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लगभग साढ़े 14 हजार करोड़ रुपये के पीएनबी घोटाले को भले ही बैंक के कुछ धूर्त कर्मचारियों ने अंजाम दिया हो लेकिन यह रिस्क कंट्रोल और निगरानी की बड़ी खामियों की वजह से संभव हुआ. बैंक के आंतरिक पैनल की जांच में इसका खुलासा हआ है.
बैंक के सीईओ सुनील मेहता ने अप्रैल में कहा था कि उन्होंने इस घोटाले के आरोपी 21 कर्मचारियों को सस्पेंड कर दिया है.बाकी लोग भी अगर दोषी पाए जाएंगे तो उन्हें भी हटा दिया जाएगा. लेकिन 162 पेजों की आतंरिक रिपोर्ट से पता चलता है कि यह सिर्फ कुछ शाखाओं के अफसरों की ही करतूत नहीं थी. बल्कि बड़ी तादाद में बैंक के छोटे-बड़े कर्मचारियों की लापरवाही की वजह से इतना बड़ा घोटाला हुआ.
आंतरिक जांच रिपोर्ट के मुताबिक देश के दूसरे बड़े सार्वजनिक बैंक का यह विशाल घोटाला 54 कर्मचारियों की नाकामी का नतीजा था. इनमें फॉरेन एक्सचेंज मैनेजर से लेकर ऑडिटर और रीजनल दफ्तरों के हेड शामिल हैं. उन्होंने घोटाले की साजिश होने दी. इन 54 लोगों से आठ के खिलाफ घोटाले में आरोपपत्र दाखिल किए गए हैं.
पांच अप्रैल को पीएनबी घोटाले की यह आतंरिक रिपोर्ट फ्रॉड रिस्क मैनेजमेंट को सौंपी गई थी. इसमें दर्जनों ऐसे बैंक रिकार्ड और इंटरनल ई-मेल हैं जो पुलिस की ओर से अदालत में पेश किए गए हैं. इससे पहले रिपोर्ट के तथ्यों का खुलासा नहीं किया गया था. रिपोर्ट के मुताबिक कई स्तरों पर लापरवाही हुई. रिपोर्ट के मुताबिक इस घोटाले की जांच के दौरान बेहद कैजुअल अप्रोच दिखाया गया है. रिपोर्ट की प्रमुख बातें इस तरह हैं
पीएनबी के कुछ कर्मचारी सालों तक आपस में मिल कर मुंबई के ब्रैडी हाउस ब्रांच से फर्जी बैंक गारंटी जारी करते रहे. इसके आधार पर नीरव मोदी और उसके मामा मेहुल चोकसी की ज्वैलरी कंपनियों ने बैंक की विदेशी शाखाओं से कर्जा उठाया था.
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