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इकनॉमी के इन बोरिंग आंकड़ों को समझ लें, ये आपकी लाइफ से जुड़े हैं

ये आंकड़े जटिल लगते हैं लेकिन हमारी जिंदगी पर इनका बड़ा असर है

दीपक के मंडल
बिजनेस न्यूज
Updated:
इकनॉमी के उतार-चढ़ाव भरे आंकड़ों को समझना जरूरी है
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इकनॉमी के उतार-चढ़ाव भरे आंकड़ों को समझना जरूरी है
(फोटो: pixabay)

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अर्थव्यवस्था के आंकड़े सरकार, बैंक, इंडस्ट्री, मार्केट और पॉलिसी मेकर्स के लिए तो मायने रखते ही हैं आम लोगों की जिंदगी भी इनके उतार-चढ़ाव से जुड़ी होती है. आम लोग इकनॉमी के बोरिंग आंक़ड़ों से यह अंदाजा नहीं लगा पाते कि इनके ऊपर-नीचे होने पर उनकी जिंदगी पर क्या फर्क पड़ने वाला है. हाल में जारी इकनॉमी के कुछ आंकड़ों से समझते हैं कैसे इनका ऊपर-नीचे होना हमारी जिंदगी पर असर डालता है.

खुदरा महंगाई दर

खुदरा महंगाई Consumer price index से आंकी जाती है. यह index कंज्यूमर की ओर से कुछ प्रोडक्ट और सर्विस के लिए अदा की गई कीमतों के आधार पर बढ़ता-घटता है. मई के दौरान देश में consumer price index पर आधारित खुदरा महंगाई दर 4.87 फीसदी पर पहुंच गई जो पिछले चार महीने का टॉप लेवल है. खुदरा महंगाई फल, सब्जियों और पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने से बढ़ी है.

हमारी जिंदगी पर असर

दरअसल रिजर्व बैंक ब्याज दरें तय करने के लिए खुदरा महंगाई दर को बताने वाले Consumer Price index को ही आधार बनाता है. महंगाई को काबू करने के लिए रिजर्व बैंक रेपो रेट बढ़ा देता है, जिस पर वह बैंको को कर्ज देता है. जब बैंक ज्यादा ब्याज देकर कर्ज लेते हैं तो लोन महंगा हो जाता है. इससे आम कंज्यूमर से लेकर बिजनेसमैन और उद्योगपति सभी के लिए लोन महंगा हो जाता है. लोन महंगा होने से अर्थव्यवस्था में खपत घट जाती है. उद्योगो के लिए कर्ज महंगा हो जाता है, जिसका असर उनके इनवेस्टमेंट पर पड़ता है. महंगे कर्ज से इनवेस्टमेंट घटता है. इससे उद्योग का विस्तार धीमा हो जाता है और बेरोजगारी बढ़ती है.

सब्जी-फल और कच्चे तेल के दाम बढ़ने से खुदरा महंगाई में इजाफा  (फोटो: Bloomberg)
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चालू खाते का घाटा

चालू खाते का घाटा यानी current account deficit का सीधा मतलब यह है कोई देश दूसरे देशों से जितना कमा रहा है और उससे ज्यादा खर्च कर रहा है. यानी निर्यात का वैल्यू कम होता जा रहा है और आयात बिल बढ़ता जा रहा है. भारत के आयात बिल (इसमें कच्चे तेल के आयात बिल भी शामिल है) में पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 42 फीसदी का इजाफा हो चुका है.

कच्चे तेल की कीमत बढ़ने से हमें ज्यादा डॉलर खर्च करने पड़े. हालांकि गैर तेल आयात का बिल भी 18 फीसदी बढ़ गया है. सोना मंगाने में भी हमने काफी डॉलर खर्च किए हैं. चालू खाते में विदेशी निवेश और अनिवासी भारतीयों का भेजा धन भी शामिल होता है.

