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भारत और चीन के बीच मौजूदा तनाव का असर दोनों देशों के कारोबारी रिश्तों पर भी पड़ सकता है. फॉरेन पॉलिसी थिंक टैंक गेटवे हाउस के फेलो अमित भंडारी ने क्विंट के साथ बातचीत में बताया कि भारत में चीन का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) करीब 6 बिलियन डॉलर का है, इसमें से तकरीबन दो तिहाई भारत के स्टार्टअप सेक्टर में लगा हुआ है.
अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, भारत-चीन का द्विपक्षीय व्यापार साल 2000 में 3 बिलियन डॉलर का था, जो 2018 तक बढ़कर 95.54 बिलियन डॉलर का हो गया. हालांकि भारत इसमें बड़ा व्यापार घाटा उठाता रहा है. साल 2018 में व्यापार घाटा 57.86 बिलियन डॉलर आंका गया था.
2018 में भारत चीन के उत्पादों के लिए 7वां सबसे बड़ा एक्सपोर्ट डेस्टिनेशन था, जबकि चीन के लिए 27वां सबसे बड़ा निर्यातक था. भारत के FDI चार्ट पर चीन 18वें नंबर पर आता है. मगर पिछले 5 सालों में भारतीय टेक स्टार्टअप्स ने चीनी निवेशकों को काफी आकर्षित किया है.
चीन ने भारत के टेक स्टार्टअप्स में पिछले पांच वर्षों में चार बिलियन डॉलर लगाए. यह रकम बड़ी नहीं है, लेकिन 90 से ज्यादा कंपनियों में ये जो निवेश है, उसने भारत की ऑनलाइन दुनिया पर अपना दबदबा खूब बढ़ाया है.
टिकटॉक, अलीबाबा, टेनसेंट, शाओमी, और ओप्पो भारत में छाए हुए हैं. पेटीएम का 40% शेयर अलीबाबा के पास है. फ्लिपकार्ट, स्नैपडील, स्विगी, जोमैटो, ओला, ओयो, बिग बास्केट समेत कई कंपनियों में चीनी निवेश मौजूद है.
भारत में करीब 30 यूनीकॉर्न (एक अरब डॉलर वैल्यूएशन वाली कंपनियां) हैं, जिनमें से 18 में चीन के निवेशकों का पैसा लगा है. इस तरह चीन ने भारत के इर्दगिर्द वर्चुअल बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव बना दिया है.
दरअसल भारत की बड़ी टेक कंपनियों में चीनियों ने पहले ही हिस्सेदारी लेनी शुरू कर दी थी. ऐसा इसलिए हुआ कि भारत में इतने अमीर वेंचर कैपिटलिस्ट नहीं थे जो इन कंपनियों में पैसा लगा सकते. भारत की नीतियां भी देशी निवेशकों को हतोत्साहित करती हैं. चीन ने इसी कमजोरी का फायदा उठाया.
पिछले दिनों पीपल्स बैंक ऑफ चाइना ने HDFC में अपने निवेश को बढ़ाकर एक पर्सेंट से ज्यादा कर दिया तब भारत सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया. उसने विदेशी निवेश के नियमों में बदलाव कर दिया.
अब चीन समेत दूसरे पड़ोसी देशों से भारत में निवेश अब ऑटोमैटिक नहीं, बल्कि सरकार से मंजूरी से के बाद ही आ सकता है.
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