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जब अमेरिका (US) छींकता है तो पूरी दुनिया को सर्दी-जुकाम हो जाता है, अंग्रेजी की ये कहावत 2008 के वित्तीय संकट (2008 Financial Crisis) की याद दिलाती है जो लेहमैन ब्रदर्स (Lehman Brothers) के तबाह होने से शुरू हुई फिर इसके दस दिन बाद एक और अमेरिकी बैंक (US Bank Crisis) बंद हुआ और फिर संकट गहराता चला गया. आज भी पहले एसवीबी (SVB Collapse) पर ताला लगा फिर सिग्नेचर बैंक (Signature Bank), फिर फर्स्ट रिपब्लिक बैंक (First Republic Bank) और अब यूरोप का क्रेडिट सुईस बैंक (Credit Suisse).
क्या वैश्विक बैंकिंग संकट गहरा रहा है, क्या वर्तमान में जारी संकट 2008 के वित्तीय संकट के जैसा ही है या अलग है, भारत के बैंकों पर इसका कोई असर पड़ेगा या नहीं?
स्विट्जरलैंड की क्रेडिट सुईस बैंक पर मंडराए बड़े संकट को टालने की कोशिश की जा रही है. स्विट्जरलैंड के नेशनल बैंक ने मदद की पेशकश की है वहीं स्विट्जरलैंड के यूबीएस बैंक ने इसे खरीदने की घोषणा की है. क्रेडिट सुईस बैंक का बुरा हाल अचानक नहीं हुआ है, पिछले दो साल से इस बैंक का हाल ठीक नहीं था.
इसके बाद क्रेडिट सुईस का सबसे बड़ा इंवेस्टर सऊदी नेशनल बैंक ने इसमें और इंवेस्ट करने से मना कर दिया और इसके शेयर प्राइस में फिर गिरावट आई. इस दौरान एसवीबी पर लगे ताले ने भी निवेशकों को निराश किया, इसलिए दुनियाभर के बैंकिंग शेयरों में गिरावट आई. वहीं क्रेडिट सुईस में बड़ी गिरावट देखने को मिली. यानी वैश्विक बैंकिंग क्राइसिस का खतरा बढ़ता दिख रहा है लेकिन क्या इस संकट का असर भारत पर भी पड़ेगा?
भारत में जो फॉरेन बैंक्स हैं उनकी रैंक में क्रेडिट सुईस 12वें नंबर पर है.
क्रेडिट सुईस भारतीय बैंकों का 0.1% हिस्सा है, जो कि काफी कम.
भारत के सारे विदेशी बैंकों की बात करें तो भारतीय बैंकों में उनकी 6% हिस्सेदारी है.
भारत में जो कुल लोन दिया जाता है उसमें विदेशी बैंकों का केवल 4% हिस्सा है.
विदेशी बैंकों के पास भारतीय बैंक के कुल डिपोसिट का 5% हिस्सा है.
भारत में बड़े विदेशी बैंक एचएसबीसी, स्टैंडर्ड चार्टेड, डॉयचे बैंक और जेपी मॉर्गन हैं.
क्या अब भी भारतीय बैंकों पर वैश्विक बैंकिंग संकट के असर पड़ने की संभावना है...हमने एक्सपर्ट से पूछा.. भारत में मजबूत रेग्युलेशन इस संकट को टालने में मददगार साबित हो सकता है, भारत में हर बैंकों को अपने डिपोजिट का कुछ पर्सेंट रिजर्व कर रखना पड़ता है. ऐसे में सभी की नजरें अप्रैल में होने वाली रिजर्व बैंक की बैठक पर होगी जो ब्याज दरों में बदलाव के लिए जिम्मेदार है. अब इस पूरे संकट को 2008 के वित्तीय संकट से भी जोड़ कर देखा जा रहा है लेकिन इस बार का संकट अलग है वो कैसे एक्सपर्ट को सुनिए.
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