हमारी जिंदगी पर असर

दरअसल एक्सपोर्ट महंगा होने से बाहर से आने वाली कई चीजें भारतीय बाजार में महंगी हो जाती है. इलेक्ट्रॉनिक्स, घड़ियां, कंज्यूमर आइटम्स, लैपटॉप, स्मार्टफोन और दूसरे कंप्यूटर हार्डवेयर अमूमन हम आयात करते हैं. इससे कंज्यूमर पर सीधा असर पड़ता है.

विदेशी निवेश कई सेक्टरों को रफ्तार देता है. विदेशी निवेश कम होने से इन सेक्टरों के ग्रोथ पर असर होता है. जिसका सीधा असर रोजगार पर पड़ता है.

चालू खाता घटा बढ़ा तो एक्सचेंज रेट पर आरबीआई को दखल देना पड़ सकता हैफोटो - द क्विंट 

फेडरल रिजर्व के ब्याज दर में बढ़ोतरी

अमेरिकी केंद्रीय बैंक ने फेडरल रिजर्व ने अपनी ब्याज दरें चौथाई फीसदी बढ़ा दी है और कहा जा रहा है कि इतनी ही बढ़ोतरी इस वित्त वर्ष के दौरान दो बार कर सकती है. इससे दुनिया भर की अर्थव्यवस्था में चिंता जताई जा रही है. इसका असर देशों की अर्थव्यवस्था और आम नागरिक दोनों पर होगा.

हमारी जिंदगी पर असर

फेडरल रिजर्व दूसरे बैंकों को उनकी कॉमर्शियल गतिविधियों मसलन लोन देने के लिए फंड मुहैया कराता है. जाहिर है फेडरल रिजर्व की ओर से ब्याज दर बढ़ने से बैंकों के लिए फंड महंगा हो जाएगा और ब्याज दरें महंगी हो जाएंगी.

जब अमेरिका में, जो निवेशकों के लिए तुलनात्मक रूप से ज्यादा सुरक्षित बाजार में ज्यादा ब्याज मिलेगा, तो भारत जैसे उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों को निवेशक कम तवज्जो देंगे. इससे भारतीय शेयर बाजारों में आने वाला बाहरी निवेश घट जाएगा. निवेश घटने से रुपये की कीमत भी घटेगी. डॉलर महंगा हो जाएगा. जाहिर है विदेशी यात्रा, वहां छुट्टियां मनाना या पढ़ाई महंगी हो जाएगी. आयातित लग्जरी चीजें भी महंगी होंगी. तेल का आयात महंगा होगा. इससे पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ेंगे.यह महंगाई बढ़ाएगा

अमेरिकी केंद्रीय बैंक  फेडरल रिजर्व और दो बार बार ब्याज दरें बढ़ा सकता हैफोटो - द क्विंट 

प्रति व्यक्ति या औसत आय में कमी

पिछले वित्त वर्ष के दौरान भारतीयों की प्रति व्यक्ति आय या औसत आय सिर्फ 8.6 फीसदी बढ़ी. यह छह साल की सबसे कम बढ़ोतरी रही. वित्त वर्ष 2017-18 में इकनॉमिक ग्रोथ और महंगाई कम होने की वजह औसत आय में भी बढ़ोतरी कम रही.प्रति व्यक्ति आय का कैलकुलेशन मौजूदा कीमत पर प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय के आधार पर होता है.

हमारी जिंदगी पर असर

औसत आय में कमी हमारी परचेजिंग पावर पर सीधा असर करता है. इससे बाजार में महंगाई घटती है लेकिन इससे इसकी रफ्तार रुकती है. परचेजिंग पावर घटने से अर्थव्यवस्था में मांग पर भी नकारात्मक असर पड़ता है.

मांग न होने से उद्योग और कारोबार की ग्रोथ रुक सकती है और इसका सीधा असर रोजगार पर पड़ता है. इससे लोगों का जीवनस्तर घटता है और देश में विकास की रफ्तार घट जाती है. औसत आय घटने से कंज्यूमर और इकनॉमी दोनों प्रभावित होते हैं.

ये भी पढ़ें - देश में छह साल के दौरान सबसे कम रफ्तार से बढ़ी प्रति व्यक्ति आय

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Published: 14 Jun 2018,07:51 PM IST

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