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देश भर में 500 से ज्यादा ट्रकों का संचालन करने वाले कैरवैन रोडवेज लिमिटेड और इसकी जैसी दूसरी ट्रकिंग फर्मों ने सोचा था कि भारत के आधुनिक इतिहास में सबसे बड़े कर सुधार, यानी जीएसटी से उन्हें तत्काल लाभ देखने को मिलेगा, लेकिन अराजक तरीके से लागू हुई इस नई कर व्यवस्था और भ्रष्टाचार की वजह से अब ट्रकिंग कंपनियों को काफी परेशानी झेलनी पड़ रही है
गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स को लागू करने में हुई अव्यवस्थाओं की वजह से सरकार का राजस्व लक्ष्य पटरी से उतर गया है. इसकी वजह से एशिया की नंबर 3 अर्थव्यवस्था, यानी भारत के घरेलू कारोबार में ज्यादा सुधार नहीं हुआ है. क्रिसिल लिमिटेड के मुताबिक, जीएसटी लागू होने से पहले हो रही कमाई को बरकरार रखने के लिए चिंतित राज्य ने अपनी सीमाओं पर निगरानी बढ़ा दी है. नए जीएसटी कानून में रिश्वत लेने वाले अधिकारियों को रोकने के बहुत कम प्रावधान हैं.
इन घटनाओं से जीएसटी का असर कम हो रहा है, जिसका उद्देश्य आंतरिक सीमाओं को मिटाना था और भारत को दुनिया के सबसे बड़े एकल बाजारों में से एक में बदलना था. हालांकि जीएसटी से देश में अगले कुछ सालों और आगे चल कर टैक्स दायरा बढ़ने की उम्मीद थी लेकिन फिलहाल अर्थव्यवस्था को इससे नुकसान ही हुआ है. वह भी ऐसे वक्त में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए नौकरियां पैदा करने में तेजी लाना बेहद जरूरी है.
कई बदलावों के बावजूद 1 जुलाई 2017 से जीएसटी लागू होने के बाद से ये छोटे कारोबरियों के सिरदर्द साबित हो रहा है. कई कारोबारी अपना सही रिटर्न दाखिल नहीं कर रहे हैं, या रिटर्न दाखिल करने से बच रहे हैं, जिससे राजस्व कम हो रहा है. सितंबर में 921 अरब रुपये, और अक्टूबर में 833 अरब रुपये से घटते हुए नवंबर में राजस्व संग्रह 808 अरब रुपये (12.6 9 अरब डॉलर) हो गया. इस मामले के जानकार दो अधिकारियों का कहना है कि अगर यही हाल रहा तो राजस्व संग्रह में और कमी आ जाएगी. पहचान उजागर न करने की शर्त पर इन अधिकारियों ने कहा कि इन्हें आशंका है कि अप्रत्यक्ष करों के लिए 9.27 खरब रुपये का बजटीय लक्ष्य पूरा नहीं हो सकेगा.
भारत के 5 करोड़ 80 लाख छोटे उद्यम, जो देश की जीडीपी का लगभग 40 फीसदी हिस्सा हैं, जीएसटी के जटिल नियमों, टैक्स फाइलिंग के लिए जरूरी आईटी तंत्र में गड़बड़ी और फाइलिंग की मुश्किल से जूझ रहे हैं. मुआवजा योजना के साथ जो समस्याएं हैं, उससे छोटे कारोबारी फाइलिंग नहीं कर रहे हैं. ऑल इंडिया कॉन्फेडरेशन ऑफ स्मॉल एंड माइक्रो इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के सेक्रेटरी जनरल गोपाल के. कृष्णन ने बताया, "इन स्थितियों की वजह से रजिस्टर्ड खरीदार और बड़ी कंपनियां हमारे पास से माल की सप्लाई लेने के लिए तैयार नहीं हैं, हमने उत्पादन में कटौती की है."
हालांकि वित्त मंत्रालय के प्रवक्ता डीएस मलिक का कहना है कि छोटे और मध्यम इकाइयों की समस्याओं को कम करने के लिए कई कदम उठाए गए हैं, लेकिन फिलहाल वो कदम कारगर साबित होते नहीं दिख रहे. वित्त मंत्रालय की अध्यक्षता वाली जीएसटी काउंसिल ने 200 आइटमों से ज्यादा पर टैक्स दरें घटाई है. रिटर्न प्रक्रिया को सरल किया है और छोटी कंपनियों के लिए टैक्स रेट निर्धारित की. लेकिन एक रीजनल चैंबर्स ऑफ कॉमर्स के चेयरमैन प्रकाश जैन ने कहा, ‘ कुछ नहीं बदलता, सिवाय इसके कि अब हमें बड़ी कंपनियों से मुकाबले के लिए बाध्य कर दिया गया है. उनकी लागतें हमसे कम होती हैं. कहां से मुकाबला करेंगे. ’
जीएसटी को लेकर विशेषज्ञों का कहना था छोटी कंपनियों को दिक्कतें आएंगी. लेकिन कइयों का कहना था कि जीएसटी से लालफीताशाही से छुटकारा मिलेगा और भारत एक बाजार में तब्दील हो जाए. ट्रक तेजी से सफर कर सकेंगे. लॉजिस्टिक की भारी लागतें कम हो जाएंगी और कारोबार करना ज्यादा आसान हो जाएगा.
लेकिन कंपनियों और एक नई रिपोर्ट का कहना है कि जीएसटी से मामूली फायदा ही हुआ है. 9 नवंबर को जारी क्रिसिल की रिपोर्ट में कहा गया है ट्रक अब प्रति दिन 25 किलोमीटर अतिरिक्त सफर ही कर पा रहे हैं. जबकि पहले कहा गया था जीएसटी लागू होने के बाद ट्रक 100 किलोमीटर अतिरिक्त सफर कर सकेंगे.
लेकिन अब उन्हें माल उठाने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है. क्योंकि बाजार में मांग में पर्याप्त इजाफा ही नहीं हुआ है. ट्रांसपोर्टेशन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड के विनीत अग्रवाल ने कहा, ‘कुछ रूटों में सुधार हुआ है लेकिन ई-वे बिल सिस्टम शुरू होने पर और दिक्कत आएगी. जीएसटी का फायदा इकोनॉमी को मिले, इसके लिए अभी लंबा रास्ता तय करना होगा. हालांकि यह प्रक्रिया जारी है.
इनपुट : ब्लूमबर्ग क्विंट
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