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उत्तराखंड HC में रामदेव की दिव्य फार्मेसी की ‘स्वदेशी’ दलील खारिज

दिव्य फार्मेसी के टर्नओवर में आदिवासियों की भी हिस्सेदारी

अरुण पांडेय
बिजनेस न्यूज
Updated:
आचार्य बालकृष्ण और स्वामी रामदेव 
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आचार्य बालकृष्ण और स्वामी रामदेव 
(फोटो: PTI)

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बाबा रामदेव की दिव्य फार्मेसी अपनी कमाई का हिस्सा हिमालय के ऊंचे इलाकों में रहने वाले आदिवासियों और वहां के किसानों को नहीं देना चाहती, क्योंकि वो पूरी तरह स्वदेशी है. लेकिन उत्तराखंड हाईकोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया है.

बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण की कंपनी की दलील थी कि उन पर 2002 का बायो डायवर्सिटी कानून लागू नहीं होता. इस कानून के मुताबिक,  जड़ी-बूटी, हर्बल और आयुर्वेदिक प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनियों को उन इलाके के आदिवासियों और किसानों को कमाई में हिस्सेदार बनाना होगा. 

दिव्य फार्मेसी के खिलाफ क्या था पूरा मामला

उत्तराखंड बायो डायवर्सिटी बोर्ड ने बायो डायवर्सिटी एक्ट 2002 के एक प्रावधान के तहत दिव्य फार्मेसी की बिक्री के आधार पर लेवी फीस मांगी थी. लेकिन दिव्य फार्मेसी इसके खिलाफ उत्तराखंड हाईकोर्ट चली गई, लेकिन वहां भी उसकी दलील नहीं चली.

दिव्य फार्मेसी के ज्यादातर आयुर्वेदिक प्रोडक्ट जंगलों और पहाड़ी इलाकों से जुटाए गई जड़ी-बूटी और हर्बल चीजों से बनते हैं. डायवर्सिटी एक्ट के मुताबिक, इनसे कमाई का हिस्सा इलाके में रहने वाले लोगों के साथ बांटना जरूरी है.

‘स्वदेशी हैं इसलिए कमाई में हिस्सा नहीं देंगे’

दिव्या फार्मेसी ने हाईकोर्ट में दलील दी कि वो पूरी तरह से भारतीय कंपनी है, इसलिए बायो डायवर्सिटी एक्ट उस पर लागू नहीं होता. लेकिन उत्तराखंड बायो डायवर्सिटी बोर्ड ने दलील दी विदेशी और घरेलू के नाम पर भेदभाव से एक्ट का मकसद ही खत्म हो जाएगा.

दिव्य फार्मेसी का लक्ष्य किसानों को गरीबी और कर्ज से मुक्त कराना

1995 में बनाए गए दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट की कंपनी है दिव्य फार्मेसी. दिव्य फार्मेसी और पतंजलि की वेबसाइट के मुताबिक, कंपनी के पास हर रोज 50,000 किलो हर्ब को प्रोसेस करने की क्षमता है, जिनसे रोजना दो करोड़ रुपए के प्रोडक्ट बनाए जा सकते हैं.

कंपनी ने अपने विजन में कहा गया है कि वो किसानों को गरीबी और कर्ज से मुक्त कराना चाहती है और किसानों को उनकी पैदावार की पूरी कीमत देने की दिशा में काम कर रही है.

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 21 दिसंबर को दिए अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि जैविक संसाधन सिर्फ देश की नहीं, बल्कि आदिवासी और स्थानीय लोगों की संपत्ति हैं, जिन्होंने परंपरागत ज्ञान को सदियों से जीवित रखा है. इसलिए चाहे देशी हो या विदेशी हर कंपनी को उन लोगों को ज्ञान और संसाधनों का इस्तेमाल करके दवाएं और आयुर्वेदिक उत्पाद बनाने से होने वाली कमाई में हिस्सा देना होगा.

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क्या है बायो डायवर्सिटी एक्ट 2002

संसद ने 2002 में ये कानून बनाया था. इसके मुताबिक जंगलों और जैविक संसाधनों के इस्तेमाल के बदले होने वाले कमाई में वहां के स्थानीय लोगों को भी हिस्सेदारी दी जाएगी.

  • 2014 में सरकार ने इसे नोटिफाई कर दिया, जिसके मुताबिक सिर्फ जैविक संसाधन ही नहीं बल्कि परंपरागत ज्ञान के इस्तेमाल का फायदा भी लोगों को देना होगा.
  • अगर कंपनी का सालाना टर्नओवर 3 करोड़ रुपए से ज्यादा है, तो टर्नओवर से टैक्स हटाकर जितनी रकम हो उसका आधा परसेंट वहां के लोगों को देना होगा.
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने माना है कि हिमालय में रहने वाले आदिवासी समुदाय के पास बहुत परंपरागत ज्ञान है, इसलिए उनका हक है. संसद ने उनके अधिकारों को माना है फिर भी एक भारतीय कंपनी से उनका अधिकार नहीं दिला पाए.

हाईकोर्ट के मुताबिक बॉयोलॉजिकल रिसोर्स देश की संपत्ति हैं, लेकिन वहां के स्थानीय लोगों का भी उसमें हक है, क्योंकि उसके इस्तेमाल का ज्ञान उन्हें मालूम है. ये परंपरा सदियों से चली आ रही है.

हाईकोर्ट ने फैसले में कहा है कि उत्तराखंड बायोडायवर्सिटी बोर्ड के पास दिव्य फार्मेसी से फीस मांगने का अधिकार है. फीस पुरानी तारीख से वसूली जाए या नहीं ये तय करने का अधिकार कोर्ट ने बोर्ड को दे दिया है.

लेकिन दिव्य फार्मेसी के मुताबिक वो इस फैसले के खिलाफ अपील करेगी.

30 कंपनियां हक देने को तैयार

उत्तराखंड डायवर्सिटी बोर्ड के मुताबिक 30 कंपनियों फीस देने के लिए तैयार हैं और उन्होंने बोर्ड के साथ समझौते में दस्तखत भी कर दिए हैं.

दिव्य फार्मेसी की दलील थी कि जो विदेशी कंपनियां जैविक संसाधनों का इस्तेमाल करती हैं, सिर्फ उन्हें ही नेशनल बायो डायवर्सिटी बोर्ड से मंजूरी लेने की जरूरत है. इसलिए विदेशी कंपनियों से ही उनके सालाना टर्नओवर की आधे परसेंट कमाई देने की जरूरत है.

उत्तराखंड बायो डायवर्सिटी बोर्ड के मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय समझौतों में भी स्थानीय लोगों को उनकी जानकारी और संसाधन का फायदा देने का जिक्र है. इस सिलसिले में 1992 का रियो डि जनेरियो सम्मेलन, 2002 का जोहांसबर्ग ऐलान और 2010 का नगोया प्रोटोकॉल शामिल है.

वैसे कारोबार के लिहाज से योगगुरु रामदेव की कंपनी पतंजलि का प्रदर्शन खराब हुआ है. पतंजलि को 5 साल में पहली बार विलोमासन लग गया है. उनकी बिक्री 10 परसेंट गिरी है और मुनाफा आधा हो गया है. मार्च 2013 के बाद ये पहला मौका है, जब लगातार ऊंचाई की तरफ जा रही रामदेव की कंपनी को नीचे आना पड़ा है.

पूरी खबर यहां पढ़ें- रामदेव की पतंजलि को लगा विलोमासन

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Published: 28 Dec 2018,05:38 PM IST

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