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देश में वेंटिलेटर बनाने वाला सेक्टर मुश्किल वक्त की तरफ बढ़ता दिख रहा है. कोरोना वायरस महामारी से पहले इस सेक्टर में 8 मैन्युफैक्चरर थे, जिनके पास सालाना 3360 वेंटिलेटर सप्लाई करने की क्षमता थी. हालांकि कोरोना संकट की वजह से 9 और मैन्युफैक्चरर्स ने इस सेक्टर में कदम रखे, जिससे सालाना मैन्युफैक्चरिंग क्षमता 396260 की हो गई.
अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, अब वेंटिलेटर की मांग में तेज गिरावट और बड़े स्तर पर हुए प्रोडक्शन की वजह से मैन्युफैक्चरर पूछ रहे हैं- इन सब वेंटिलेटर्स का क्या होगा? इन मैन्युफैक्चरर्स ने भारी नुकसान और अपने ऊपर लोन का बोझ होने की बात भी कही है.
वेंटिलेटर की मांग और प्रोडक्शन के बीच भारी अंतर कैसे आया, इसकी कई वजहें हैं, जिनमें से प्रमुख ये हैं:
मैसूर-स्थित Skanray के प्रबंध निदेशक विश्वप्रसाद अल्वा का इस मामले पर कहना है "महामारी के कुछ ही महीनों में हमारे पास वेंटिलेटर के लिए अमेरिका, यूरोप के देशों और रूस, पोलैंड और ब्राजील जैसे दूसरे देशों से बड़े पैमाने पर ऑर्डर थे. लेकिन निर्यात पर एक बैन था. दिसंबर में बैन हटाए जाने तक, इन ऑर्डर का मतलब नहीं रह गया था और चीन जैसे देशों ने दुनियाभर के बाजारों में बाढ़ ला दी थी. ”
Skanray ने वेंटिलेटर के उत्पादन के लिए BEL के साथ एक टाई-अप की घोषणा की थी, जबकि एक अन्य कंपनी, दिल्ली स्थित AgVa हेल्थकेयर, मारुति के साथ ज्वाइंट वेंचर में गई थी. इसके को-फाउंडर, प्रोफेसर दिवाकर वैश ने कहा कि सरकार के 10000 ऑर्डर को पूरा करने के बाद, बाकी ऑर्डर ऐसे ही रह गए.
इसके अलावा उन्होंने कहा, ''हमारे पास हर महीने 14000 वेंटिलेटर बनाने की क्षमता है, लेकिन हम केवल मौजूदा स्टॉक्स को कम करने की कोशिश कर रहे हैं. हमारे सामने भारी वित्तीय प्रभाव, भारी कर्ज और 100 करोड़ रुपये का नुकसान है.''
8 मार्च को, अल्वा कैबिनेट सचिव और स्वास्थ्य मंत्रालय को भी "बेकार" और "अनबॉक्स्ड" पड़े वेंटिलेटर के विशाल भंडार के बारे में लिख चुके हैं.
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