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भारत को हर साल पैदा करने होंगे 81 लाख रोजगार : वर्ल्ड बैंक 

नोटबंदी और जीएसटी की वजह इकोनॉमी में पैदा उथल-पुथल ने नौकरियों पर लगाम लगाई

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बिजनेस न्यूज
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रोजगार दर बरकरार रखना है तो तेजी से पैदा करनी होगी नौकरियां 
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रोजगार दर बरकरार रखना है तो तेजी से पैदा करनी होगी नौकरियां 
(फोटो: Erum Gour/The Quint)

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भारत को अपनी रोजगार दर बरकरार रखने के लिए सालाना 81 लाख रोजगार पैदा करने की जरूरत है. वर्ल्ड बैंक ने अपनी रिपोर्ट में यह बात कही. रिपोर्ट में कहा गया है कि देश की आर्थिक वृद्धि चालू वित्त वर्ष में 7.3 फीसदी रहने की उम्मीद है. जिसके अगले दो वर्षों में बढ़कर 7.5 प्रतिशत होने का अनुमान है. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत नोटबंदी और जीएसटी व्यवस्था के नकारात्मक प्रभाव से बाहर आ चुका है.

साल में दो बार जारी होने वाली साउथ एशिया इकोनॉमिक फोकस रिपोर्ट ' जॉबलेस ग्रोथ ' में बैंक ने कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था में सुधार की बदौलत इस क्षेत्र ने दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ते क्षेत्र का दर्जा फिर से हासिल कर लिया है. भारत के संबंध में कहा गया है कि उसकी आर्थिक वृ्द्धि 2017 में 6.7 फीसदी से बढ़कर 2018 में 7.3 फीसदी रह सकती है. निजी निवेश और निजी खपत में सुधार से इसके निरंतर आगे जाने की उम्मीद है. रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि देश की वृद्धि दर 2019-20 और 2020-21 में बढ़कर 7.5 फीसदी हो जाएगी. भारत को वैश्विक वृद्धि का फायदा उठाने के लिए निवेश और निर्यात बढ़ाने का सुझाव दिया है.

2018 में 70 लाख नौकरियां पैदा करने का दावा लेकिन रोजगार के मोर्चे पर हालात ठीक नहीं (फोटो: The Quint/Ankita Das)

वर्ल्ड बैंक ने कहा है

हर महीने 13 लाख नए लोग कामकाज करने की उम्र में प्रवेश कर जाते हैं. और भारत को अपनी रोजगार दर को बनाए रखने के लिए 81 लाख नौकरियां पैदा करनी चाहिए, जो कि 2005-15 के आंकड़ों के विश्लेषण के अनुसार लगातार गिर रही है.
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वर्ल्ड बैंक ने इसकी मुख्य वजह महिलाओं का नौकरी बाजार से दूर रहने को करार दिया है. वर्ल्ड बैंक के दक्षिण एशिया क्षेत्र के प्रमुख अर्थशास्त्री मार्टिन रामा ने कहा , "2025 तक हर महीने 18 लाख से अधिक लोग कामकाज करने की उम्र में पहुंचेंगे और अच्छी खबर यह है कि आर्थिक वृद्धि नई नौकरियां पैदा कर रही हैं.

दरअसल, मोदी सरकार के दो अहम फैसलों नोटबंदी और जीएसटी ने अर्थव्यवस्था में काफी उथलपुथल पैदा की है. नोटबंदी की वजह से कैश की कमी होने से आर्थिक गतिविधियां बेहद धीमी हो गईं. मैन्यूफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर दोनों इससे प्रभावित हुए. इसके साथ ही जीएसटी लागू होने के बाद भी अर्थव्यवस्था में एक आशंका का माहौल दिखा. जीएसटी की जटिलताओं की वजह से बड़ी तादाद में कारोबारयों ने आयकर रिटर्न नहीं भरा.

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