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इजिप्ट की स्वेज नहर में मंगलवार से एक बड़े मालवाहक जहाज के फंस जाने की वजह से ग्लोबल ट्रेड के सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया है. लाल सागर और भूमध्य सागर के बीच जहाजों की आवाजाही रुकी हुई है. इस संकट के दायरे में भारत भी है, इसलिए भारत सरकार ने इससे निपटने के लिए योजना भी बनाई है.
इस बीच, कई सवाल उठ रहे हैं, मसलन, ग्लोबल ट्रेड को इस संकट से कितना खतरा है? भारत पर क्या असर हो सकता है? भारत सरकार की योजना क्या है? इन सवालों के जवाब से पहले यह जान लेते हैं कि आखिर यह संकट पैदा कैसे हुआ:
मंगलवार को जहाज फंसने की घटना तब हुई जब तेज हवाओं की वजह से 120 मील लंबी नहर के किनारे पर भारी मात्रा में रेत आ गया. उत्तर में भूमध्य सागर को दक्षिण में लाल सागर से जोड़ने वाली इस नहर का रास्ता संकरा है - कुछ जगहों पर 675 फीट (205 मीटर) से भी कम चौड़ा - और जब कम विजिबिलिटी होती है, तो नेविगेट करने में मुश्किल बढ़ जाती है.
इसके बाद, 200000 मीट्रिक टन वजन वाले, 400 मीटर लंबे और 59 मीटर चौड़े इस जहाज को निकालने की सारी कोशिशें नाकाम रही हैं. पनामा-रजिस्टर्ड यह जहाज चीन से नीदरलैंड के रोटरडम जा रहा था.
इजिप्ट की स्वेज नहर दुनिया के सबसे ज्यादा ट्रैफिक वाले जलमार्गों में से एक है, जिससे हर रोज औसतन 50 जहाज गुजरते हैं. इस नहर का इस्तेमाल मुख्य तौर पर मिडिल ईस्ट से यूरोप और नॉर्थ अमेरिका तक कच्चा तेल ले जाने वाले टैंकर करते हैं, साथ ही इसकी उलटी दिशा में भी इस रूट का बड़ा इस्तेमाल होता है.
लंबी दूरी के लिए समुद्री परिवहन ट्रांसपोर्ट का सबसे सस्ता साधन माना जाता है. स्वेज नहर अथॉरिटी के मुताबिक, ग्लोबल ट्रेड का 80 फीसदी से ज्यादा हिस्सा जलमार्ग के जरिए ट्रांसपोर्ट किया जाता है.
ऐसे में स्वेज संकट लंबे वक्त तक बरकरार रहा तो दुनिया के कई हिस्सों में, जहाजों में फंसे सामान और खासकर तेल की किल्लत होगी, जिससे उनकी कीमतों में बढ़ोतरी की आशंका है क्योंकि अफ्रीका के आसपास यूरोप और एशिया के बीच वैकल्पिक मार्ग स्वेज मार्ग की तुलना में करीब 7-9 दिन धीमा है. जहाज फंसने के बाद कई देशों में तेल की कीमतों में थोड़ा उछाल आ भी चुका है.
स्वेज नहर अथॉरिटी ने अपनी वेबसाइट पर दूसरे रूट्स का जिक्र करते हुए बताया है कि स्वेज नहर को उसकी अनूठी जियोग्राफिक लोकेशन की वजह से ईस्ट और वेस्ट के बीच सबसे छोटा लिंक माना जाता है.
उसने स्वेज नहर (SC) रूट और केप ऑफ गुड होप रूट के बीच तुलना करते हुए बताया है कि अलग-अलग प्वाइंट्स पर SC रूट से दूरी कितनी कम हो जाती है.
टोक्यो (जापान) से रोटरडम (नीदरलैंड) के बीच केप ऑफ गुड होप रूट (पीला) की तुलना में स्वेज नहर रूट (नीला) 3315 नॉटिकल माइल्स (23 फीसदी) छोटा है.
सिंगापुर से न्यूयॉर्क (अमेरिका) के बीच पनामा नहर रूट (पीला) की तुलना में स्वेज नहर रूट (नीला) 2373 नॉटिकल माइल्स (19 फीसदी) छोटा है.
भारतीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने इस संकट को लेकर बताया है, ''23 मार्च 2021 से स्वेज नहर में आए अवरोध से वैश्विक व्यापार पर गंभीर असर पड़ रहा है. इस मार्ग का इस्तेमाल उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका और यूरोप को/से 200 बिलियन अमेरिकी डॉलर के भारतीय निर्यात/ आयात के लिए किया जाता है. इसमें फर्नीचर, चमड़े का सामान सहित पेट्रोलियम उत्पाद, कार्बनिक रसायन, लोहा और इस्पात, ऑटोमोबाइल, मशीनरी, कपड़ा और कालीन, हस्तशिल्प आदि शामिल हैं.''
ऐसे में भारत सरकार ने इस संकट से निपटने के लिए चार सूत्री योजना भी बनाई है. वाणिज्य विभाग के लॉजिस्टिक्स डिवीजन की ओर से शुक्रवार को बुलाई गई बैठक में इस योजना की रूपरेखा बनाई गई.
सरकार की योजना इस तरह है:
भारत सरकार ने शुक्रवार को कहा, ''अगर स्वेज नहर में आए अवरोध को दूर करने की कोशिशों (अटकने वाले जहाज को सीधा करने के लिए दोनों ओर खुदाई, हर ऊंचे ज्वार पर अतिरिक्त बजरे को जोड़े जाने, जहाज को खींचने वाले जहाज (टग्बोट) का इस्तेमाल आदि) के नतीजे मिलने में दो दिन और लग जाते हैं, तो इस प्रकार बना कुल बैकलॉग लगभग 350 जहाजों का हो जाएगा. अनुमान है कि इस बैकलॉग को खत्म होने में लगभग एक हफ्ते का समय लगेगा.''
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