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आरबीआई ने मौजूदा वित्त वर्ष की पहले मॉनेटरी पॉलिसी रिव्यू में रेपो रेट 25 बेसिस प्वाइंट यानी चौथाई फीसदी की कटौती कर दी है. अब रेपो रेट 6.25 से 6 फीसदी हो गया है. कमजोर आर्थिक विकास दर और कम महंगाई की वजह से आरबीआई की ओर से ऐसे ही कदम की उम्मीद थी. रेपो रेट घटने से बैंकों को आरबीआई से सस्ता फंड मिलेगा और इससे लोन सस्ता होने की उम्मीद बढ़ जाती है. लेकिन ऐसा हो जरूरी नहीं.
फरवरी में भी आरबीआई ने रेपो रेट 25 बेसिस प्वाइंट घटाया था लेकिन बैंकों ने लोन दरें बेहद मामूली यानी 5 से 10 बेसिस प्वाइंट घटाई थीं. बैंकों का कहना है कि लोगों का पैसा जमा करना घट गया है. लिहाजा वे डिपोजिटरों को ज्यादा ब्याज देकर आकर्षित कर रहे हैं. जब डिपोजिट पर उन्हें ज्यादा ब्याज देना पड़ रहा है तो वो लोन ज्यादा सस्ता कैसे कर सकते हैं.
रेपो रेट घटते ही छोटे लोन लेने वाले ग्राहकों को लगता है कि उनकी ईएमआई अब घट जाएगी. लेकिन ऐसा हो जरूरी नहीं. इसकी दो वजहें हैं. बैंक होम लोन जैसे फ्लोटिंग रेट वाले लोन मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स बेस्ड लेंडिंग रेट्स यानी MCLR के आधार पर देते हैं. लेकिन इसमें रेपो रेट की तुलना में कमी नहीं होती. दरअसल बैंकों की ओर से डिपोजिट पर दी जाने वाली ब्याज दरें भी उस अनुपात में नहीं घटती है. लिहाजा बैंकों की लागत भी नहीं घटती. ऐसे में उनके लिए लोन सस्ता करना मुश्किल होता है.
दूसरी वजह ये है कि मकान के लिए दिए जाने होम लोन जैसे रिटेल लोन का एक री-सेट डेट होता है, जो साल में एक बार तय होता है. अगर बैंक MCLR घटाते हैं तो आपको नए री-सेट डेट से ही इसका लाभ मिलेगा. मान लीजिए कि आपके लोन का री-सेट जनवरी में हुआ है तो आपको इसका फायदा अगले साल जनवरी में ही मिलेगा, जब घटे हुए MCLR पर लोन की दर तय होगी. इसलिए रेपो रेट घटने से यह उम्मीद मत लगाइए कि आपकी ईएमआई तुरंत घट जाएगी.
अर्थव्यवस्था में सुस्ती और महंगाई कम रहने की संभावना को देखते हुए रिजर्व बैंक की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) ने रेपो रेट घटाने की सिफारिश की है. खुदरा महंगाई दर के अगले छह महीने में चार फीसदी के भीतर ही रहने का अनुमान है. इसलिए रिजर्व बैंक को मनी फ्लो बढ़ाने में हिचक महसूस नहीं हो रही है. साथ ही इससे क्रेडिट फ्लो भी बढ़ेगा जो सुस्त होती जा रही इकनॉमी को थोड़ी रफ्तार देगी.
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