advertisement
भारतीय बैंकिंग की दो शिखर महिलाएं इन दिनों संकट के दौर से गुजर रही हैं. एक्सिस बैंक की सीईओ शिखा शर्मा ने बैंक छोड़ने का मन बना लिया और आईसीआईसीआई बैंक की सीईओ चंदा कोचर वीडियोकॉन को दिए गए लोन में पति और देवर की भूमिका के खिलाफ जांच की वजह से संदेह के घेरे में हैं.
एक्सिस बैंक के लगातार बढ़ते एनपीए, कुछ लोन के डायवर्जन और नोटबंदी के दौरान कुछ बैंक अधिकारियों की भूमिकाओं के बाद एक्सिस बैंक बोर्ड में शिखा शर्मा के खिलाफ माहौल बनना शुरू हो गया था और अब उन्होंने खुद इससे अलग होने का मन बना लिया है. दूसरी ओर चंदा कोचर के सीईओ बने रहने के मामले में आईसीआईसीआई बोर्ड के बंटने की खबरें आ रही हैं. दिलचस्प यह है कि दोनों ने दिग्गज बैंकर और आईसीआईसीआई बैंक के सीईओ रह चुके के वी कामथ की शागिर्दी में बैंकिंग के गुर सीखे हैं.
एक्सिस बैंक में शिखा शर्मा की भूमिका का विश्लेषण करते हुए ब्लूमबर्ग क्विंट की बैंकिंग, फाइनेंस और इकोनॉमी एडिटर ईरा दुग्गल लिखती हैं- एक्सिस बैंक में शिखा शर्मा की एंट्री तूफानी थी. साल 2000 से ही यूटीआई बैंक के चेयरमैन रहे पीजे नायक किसी बाहरी शख्स को एक्सिस बैंक का सीईओ बनाने के पक्ष में नहीं थे. लेकिन बोर्ड शिखा शर्मा के पक्ष में था. काफी हंगामा हुआ और आखिर बोर्ड की जीत हुईं तो शिखा सीईओ बन गईं. 2009 में उन्होंने सीईओ के तौर पर एक्सिस बैंक की सीईओ की कमान संभाली.
लेकिन 2018 में उनकी होने वाली विदाई भी इसी तरह हंगामाखेज साबित हुई है. रिजर्व बैंक ने चौथी बार उन्हें सीईओ बनाए जाने पर एतराज जताया. इसके बाद से ही उनके बाहर जाने की खबरें उड़ने लगी थीं. बहरहाल, अपने 9 साल के कार्यकाल में शिखा ने एक्सिस बैंक की ग्रोथ में खासी अहम भूमिका निभाई. लेकिन यह ग्रोथ बैंक की एसेट क्वालिटी में गिरावट की कीमत पर आई. 2011 में बैंक ने इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर को बड़े पैमाने पर लोन देना शुरू किया लेकिन 2015 तक ये फंस गए. 2016 में बैंक का एनपीए बढ़ गया और ऑडिट रिपोर्ट से पता चला कि एसेट क्वालिफिकेशन में भी डायवर्जन हुआ. एक्सिस बैंक की छवि को नोटबंदी के दौरान काफी धक्का लगा. बैंक के कई अधिकारी नोट बदलने के आरोप में पकड़े गए. इसके अलावा कोटक-एक्सिस बैंक मर्जर की अफवाहों ने भी शिखा शर्मा को आलोचनाओं के घेरे में ला दिया.
वित्त वर्ष 2017 में बैंक ने 21,280 करोड़ रुपये का बैड लोन घोषित किया था लेकिन आरबीआई ने पाया कि बैड लोन 26,913 करोड़ रुपये का था. 5,633 करोड़ और इसके पिछले वित्त वर्ष में 9,480 करोड़ रुपये का डायवर्जन आरबीआई को नागवार गुजरा था. रिजर्व बैंक शिखा शर्मा के नेतृत्व में बैंक के कामकाज से खुश नहीं था और आखिरकार बोर्ड में भी उन्हें पहले जैसा समर्थन मिलने की खबरें नहीं आ रही थीं. बहरहाल, शिखा शर्मा नए कार्यकाल के सात महीने के बाद ही बैंक छोड़ने की इजाजत मांगी है. साफ है कि शुरुआत में सफल पारी खेलने के बाद शिखा शर्मा लगातार बिगड़ते हालातों को संभाल नहीं पाई और उन्हें एग्जिट रूट ढूंढना पड़ा.
चंदा कोचर कोई मामूली बैंकर नहीं हैं. 2008 में लेहमैन ब्रदर्स के ध्वस्त होने के बाद शुरू हुए अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संकट से बैंक को बचा ले जाने में उनकी अहम भूमिका रही है. सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से नवाजा और टाइम मैगजीन ने उन्हें दुनिया की 100 ताकतवर महिलाओं की सूची में शामिल किया. लेकिन पिछले महीने चंदा कोचर के पति दीपक कोचर और वीडियोकॉन के प्रमोटर वेणुगोपाल धूत के बीच कथित गठजोड़ के खिलाफ सीबीआई की जांच से उन पर दबाव काफी बढ़ गया है. आरोप है कि धूत ने दीपक कोचर की कंपनी Nu-power को करोड़ों रुपये दिए. जबकि धूत की कंपनी को लोन के तौर पर आईसीआईसीआई से मिला 3250 करोड़ रुपये का लोन एनपीए में तब्दील हो चुका है.
चंदा कोचर पर भले ही आरोप न लगे हों लेकिन पति दीपक कोचर, देवर राजीव कोचर और Nu-power के सीईओ से सीबीआई पूछताछ कर चुकी है. खबर है कि आईसीआईसीआई बोर्ड अब चंदा कोचर के बैंक के सीईओ बने रहने पर बंटा हुआ. निवेशकों की ओर से बैंक के कॉरपोरेट गवर्नेंस पर सवाल उठाए जा रहे हैं. बोर्ड के कुछ बाहरी निदेशक चाहते हैं कि चंदा कोचर को सीईओ पद छोड़ देना चाहिए. सरकार की ओर से बोर्ड में अपने नॉमिनी में बदलाव से यह संकेत मिल रहा है कि सरकार Nu-power मामले से खुश नहीं है. अगर वीडियोकॉन और कोचर परिवार के बाच साठगांठ साबित हो जाता है तो यह चंदा के शानदार करियर पर एक बड़ा दाग साबित होगा.
ये भी पढ़ें - AXIS BANK छोड़ेंगी सीईओ शिखा शर्मा, बोर्ड से टर्म घटाने की गुजारिश
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)