के अभूतपूर्व, ऐतिहासिक और नाजुक मोड़ पर खड़े हैं. यह बजट भी इस सदी में एक बार आने वाला नायाब बजट हो सकता है, या एक साधारण मेंटेनेंस बजट भी. जवाब के लिए 1 फरवरी को 11 बजने का इंतजार कीजिए
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