advertisement
दो साल में दूसरी बार आरबीआई बोर्ड विवादों में है. आरबीआई बोर्ड की ओर से नोटबंदी का विवादास्पद फैसला लागू करवाने के बाद सरकार इसके जरिये बैंकिंग नियमन को ज्यादा लचीला बनाने की मांग कर रही है.
बोर्ड की मीटिंग 19 नवंबर को होगी ताकि 23 अक्टूबर के अधूरे एजेंडों को पूरा किया जा सके. 23 अक्टूबर को जिन मुद्दों पर चर्चा हुई उनमें आरबीआई की ओर से बैंकिंग सेक्टर के हालात ठीक करने से संबंधित उठाए गए कदमों में सरकार की ओर से छूट देने की मांग शामिल थी. इससे सरकार और आरबीआई के बीच कई मुद्दों पर विवाद बढ़ गए हैं.
आरबीआई एक्ट 1934 के मुताबिक आरबीआई बोर्ड को व्यापक अधिकार हैं. सिर्फ मौद्रिक नीति को छोड़ कर आरबीआई के अधिकार के दायरे में आने वाले सभी मुद्दों पर RBI बोर्ड में चर्चा हो सकती है.
आरबीआई के अधिकारी ने नाम न छापने का शर्त पर बताया कि आरबीआई एक्ट के मुताबिक सारी ताकत RBI बोर्ड के हाथ में है, गवर्नर के हाथ में नहीं. अगर RBI बोर्ड कोई प्रस्ताव पारित करता है तो गवर्नर को इसको मानना पड़ेगा.
एक्ट के कई अन्य प्रावधानों के मुताबिक RBI बोर्ड को काफी अधिकार हैं. एक प्रावधान के मुताबिक बोर्ड की बैठकें गवर्नर की ओर से हर साल छह बार और एक तिमाही में एक बार बुलाई जाएगी. RBI बोर्ड की बैठक के लिए गवर्नर की ओर से चार डायरेक्टरों की ही जरूरत होगी.
लेकिन अब तक व्यवहार के उलट सिद्धांत में RBI बोर्ड की भूमिका बेहद अलग है. हर तरह से बोर्ड की भूमिका एक परामर्श देने वाले निकाय और विचार-विमर्श के मंच की तरह ही है. फैसले लेने के बजाय यह विचार-विमर्श का ही मंच रहा है.
बोर्ड मीटिंग में 23 अक्टूबर को चर्चा हुई उसमें छोटे उद्योगों के लिए ऋण प्रवाह और मौजूदा एनबीएफसी संकट पर चर्चा हुई. कोई प्रस्ताव पारित नहीं हुआ. RBI बोर्ड में हाल में नियुक्त सदस्य एस गुरुमूर्ति ने कहा कि चार मुद्दों पर सहमति थी लेकिन एक पर नहीं.
आईआईएम अहमबदाबाद के प्रोफेसर टीटी राम मोहन ने कहा कि ज्यादा सक्रिय चर्चा अच्छी बात है. अगर बोर्ड किसी चीज पर वोटिंग का प्रस्ताव करता है, तो भी यह चिंता की बात नहीं. अगर बोर्ड सदस्य वोटिंग चाहता है तो इसकी इजाजत होती है. ये डेमोक्रेटिक प्रक्रिया है. बोर्ड में गुरुमूर्ति और एस मराठे संघ परिवार से हैं. अक्टूबर में बोर्ड मेंबर नचिकेत मोर को कार्यकाल अचानक खत्म कर दिया गया.
क्रिया यूनिवर्सिटी में आईएफएमआर बिजनेस स्कूल के डीन अनंत नागेश्वरन कहते हैं कि बोर्ड सरकार की ओर नामित लोगों से भरा हुआ है. इसमें कोई दिक्कत नहीं लेकन उनके दिमाग में अगर गलत मॉडल बैठा हुआ है और जिसे वे आगे बढ़ाना चाहते हैं तो फिर वहां से गिरावट शुरू हो जाती है. आरबीआई के पूर्व डिप्टी गवर्नर राकेश मोहन कहते हैं कि बोर्ड में में बाहरी नियुक्ति सरकार की ओर की जाती है. उनका कहना है कि बोर्ड में सरकार की ओर से नामितों की संख्या बढ़ी है. लेकन यह सुनिश्चत होना चाहिए कि ये नामित वोट देने के अधिकार से लैस न हों.
मोहन कहते हैं कि मूल आरबीआई एक्ट में सरकार की ओर से एक प्रतिनिधि नियुक्त करने का प्रावधान है. लेकिन सरकार के इस प्रावधान के पास वोटिंग अधिकार न हो. जब फाइनेंशियल सर्विसेज विभाग का गठन हुआ हुआ तो सरकार ने बोर्ड में दूसरे सदस्य को नियुक्त किया. लेकिन बगैर किसी औपचारिक वोट के भी सरकार के प्रतिनिधियों का बोर्ड में एक भूमिका और असर होता है.
ये भी पढ़ें : रिजर्व बैंक तूने ये क्या किया,रुपये को क्यों इतना गिरने दिया
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)