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इलेक्ट्रिक वाहनों पर नीति आयोग के रोड-मैप के मुताबिक देश में 2030 के बाद सिर्फ इलेक्ट्रिक वाहन ही बिकेंगे. आयोग ने यह भी कहा है कि 2025 से सिर्फ इलेक्ट्रिक थ्री व्हीलर्स और 150 सीसी तक टू-व्हीलर्स ही बिकें. नीति आयोग ने तो टू और थ्री व्हीलर्स निर्माता कंपनियों से दो सप्ताह के भीतर प्लान भी पेश करने को कह दिया कि वे इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को कैसे अपनाएंगे. नीति आयोग के इस रुख ने कार और टू-व्हीलर्स कंपनियों को नाराज कर दिया है.
कार कंपनियों ने खुल कर तो नाराजगी नहीं जताई है लेकिन टू व्हीलर्स कंपनियों ने आयोग की ई-मोबिलिटी पर सीधे सवाल उठाए हैं. उनका कहना है कि सरकार की नीतियां अति महत्वाकांक्षी हैं. वह बगैर जमीनी तैयारी के ई-मोबिलिटी की मंजिल हासिल करना चाहती है.
इलेक्ट्रिक व्हेकिल बनाने में जुटी महिंद्रा एंड महिंद्रा और ह्यूंदै जैसी कंपनियों ने सरकार की नीति के समर्थन में ई-कार लाने का ऐलान कर दिया है. ह्यूंदै ने तो 9 जुलाई को देश की पहली इलेक्ट्रिक एसयूवी कोना नाम से उतार दी. 25.30 लाख वाली कार देश की पहली इलेक्ट्रिक एसयूवी है. महिंद्रा एंड महिंद्रा ने कहा है कि वह भी जल्द ही अपने इलेक्ट्रिक व्हेकिल उतारेगी.
इकनॉमिक टाइम्स को एक इंटरव्यू में राजीव बजाज ने कहा कि देश में फिलहाल ई-व्हेकिल्स चीन से लाए जा रहे हैं. 99 फीसदी सेलर्स ट्रेडर्स हैं. जो कंपनियां यहां ई-मोटरसाइकिल और स्कूटर बेच रही हैं, वे इन्हें यहां बना नहीं रही हैं. बजाज कहते हैं कि भारत को ई- व्हेकिल को बढ़ावा देना है तो उसे चीन के तर्ज पर एक्सपेरिमेंट करना होगा. चीन ने पहले बीजिंग और शंघाई जैसे बड़े शहरों में पेट्रोल इंजन बैन करने शुरू किए. इसके बाद जब चीन ने इलेक्ट्रिक व्हेकिल को मंजूरी देनी शुरू की तो 20-40 का फॉर्मूला अपनाया. इसका मतलब इलेक्ट्रिक टू व्हीलर्स 40 किलो के हों और 20 की स्पीड पर चलें.
चीन ने रोड कनेक्टिविटी के लिए विशाल इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा किया. पैदल चलने वालों के लिए अलग लेन बनाया और 20-40 फॉर्मूला अपनाने वालों के लिए अलग रास्ता तैयार किया. भारत यह सब किए बगैर अचानक पूरे देश में पेट्रोल,डीजल और सीएनजी गाड़ियों को बंद कर सिर्फ ई-व्हेकिल को जारी रखना चाहता है.
इन सवालों के अलावा भी कई ऐसी अहम चीजें हैं, जिनकी तैयारी के बगैर देश में सिर्फ ई-व्हेकिल चलाने का सपना हवा-हवाई ही रहेगा.
दुनिया भर में इलेक्ट्रिक व्हेकिल लिथियम आयन बैट्री का इस्तेमाल करते हैं. ये बैट्री महंगे होते हैं और लंबी दूरी के लिए नहीं होते. लिथियम आयन बैट्री में लिथियम, कोबाल्ट, निकेल और मैंगनीज का इस्तेमाल होता है. देश में लिथियम और कोबाल्ट का भंडार नहीं है. ऐसे में भारत में इलेक्ट्रिक वाहन का निर्माण सस्ता नहीं होगा. कुछ देशों में दूसरी टेक्नोलॉजी पर भी बैट्री का निर्माण हो रहा है. लेकिन हमने उस दिशा में अभी कदम भी नहीं रखा है.
सरकार ने ई-व्हेकिल्स के लिए चार्जिंग स्टेशन बनाने का इरादा जताया है. लेकिन इरादा जताने भर से ये नहीं होगा. दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों में भी गिनती के चार्जिंग स्टेशन हैं. टियर टू और टियर थ्री शहरों की बात ही छोड़ दीजिए. बड़े पैमाने पर चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा किए बगैर ई-व्हेकिल्स पॉलिसी को रफ्तार देना मुश्किल है.
ऑटो इंडस्ट्री ने बीएस-6 उत्सर्जन मानकों (emission norms) के लिए बड़ा निवेश किया है. इस निवेश का क्या होगा? अगर इतनी जल्दी इन कंपनियों को सिर्फ ई-व्हेकिल बनाने के लिए कहा जाए तो इस इनवेस्टमेंट का क्या होग?. इसके साथ ही इस इंडस्ट्री से पैदा जुड़े तीन करोड़ सीधे और परोक्ष रोजगार भी खतरे में पड़ जाएंगे.
सरकार की ई-व्हेकिल पॉलिसी पर लगातार सवाल उठ रहे हैं. इन सवालों का जवाब तैयार किए बगैर 2030 के बाद सड़कों पर सिर्फ ई-व्हेकिल चलते देखने का सपना हवा-हवाई ही साबित होगा.
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