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देश के सबसे बड़े बिजनेसमैन मुकेश अंबानी अपनी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज के लिए उत्तराधिकार की योजना बनाने में जुट गए हैं. खबरें ऐसी हैं कि मुकेश अंबानी एक फैमिली काउंसिल बनाने जा रहे हैं, जो रिलायंस इंडस्ट्रीज की अलग-अलग कंपनियों से जुड़ा कोई भी फैसला लेने में अहम भूमिका निभाएगी. इस काउंसिल में मुकेश अंबानी के तीनों बच्चों- आकाश, अनंत और ईशा के अलावा अंबानी परिवार का एक सीनियर मेंबर होगा. साथ ही इस काउंसिल में कुछ बाहरी लोगों को भी रखा जा सकता है, जो मेंटॉर और सलाहकारों के रूप में काम करेंगे.
दुनिया के चौथे सबसे अमीर कारोबारी मुकेश अंबानी का फैमिली काउंसिल बनाने का ये फैसला अपने-आप में बड़ी खबर है. केवल इसलिए नहीं कि ये देश के सबसे बड़े कॉर्पोरेट घराने रिलायंस इंडस्ट्रीज से जुड़ी है, बल्कि इसलिए भी कि हमारे देश के बिजनेस घरानों में उत्तराधिकार को लेकर ऐसी साफ सोच के उदाहरण गिने-चुने मिलते हैं. मुकेश अंबानी अभी 63 साल के हैं, और उनके तीनों बच्चे रिलायंस ग्रुप की किसी ना किसी कंपनी के बोर्ड में भी शामिल हैं. 80 अरब डॉलर से ज्यादा की जायदाद के मालिक मुकेश अंबानी फैमिली काउंसिल बनाकर ये सुनिश्चित कर देना चाहते हैं कि रिलायंस ग्रुप या परिवार से जुड़े किसी भी विवाद का निपटारा इसी काउंसिल के जरिए हो.
मुकेश अंबानी के फैमिली काउंसिल बनाने के पीछे कुछ हद तक वो विवाद भी रहा होगा, जो उनके पिता धीरूभाई अंबानी की मौत के बाद कारोबार के बंटवारे को लेकर लंबे समय तक चला था. जुलाई 2002 में धीरूभाई के निधन के बाद मुकेश रिलायंस ग्रुप के चेयरमैन बने थे, जबकि उनके छोटे भाई अनिल को मैनेजिंग डायरेक्टर बनाया गया था. तब से ही दोनों भाइयों के बीच विवाद होने लगे थे, लेकिन नवंबर 2004 में दोनों भाइयों के मतभेद सबके सामने खुलकर आए और अंबानी के पारिवारिक मित्र और आईसीआईसीआई बैंक के तत्कालीन चेयरमैन केवी कामत की मध्यस्थता के बाद आखिरकार जून 2005 में बंटवारे पर सहमति बनी थी.
रिलायंस इंडस्ट्रीज के लिए उत्तराधिकार की साफ-साफ योजना तैयार करने के इरादे के साथ ही मुकेश अंबानी ने देश के तमाम बिजनेस घरानों को एक मैसेज भी दिया है. और वो मैसेज है कि बिजनेस घरानों के मुखिया को अपनी आंखों के सामने ही उत्तराधिकार के सारे संभावित सवालों के जवाब ढूंढ़ लेने चाहिए.
दरअसल इस तरह के झगड़े की नींव उस सोच में दिखती है, जो हमारे देश के बिजनेस घरानों में आम है. पीडब्ल्यूसी इंडिया फैमिली बिजनेस सर्वे 2019 के मुताबिक हमारे देश में बिजनेसमैन उसी चीज पर सबसे कम ध्यान देते हैं, जो उनके कारोबार को आगे बढ़ाने और उसे कायम रखने के लिए सबसे जरूरी है- यानी सक्सेशन प्लानिंग. सर्वे में जिन बिनजेस घरानों से बात की गई, उनमें से केवल 21 फीसदी ने अपने उत्तराधिकार की योजना बना रखी थी. या ये कहें कि हर पांच में से चार बिजनेस घराने ऐसे हैं, जहां उत्तराधिकार की लड़ाई छिड़ सकती है.
उत्तराधिकार की योजना का मतलब केवल ये नहीं होता है कि जायदाद की वसीयत तैयार कर दी जाए. वसीयत उसे तैयार करने वाले की मौत के बाद प्रभावी होती है, और आमतौर पर पारिवारिक जायदाद के बंटवारे का दस्तावेज होती है. जबकि उत्तराधिकार की योजना का मकसद होता है कि परिवार (खास मामलों में परिवार से बाहर) के सदस्यों में से उन लीडर्स की पहचान की जाए जो मौजूदा मुखिया के बाद काम-धंधे की बागडोर संभालने के काबिल हों और फिर उन लोगों को ट्रेनिंग देकर सही वक्त पर बागडोर थमा दी जाए.
हमारे देश में बड़े बिजनेस घरानों में इस तरह की प्लानिंग की एक मिसाल राहुल बजाज की अगुवाई वाले बजाज परिवार ने दी है. बजाज परिवार की चौथी पीढ़ी इस वक्त अपने पारिवारिक उद्योग-धंधों को संभाल रही है. ग्रुप की तीसरी पीढ़ी के सदस्यों- राहुल, शेखर, मधुर और नीरज बजाज ने फैमिली सेटलमेंट एग्रीमेंट के जरिए ये साफ कर रखा है कि किस सदस्य के पास बिजनेस का कौन सा हिस्सा जाएगा, और विवाद होने की सूरत में उसका निपटारा कैसे होगा. छोटी-बड़ी करीब 40 कंपनियों वाले बजाज ग्रुप का मार्केट कैप 5 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा है और ये देश का तीसरा सबसे बड़ा ग्रुप है. बजाज ग्रुप के फैमिली सेटलमेंट एग्रीमेंट के बाद अब रिलायंस इंडस्ट्रीज की फैमिली काउंसिल शायद देश के और बिजनेस घरानों को सक्सेशन प्लानिंग की अहमियत को समझने में काफी मदद करेगी.
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