advertisement
क्या रिजर्व बैंक गवर्नर उर्जित पटेल इस्तीफा दे सकते हैं? वित्तमंत्रालय और रिजर्व बैंक में इस बात की खूब अटकलें हैं कि अगर मोदी सरकार आरबीआई एक्ट के सेक्शन 7 को लागू करने के लिए अड़ गई तो उर्जित पटेल इस्तीफा दे सकते हैं.
सरकार को लगता है कि बैंकों को कर्ज देने में पाबंदी लगाने और ब्याज दरों के मामले में रिजर्व बैंक उसकी सलाह की अनदेखी कर रहा है. लेकिन ये भी सही है कि आजाद भारत में किसी भी सरकार ने एक्ट के सेक्शन 7 का इस्तेमाल नहीं किया है.
अगर मोदी सरकार सेक्शन-7 लागू करती है तो ऐसा करने वाली वो पहली सरकार होगी. लेकिन सूत्र के मुताबिक गवर्नर उर्जित पटेल ने साफ कर दिया है कि ऐसा होने पर वो अपना पद छोड़ देंगे.
मोदी सरकार और रिजर्व बैंक के बीच तनातनी इतनी बढ़ गई है कि सरकार ने रिजर्व बैंक एक्ट की धारा 7 को लागू करने की चर्चा शुरू कर दी है. खबरें हैं कि ये कसरत महीने भर से चल रही है. बताया जा रहा है कि उर्जित पटेल ने भी तेवर सख्त करते हुए साफ कह दिया है कि ऐसा हुआ तो वो पद छोड़ देंगे.
मंगलवार को रिजर्व बैंक गवर्नर उर्जित पटेल और वित्तमंत्री अरुण जेटली मिले तब भी दोनों के बीच रिश्तों में दिल्ली जैसी धुंध छाई हुई थी.
अरुण जेटली ने फाइनेंशियल स्टेबिलिटी डेवलपमेंट काउंसिल बैठक से पहले ही तल्खी जाहिर कर दी. उन्होंने एक दूसरे कार्यक्रम में रिजर्व बैंक को इस बात के लिए आड़े हाथों लिया कि 2008 से 2014 के बीच बैंक मनमाने कर्ज बांटते रहे और आरबीआई दूसरी तरफ देखता रहा. इसी वजह से बैंकिंग सेक्टर संकट में फंस गया है.
दूसरा कोई टाइम होता, तो जेटली की बातों का इतना बारीक मतलब नहीं निकाला जाता. लेकिन अभी मोदी सरकार और आरबीआई के बीच टेंशन है. ऐसे में जेटली ने जिस अंदाज से रिजर्व बैंक के लिए उखड़ी-उखड़ी बातें कीं और उसे आड़े हाथों लिया, उससे यही लग रहा है कि वित्त मंत्रालय और उर्जित पटेल के बीच दूरियां बहुत बढ़ गई हैं.
फाइनेंशियल स्टेबिलिटी एंड डेवलपमेंट काउंसिल की बैठक में रिजर्व बैंक गवर्नर के अलावा फाइनेंशियल मार्केट के दूसरे रेगुलेटर भी मौजूद थे. जाहिर है, इस मीटिंग में दोनों के बीच टेंशन की चर्चा नहीं हुई होगी.
FSDC की बैठक में ILFS डिफॉल्ट संकट से होने वाली दिक्कतों पर चर्चा हुई. रिजर्व बैंक को जिम्मेदारी दी गई है कि वो सिस्टम में नकदी की कमी नहीं आने दे. अगर ऐसा हुआ, तो दूसरे डिफॉल्ट का कुचक्र शुरू होने का खतरा है.
बैठक के बारे में यही कहा जा रहा है कि माहौल अच्छा था और रिजर्व बैंक ने यही भरोसा दिलाया कि ब्याज दर और दूसरे मामलों पर उसका रुख संतुलित रहेगा. लेकिन गवर्नर उर्जित पटेल बैठक के बाद मीडिया के किसी भी सवाल का जवाब दिए बगैर चले गए.
मोदी सरकार और रिजर्व बैंक के बीच रिश्तों में तल्खी दूर करने का सबसे अच्छा तरीका है कि इस बारे में साफ-साफ जानकारी दी जाए. अटकलें और शंकाएं इकनॉमी, शेयर बाजार और करेंसी तीनों के लिए घातक हैं. अगर सरकार चुनाव से पहले सब कुछ अच्छा-अच्छा चाहती है, तब भी उसे रिजर्व बैंक से मिल-बैठकर सुलह करने में भी फायदा है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)