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इंडिगो, जेट और अब टाटा ने कहा बाय बाय, एयर इंडिया को कौन खरीदेगा? 

3 लाख करोड़ की एयर इंडिया को अब कौन खरीदेगा?

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टाटा ग्रुप ने संकेत दिए हैं कि एयर इंडिया को खरीदने में उसकी दिलचस्पी नहीं है. इसके पहले जेट एयरवेज और देश की नंबर वन एयरलाइंस इंडिगो ने एयर इंडिया के लिए बोली लगाने से इनकार कर दिया था.

रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक टाटा ग्रुप के अधिकारियों का कहना है कि सरकार ने बेचने की ऐसी शर्तें रखी हैं कि इसके लिए पैसा लगाना फायदे का सौदा नहीं है.

शर्तों के मुताबिक भावी खरीदार एयर इंडिया को अपने दूसरे कारोबारों के साथ मर्ज नहीं कर सकता है. भावी खरीदार को कंपनी को लिस्ट करना होगा और उसे कर्मचारियों के साथ छेड़-छाड़ करने की इजाजत नहीं होगी. रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक इन शर्तों के साथ खरीदारी फायदे का सौदा नहीं है.


हालांकि अभी भी सरकार को भरोसा है कि वो एयर इंडिया को बेच लेगी.

जेट एयरवेज के डिप्टी चीफ एक्जीक्यूटिव अमित अग्रवाल के हवाले से फाइनेंशियल टाइम्स ने बताया कि एयर इंडिया के खरीदार के लिए जो शर्तें रखी गई हैं, उस पर माथापच्ची करने के बाद उन्‍होंने खरीद प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लेने का फैसला किया है.
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जानकारों के मुताबिक, जेट एयरवेज के होश इस बात से उड़ गए कि जो भी एयर इंडिया को खरीदेगा, उसे एयर इंडिया पर कुल कर्ज का 33,390 करोड़ रुपए का बोझ उठाना पड़ेगा. एयर इंडिया पर कुल 48,700 करोड़ रुपए का कर्ज है.

सरकार ने एयर इंडिया की 76 परसेंट हिस्सेदारी बेचने के लिए बोलियां मंगाई थी. लेकिन शर्त थी कि महाराज को खरीदने वाली कंपनी को हिस्सेदारी के हिसाब से एयर इंडिया के कर्ज का बोझ भी उठाना पड़ेगा.

हालांकि जेट एयरवेज ने खुलकर कभी ये नहीं कहा कि वो एयर इंडिया को खरीदना चाहती है, पर बिजनेस स्टैंडर्ड की खबर के मुताबिक, जेट ने इस बारे में निवेशकों और अपने सहयोगियों एयर फ्रांस-केएलएम और डेल्टा से चर्चा की है.

एयर इंडिया को कौन खरीदेगा?

दोनों इंटरनेशनल एयरलाइंस कर्ज में दबी एयर इंडिया को खरीदने की इच्छुक नहीं हैं. उन्हें लगता है कि इससे ज्यादा फायदा नहीं होगा.

इंडिगो ने भी कड़ी शर्तों का हवाला देते हुए एयर इंडिया को खरीदने से अपने हाथ खींच लिए थे. प्रेसिडेंट आदित्य घोष के मुताबिक:

हमें इस बात का भरोसा नहीं है कि एयर इंडिया के सभी ऑपरेशन खरीदने और उन्हें सफलतापूर्वक चलाने की क्षमता हमारे पास है.

सरकार को एयर इंडिया बिकने का भरोसा

दो दावेदारों के दौड़ से बाहर होने के बावजूद विमानन मंत्रालय ने साफ कर दिया है कि एयर इंडिया को खरीदने की रुचि रखने वालों की अर्जी का वक्त नहीं बढ़ाया जाएगा. 14 मई इसकी आखिरी तारीख है.

विमानन सचिव राजीव नयन चौबे के मुताबिक, सरकार युद्ध स्तर पर विनिवेश प्रक्रिया में लगी हुई है. उनके मुताबिक, दुनियाभर अंतरराष्ट्रीय एयरलाइंस ने एयर इंडिया को खरीदने की इच्छा जताई है. स्विटजरलैंड एविएशन कंसल्टेंट भी इस बारे में इच्छुक है, इसलिए सरकार 14 मई तक बोलियों का इंतजार करेगी.

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लेकिन एक के बाद एक एयरलाइंस जब एयर इंडिया को खरीदने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही हैं, तो क्या माना जाए कि एयर इंडिया वैल्‍यू फॉर मनी नहीं है?

आर्थिक मामलों के जानकार टीसीए श्रीनिवास राघवन इससे सहमत नहीं. क्विंट को लिखे उनके लेख के मुताबिक एयर इंडिया बेशकीमती है. वो कहते हैं. :

एयर इंडिया की यही ताकत है. जो भी कंपनी उसे खरीदेगी, उसे एयर इंडिया के सारे रूट्स मिलेंगे. इनमें डोमेस्टिक यानी देश के अंदर और इंटरनेशनल यानी विदेशी रूट शामिल हैं. अगर इनका सही इस्तेमाल किया जाए, तो इनकी वैल्यू अरबों डॉलर में हो सकती है. इंडस्ट्री इसे समझती है. इसलिए एयर इंडिया को 3 लाख करोड़ रुपये से कम में नहीं बेचा जाना चाहिए.

एयर इंडिया के पास लाखों करोड़ के एसेट

राघवन कहते हैं कि एयर इंडिया की वैल्यू के सामने इस पर करीब 50 हजार करोड़ रुपए का कर्ज को कुछ भी नहीं है. जो लोग एयर इंडिया पर कर्ज का रोना रो रहे हैं, उन्हें समझना चाहिए कि यह उसके मार्केट एक्सेस की वैल्यू का 10 परसेंट भी नहीं है.

एयर इंडिया के पास देशी विदेशी रूट के अलावा करोड़ों की प्रॉपर्टी है. अगर इन्हें जोड़ दिया जाए, तो इसे खरीदने वाले की वास्तविक लागत और कम हो जाएगी. राघवन का सुझाव है कि सरकार को एयर इंडिया से पूरी तरह बाहर हो जाना चाहिए.

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