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देश की तीसरे नंबर की एयरलाइंस जेट एयरवेज की 50 परसेंट से ज्यादा हिस्सेदारी सिर्फ एक रुपए में बिक रही है. कर्ज में डूबी जेट एयरवेज को एक रुपए में बेचना इसे डूबने से बचाने की कोशिश है.
इससे एयरलाइंस को चलाने के लिए नई पूंजी आएगी क्योंकि जेट के पास नकदी की इतनी कमी है कि रोजाना के खर्चे चलाने लायक रकम नहीं है. 21 फरवरी को जेट की किस्मत का फैसला होगा.
एक रुपए में 50 परसेंट हिस्सेदारी खरीदने का मतलब क्या है आइए समझते हैं
एक वक्त देश की सबसे बड़ी एयरलाइंस रही जेट एयरवेज अभी भी तीसरे नंबर की सबसे बड़ी एयरलाइंस है. टिकटिंग एजेंट रहे नरेश गोयल ने धीरे धीरे करके जेट एयरवेज बनाई.
जेट एयरवेज लंदन और सिंगापुर समेत कई अमेरिकी शहरों में भी उड़ान भरती है.
साल 2000 में नंबर वन रही जेट एयरवेज का दबदबा इंडिगो, स्पाइसजेट, गो एयर जैसी एयरलाइंस के आने से कम होता गया. जेट ने जब मुकाबला करने के लिए किराए कम करने शुरू किए तो उसे नुकसान होने लगा. लेकिन जेट फ्यूल महंगा होना शुरू हुआ तो किराए बढ़ने लगे और लोगों ने महंगे के बजाएय बजट एयरलाइंस को ही पसंद किया.
एयरलाइंस ने लोन पर डिफॉल्ट करना शुरू कर दिया कर्मचारियों की सैलरी देने के लिए रकम कम पड़ने लगी और बहुत सी उड़ानें रद्द करने के लिए मजबूर होना पड़ा.
स्टेट बैंक की अगुआई वाले कंसोर्शियम ने रिजर्व बैंक के फ्रेमवर्क के हिसाब से 11.40 करोड़ नए शेयर जारी करके 50.1 परसेंट हिस्सेदारी 1 रुपए में खरीदने का प्रस्ताव दिया है.
रिजर्व बैंक की ये प्रक्रिया निगेटिव नेटवर्थ वाली कंपनियों पर लागू होती है. लेकिन इस प्रस्ताव को सभी लेनदारों (बैंक) के अलावा नरेश गोयल और एतिहाद की मंजूरी मिलनी जरूरी है.
एक रुपए में 50 परसेंट से ज्यादा हिस्सेदारी बेचने के बाद बना ढांचा अस्थायी ही होगा लेकिन इससे एयरलाइंस को निवेशकों से नई इक्विटी पूंजी जुटाने के लिए वक्त मिल जाएगा. इससे शेयरहोल्डिंग पैटर्न बदल जाएगा.
जेट एयरवेज को अपने पैरों पर खड़े होने के लिए फौरन ही करीब 8500 करोड़ रुपयों की जरूरत है. इतने रकम नई इक्विटी, कर्ज की रीस्ट्रक्चरिंग और कुछ एसेट बेचने से आएगी.
अगर डील को मंजूरी मिल गई तो बैंकों का कर्ज शेयर में बदल जाएगा उससे जेट एयरवेज पर कर्ज सिर्फ एक रुपए रह जाएगा.
जेट एयरवेज के मैनेजमेंट ने अभी इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी है. जेट एयरवेज की इस बारे में एतिहाद और टाटा ग्रुप से भी बात चल रही है. नरेश गोयल का प्रस्ताव है कि अगर उन्हें 25 परसेंट हिस्सेदारी रखने दी जाएगी तो वो 700 करोड़ रुपए लगा सकते हैं. एतिहाद करीब 1400 करोड़ रुपए लगाकर करीब 25 परसेंट हिस्सा चाहती है. जबकि भारत का नेशनल इनवेस्टमेंट और इंफ्रास्ट्रक्चर फंड 1300 करोड़ रुपए लगा सकता है.
अगले कुछ महीनों में चुनाव हैं और ऐसे मौके में सरकार नहीं चाहेगी कि एयरलाइंस के डूबने की नौबत आए क्योंकि इससे 23,000 नौकरियों पर भी संकट आएगा. इसके अलावा मोदी सरकार की इमेज को भी झटका लगेगा.
अबूधाबी की एयरलाइंस भी इन दिनों मुश्किल में चल रही है. उसे हजारों नौकरियों में कटौती करनी पड़ी है और 2 साल में करीब 350 करोड़ डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा है. यही वजह है कि एयरलाइंस ने बोइंग और एयरबस को नए विमान खरीदने के लिए दिया गया 21.4 अरब डॉलर का ऑर्डर घटा दिया है.
इसलिए एतिहाद के लिए भी सेहतमंद जेट एयरवेज जरूरी है. जेट उसके लिए भारत के बड़े विमानन बिजनेस का रास्ता खोलने के लिए जरूरी है.
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