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भारतीय रिजर्व बैंक के केंद्रीय बोर्ड की बैठक 19 नवंबर को मुंबई में होगी. सरकार और केंद्रीय बैंक के बीच विभिन्न मुद्दों को लेकर विवाद के बीच यह बैठक बुलाई गई है. सूत्रों ने बताया कि यह बैठक पहले से तय और नियमित बैठक है. बोर्ड की पिछली बैठक इसी महीने आयोजित की गई थी.
रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने हाल में केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता से संबंधित मुद्दा उठाया था. उनके इस बयान के बाद यह बोर्ड की पहली बैठक होगी. रिजर्व बैंक के केंद्रीय निदेशक मंडल में कुल 18 सदस्य हैं. इनमें सरकार द्वारा मनोनीत सदस्य भी शामिल हैं.
आरबीआई से विवाद को लेकर वित्त मंत्रालय ने अपना बयान जारी किया है. सरकार ने कहा है कि RBI एक्ट के दायरे में रिजर्व बैंक को ऑटोनॉमी मिली है, जोकि जरूरी है और ये सबको मंजूर है.
वित्त मंत्रालय ने कहा है कि भारत की तमाम सरकारें इस ऑटोनॉमी का सम्मान करती रही हैं. सरकार और रिजर्व बैंक दोनों जनहित और भारतीय इकनॉमी के हित के मुताबिक काम करती हैं. सरकार और रिजर्व बैंक के बीच समय-समय पर तमाम मुद्दों पर व्यापक चर्चा होती रहती है.
बयान में कहा गया है, ‘दूसरे सभी रेगुलेटर के मामलों में भी यही प्रक्रिया है. भारत सरकार ने इन चर्चाओं को कभी भी सार्वजनिक नहीं किया. सिर्फ अंतिम फैसले की जानकारी ही सार्वजनिक की जाती है. सरकार चर्चा के दौरान सामने आए मुद्दों के आकलन के आधार पर सुझाव देती है और सरकार यह प्रक्रिया जारी रखेगी.’
मोदी सरकार ने महीने भर पहले ही रिजर्व बैंक के पर कतरने की तैयारी शुरू कर दी है. खबरों के मुताबिक सरकार ने आरबीआई एक्ट का सेक्शन-7 लागू के लिए चर्चा शुरू कर दी है. इसके लागू होने से सरकार के पास अधिकार आ जाएगा कि वो जनहित में रिजर्व बैंक को आदेश, दिशा निर्देश दे सके.
अभी तक किसी सरकार ने इस एक्ट के सेक्शन 7 का इस्तेमाल नहीं किया है. अगर मोदी सरकार ने किया तो ऐसा करने वाली वो पहली सरकार होगी.
इस सेक्शन के लागू होने के बाद करीब करीब हर मुद्दे पर सरकार रिजर्व बैंक को निर्देश दे सकती है और आरबीआई वो मानने के लिए मजबूर होगा.
कई मामलों पर रिजर्व बैंक और मोदी सरकार के बीच तालमेल नहीं है और दोनों के बीच रिश्ते लगातार खराब होते जा रहे हैं.
डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने शुक्रवार को खुलकर चेतावनी भी दे दी कि रिजर्व बैंक की ऑटोनॉमी से छेड़छाड़ के भयंकर परिणाम होंगे.
वित्तमंत्री अरुण जेटली ने मंगलवार को खुलकर कहा था कि 2008 से 2014 के बीच बैंक अंधाधुंध कर्ज बांटते रहे और रिजर्व बैंक अनदेखी करता रहा, जिससे बैंकों के एनपीए में भारी बढ़ोतरी हुई.
जेटली जिस वक्त की बात कर रहे थे उस दिनों उर्जित पटेल डिप्टी गवर्नर थे और उनके पास अहम जिम्मेदारियां थीं.
शुक्रवार को आरबीआई के डिप्टी गर्वनर डॉ. विरल वी. आचार्य ने स्वायत्त संस्थानों की स्वायत्ता को लेकर सरकार को चेताया था. विरल आचार्य ने कहा कि जो सरकारें केंद्रीय बैंक की स्वतंत्रता का सम्मान नहीं करती हैं उन्हें वित्तीय बाजार की नाराजगी सहनी पड़ती है.
डिप्टी गवर्नर ने कहा कि जो सरकार केंद्रीय बैंक को आजादी से काम करने देती हैं, उस सरकार को कम लागत पर उधारी और अंतरराष्ट्रीय निवेशकों का प्यार मिलता है. उन्होंने कहा था कि ऐसी सरकार का कार्यकाल भी लंबा रहता है.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, डिप्टी गर्वनर के बयान के बाद टकराव सार्वजनिक होने से सरकार बेहद नाराज है. सरकार ने इस पूरे घटनाक्रम को बेहद दुर्भाग्यपूर्ण बताया है. सरकार का मानना है कि मामले को इस तरह से सार्वजनिक नहीं होना चाहिए था. केंद्र सरकार इसलिए भी परेशान है क्योंकि, सरकार को आरबीआई से ऐसी उम्मीद नहीं थी.
RBI और सरकार के बीच तकरार बढ़ चुकी है. सरकार आरबीआई एक्ट के सेक्शन 7 को लागू करने पर विचार कर रही है. बता दें कि सरकार पहली बार इस पावर का इस्तेमाल करने जा रही है. सरकार अगर सेक्शन 7 को लागू करती है, तो उसे जनहित को ध्यान में रखते हुए आरबीआई गर्वनर को निर्देशित करने का अधिकार मिल जाएगा.
उधर, खबर ये भी है कि अगर सरकार सेक्शन 7 को लागू करती है तो आरबीआई गर्वनर उर्जित पटेल अपने पद से इस्तीफा दे सकते हैं.
इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, हाल के दिनों में सरकार की ओर से आरबीआई गवर्नर को अलग-अलग खत भेजे गए हैं. इन खतों में NBFC की लिक्विडिटी, कमजोर बैंकों के लिए पूंजी की आवश्यकता और SMEs को उधार देने के मुद्दों पर आरबीआई को सलाह दी गई थी.
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