देश के व्यापार घाटे से आपकी जेब का क्या कनेक्शन है?

कच्चे तेल के इंपोर्ट से व्यापार घाटा सबसे ज्यादा बढ़ता है

क्विंट हिंदी
बिजनेस न्यूज
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कच्चे तेल के इंपोर्ट से व्यापार घाटा सबसे ज्यादा बढ़ता है
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कच्चे तेल के इंपोर्ट से व्यापार घाटा सबसे ज्यादा बढ़ता है
(फोटो: iStock)

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5 जुलाई को जब मोदी सरकार अपना बजट पेश करेगी तो एक बार फिर कैपिटल गेंस, फिस्कल डेफिसिट, डायरेक्ट टैक्स, रेवेन्यू जैसे शब्दों से सामना होगा. बजट आम आदमी पर सीधे असर डालता है लेकिन कई बार लोग इन शब्दों के जाल में उलझ जाते हैं.

इसलिए, क्विंट हिंदी आपके लिए लाया है स्पेशल सीरीज बजट की ABCD, जिसमें हम आपको बजट से जुड़े कठिन शब्दों को आसान भाषा में समझाएंगे... इस सीरीज में आज हम आपको ‘करंट अकाउंट डेफिसिट’ यानी व्यापार घाटे का मतलब समझा रहे हैं.

कच्चा तेल और सोना- ये दो ऐसी चीजें हैं जो हमारे देश के व्यापार घाटे को बड़ा करने में सबसे बड़ी भूमिकाएं निभाती हैं. व्यापार घाटा यानी देश के एक्सपोर्ट और इंपोर्ट का अंतर. अगर देश में होने वाला इंपोर्ट, देश से होने वाले एक्सपोर्ट से ज्यादा होता है तो नतीजा होता है व्यापार घाटा.

देश का व्यापार घाटा मई 2019 में 6 महीने की ऊंचाई पर पहुंच गया था और ये 15.36 बिलियन डॉलर यानी 1 लाख करोड़ रुपए से भी ज्यादा था. मई के महीने में हमारा एक्सपोर्ट था 2.09 लाख करोड़ रुपए और इंपोर्ट था 3.16 लाख करोड़ रुपए.

हमारे इंपोर्ट बिल का सबसे बड़ा हिस्सा होता है कच्चे तेल का, इसलिए यही व्यापार घाटा बढ़ाने का सबसे बड़ा विलेन भी होता है. मई के महीने में हमने जिन तीन चीजों के इंपोर्ट पर सबसे ज्यादा खर्च किया, उनमें कच्चा तेल सबसे ऊपर है.

(ग्राफिक्स: Kamran Akhter)

भारत की पेट्रोलियम जरूरत का करीब 85 फीसदी हिस्सा हमें इंपोर्ट करना होता है. हम हर साल 1.5 अरब बैरल कच्चा तेल इंपोर्ट करते हैं और इसलिए इसकी कीमत में थोड़ी भी बढ़ोतरी हमारे करेंट अकाउंट डेफिसिट या ट्रेड डेफिसिट पर बड़ा अंतर ले आती है. इससे डेफिसिट बढ़ता है तो उसका असर हमारे फिस्कल डेफिसिट यानी वित्तीय घाटे पर भी आता है. इसके अर्थव्यवस्था पर दूरगामी प्रभाव होते हैं.

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भारत की पेट्रोलियम जरूरत का करीब 85 फीसदी हिस्सा हमें इंपोर्ट करना होता (फोटो: iStock)
कच्चा तेल, गोल्ड या किसी और प्रोडक्ट का इंपोर्ट जब बढ़ता है तो देश में डॉलर की मांग भी बढ़ती है क्योंकि हमारा अधिकतर व्यापार डॉलर में होता है.

जब डॉलर की मांग बढ़ती है तो स्वाभाविक रूप से रुपए में डॉलर के मुकाबले कमजोरी आती है. जब रुपया कमजोर होता है तो इंपोर्ट और महंगा हो जाता है और फिर व्यापार घाटा भी और बढ़ने लगता है. ये एक दुष्चक्र सा बन जाता है जिससे अर्थव्यवस्था को बाहर निकालना एक बड़ी चुनौती हो जाती है.

देश में गोल्ड की मांग जनवरी से ही लगातार ऊंची बनी हुई है. कैलेंडर ईयर 2019 की जनवरी-मार्च तिमाही में देश में 192.4 टन सोना इंपोर्ट किया गया, जो पिछले साल की इस अवधि के मुकाबले 27 फीसदी ज्यादा था.

(ग्राफिक्स: Kamran Akhter)

केवल मई महीने की बात करें तो 116 टन गोल्ड इंपोर्ट किया गया है, जबकि पिछले साल मई में ये केवल 78 टन था. वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल का अनुमान है कि पूरे 2019 में भारत में 750-850 टन के बीच गोल्ड इंपोर्ट किया जा सकता है. साल 2018 में भी ये इंपोर्ट 760 टन रहा था.

(ग्राफिक्स: Kamran Akhter)

कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतें हमारे हाथ में नहीं हैं, इसलिए हमें महंगा होने पर भी जरूरत के लिए कच्चा तेल इंपोर्ट करना ही पड़ता है. एक स्टडी के मुताबिक अगर कच्चे तेल की कीमतें 10 डॉलर प्रति बैरल बढ़ती हैं तो देश में महंगाई दर में 10 बेसिस प्वॉइंट यानी 0.1 फीसदी की बढ़ोतरी हो जाती है. इसलिए सरकार की कोशिश काफी लंबे समय से है कि वो गैर-जरूरी इंपोर्ट जैसे गोल्ड पर रोक लगाए. क्योंकि अगर इंपोर्ट बिल में कमी आती है तो फिर व्यापार घाटा भी कम होगा, डॉलर की मांग भी कम होगी और रुपए की कमजोरी और महंगाई दर पर भी लगाम लगेगी.

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Published: 25 Jun 2019,07:08 PM IST

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