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सरकारी बैंकों को जनवरी से मार्च की तिमाही में करीब 50 हजार करोड़ रुपए का घाटा हुआ है. इसकी वजह है खराब कर्ज (एनपीए), जो सिर्फ 2018 के शुरुआती तीन महीनों में 1,30,000 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है.
ये रकम कितनी बड़ी है, इसका अंदाज ऐसे लगाइए कि सरकार इन रुपयों से पेट्रोल और डीजल के दाम करीब 10 रुपए प्रति लीटर तक घटा सकती थी. केंद्र सरकार 2018-19 में सालभर में पेट्रोल-डीजल में एक्साइज के जरिए करीब 2.5 लाख करोड़ रुपए वसूलेगी, जबकि बैंकों का एक तिमाही का एनपीए ही करीब सवा लाख करोड़ रुपए है.
रिजर्व बैंक और सरकार बैंकों के एनपीए को रोकने के लिए जितनी कोशिश करते दिख रहे हैं, उससे ज्यादा नए लीकेज सामने आ रहे हैं. रिजर्व बैंक को लगता है कि रीस्ट्रक्चरिंग नियमों का इस्तेमाल एनपीए छिपाने के लिए किया जा रहा है.
इसलिए रिजर्व बैंक ने हर उस बैंक पर लगाम कसनी शुरू कर दी है, जिनका एनपीए 6 परसेंट से ज्यादा हो. अब तक करीब 12 सरकारी बैंक इस दायरे में आ चुके हैं. देना बैंक को तो पूरी तरह नए लोन देने से रोक दिया गया है, जबकि इलाहाबाद बैंक पर भी कई बंदिशें लगा दी गई हैं.
अब तक बैंकों के करीब 10 लाख करोड़ रुपए के एनपीए हो चुके हैं और हर तिमाही में लाख-सवा लाख करोड़ रुपए के नए एनपीए बैंकों के खाते में जुड़ रहे हैं.
बैंकों के मुताबिक, नॉन परफॉर्मिंग एसेट यानी एनपीए बढ़ने की वजह सिर्फ खराब लोन नहीं है. आरबीआई के लोन रीस्ट्रक्चरिंग के नए नियमों ने भी एनपीए बढ़ा दिए हैं. हालांकि जानकार कहते हैं कि बैंक अभी भी नहीं सुधर रहे हैं और उनके नए-नए खाते एनपीए हो रहे हैं.
एनपीए बढ़ने की एक बड़ी वजह घोटाले भी हैं. जैसे देश के दूसरे सबसे बड़े सरकारी बैंक पंजाब नेशनल बैंक को जनवरी-मार्च में 29,100 करोड़ रुपए का घाटा हुआ, जो बैंकिंग इतिहास में रिकॉर्ड है. इसकी बड़ी वजह रही हीरा और ज्वैलरी कारोबारी नीरव मोदी और मेहुल चोकसी का घोटाला.
जानकारों के मुताबिक, मीडिया की सुर्खियों और रिजर्व बैंक की सख्ती की वजह से बैंक और कर्जदार दोनों रीस्ट्रक्चरिंग का विकल्प चुनना पसंद करते हैं. इससे बैंक अपने खातों में नए दाग डालने से बच जाते हैं और कर्जदार डिफाल्टर होने से बच जाता है.
इस तरह के मामलों में लगाम लगाने के लिए रिजर्व बैंक ने बैंकों से कहा है कि वो अपने एनपीए को तीन कैटेगरी में डालें.
एनपीए बढ़ने का दूसरा नुकसान हुआ है कि बैंकों ने नए लोन देने से हाथ खींच लिए हैं.
सरकार ने जिस इनसॉल्वेंसी कानून को बैंकों के लिए संजीवनी बताया था, वो भी रफ्तार पकड़ने के बजाए कोर्ट कचहरी के कानूनी पचड़ों में फंस गया है. इसमें भूषण स्टील ही एकमात्र सफलता मिली है. लेकिन 2 लाख करोड़ रुपए के डूबे हुए लोन में इनसॉल्वेंसी के जरिए सिर्फ 30 हजार करोड़ रुपए ही हाथ आए हैं.
बैंकों में जान फूंकने के लिए सरकार 2.10 लाख करोड़ रुपए की पूंजी झोंक चुकी है. पर अब नई पूंजी डालने से वित्तमंत्रालय ने इनकार किया है. लेकिन फाइनेंशियल सर्विस सेक्रेटरी राजीव कुमार के मुताबिक बैंकों का बुरा वक्त खत्म हो गया और उन्हें उम्मीद है कि इस साल तीसरी तिमाही से हालात सुधरने शुरू हो जाएंगे.
लेकिन कैसे? इस सवाल का उत्तर मिलना बाकी है.
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