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कर्ज से लदी एयरइंडिया की खरीदने के लिए बोली लगाने के आखिरी दिन भी कोई आगे नहीं आया है. एयर इंडिया को ग्राहक न मिलना मोदी सरकार के हाई प्रोफाइल प्राइवेटाइजेशन प्रोग्राम के लिए झटका माना जा रहा है.
एयर इंडिया के लिए बोली लगाने की डेडलाइन बीत जाने के बाद भी किसी पार्टी के न आने के बाद सिविल एविएशन मिनिस्ट्री ने ट्वीट किया कि एयर इंडिया में रणनीतिक विनिवेश के लिए एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट फ्लोट किया गया था लेकिन आखिरी दिन डेडलाइन खत्म होने तक कोई प्रस्ताव नहीं आया. अब इस संबंध में बाद में कोई फैसला किया जाएगा.
सरकार ने एयर इंडिया की 76 फीसदी हिस्सेदारी बेचने की पेशकश की थी. सस्ती उड़ान वाली एयर इंडिया एक्सप्रेस की 100 फीसदी और ग्राउंड हैंडलिंग यूनिट में 50 फीसदी हिस्सेदारी बेचने का भी इरादा जताया गया था. एयर इंडिया को जो भी खरीदता उसे इसके 54,000 करोड़ रुपये के कर्ज की जिम्मेदारी लेनी होती.
एयर इंडिया को खरीदने के लिए पहले इंटरग्लोब एविएशन लिमिटेड की एयलाइन इंडिगो ने पहले दिलचस्प दिखाई थी लेकिन बाद में वह यह कर पीछे हट गई कि सरकार ने जो प्लान तय किया है उसके मुताबिक वह इसे नहीं खरीद सकती. जेट एयरवेज ने भी बोली लगाने की प्रक्रिया में हिस्सा न लेने का फैसला किया था.
सरकार को एयर इंडिया के बिकने का भरोसा था. कुछ दिनों पहले विमानन सचिव राजीव नयन चौबे के मुताबिक, सरकार युद्ध स्तर पर विनिवेश प्रक्रिया में लगी हुई थी. लेकिन एक के बाद एक एयरलाइंस जब एयर इंडिया को खरीदने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही हैं, तो क्या माना जाए कि एयर इंडिया वैल्यू फॉर मनी नहीं है.
आर्थिक मामलों के जानकार टीसीए श्रीनिवास राघवन इससे सहमत नहीं.. वो कहते हैं. एयर इंडिया की यही ताकत है. जो भी कंपनी उसे खरीदेगी, उसे एयर इंडिया के सारे रूट्स मिलेंगे. इनमें डोमेस्टिक यानी देश के अंदर और इंटरनेशनल यानी विदेशी रूट शामिल हैं. अगर इनका सही इस्तेमाल किया जाए, तो इनकी वैल्यू अरबों डॉलर में हो सकती है राघवन कहते हैं कि एयर इंडिया की वैल्यू के सामने इस पर करीब 54 हजार करोड़ रुपए का कर्ज को कुछ भी नहीं है. जो लोग एयर इंडिया पर कर्ज का रोना रो रहे हैं, उन्हें समझना चाहिए कि यह उसके मार्केट एक्सेस की वैल्यू का 10 परसेंट भी नहीं है.
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